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मलिकिसिदक याजक
यह मलिकिसिदक*मलिकिसिदक: इस नाम का अर्थ “धर्म का राजा” है - यह दो शब्दों से मिलकर, “राजा और धर्मी” से बना हैं। शालेम का राजा, और परमप्रधान परमेश्वर का याजकऔर परमप्रधान परमेश्वर का याजक सर्वदा याजक बना रहता है, जब अब्राहम राजाओं को मारकर लौटा जाता था, तो इसी ने उससे भेंट करके उसे आशीष दी, इसी को अब्राहम ने सब वस्तुओं का दसवाँ अंश भी दिया। यह पहले अपने नाम के अर्थ के अनुसार, धार्मिकता का राजा और फिर शालेम अर्थात् शान्ति का राजा है। जिसका न पिता, न माता, न वंशावली है, जिसके न दिनों का आदि है और न जीवन का अन्त है; परन्तु परमेश्वर के पुत्र के स्वरूप ठहरकर वह सदा के लिए याजक बना रहता है।
अब इस पर ध्यान करो कि यह कैसा महान थायह कैसा महान था: प्रेरित का मलिकिसिदक की प्रतिष्ठा और गरिमा की बढ़ाई करने का लक्ष्य था। जिसको कुलपति अब्राहम ने अच्छे से अच्छे माल की लूट का दसवाँ अंश दिया। लेवी की सन्तान में से जो याजक का पद पाते हैं, उन्हें आज्ञा मिली है, कि लोगों, अर्थात् अपने भाइयों से, चाहे वे अब्राहम ही की देह से क्यों न जन्मे हों, व्यवस्था के अनुसार दसवाँ अंश लें। (गिन. 18:21) पर इसने, जो उनकी वंशावली में का भी न था अब्राहम से दसवाँ अंश लिया और जिसे प्रतिज्ञाएँ मिली थीं उसे आशीष दी। और उसमें संदेह नहीं, कि छोटा बड़े से आशीष पाता है। और यहाँ तो मरनहार मनुष्य दसवाँ अंश लेते हैं पर वहाँ वही लेता है, जिसकी गवाही दी जाती है, कि वह जीवित है। तो हम यह भी कह सकते हैं, कि लेवी ने भी, जो दसवाँ अंश लेता है, अब्राहम के द्वारा दसवाँ अंश दिया। 10 क्योंकि जिस समय मलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय यह अपने पिता की देह में था। (उत्प. 14:18-20)
एक नये याजक की आवश्यकता
11 तब यदि लेवीय याजकपद के द्वारा सिद्धि हो सकती है (जिसके सहारे से लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी, कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए? 12 क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है। 13 क्योंकि जिसके विषय में ये बातें कही जाती हैं, वह दूसरे गोत्र का है, जिसमें से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की। 14 तो प्रगट है, कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजकपद की कुछ चर्चा नहीं की। (उत्प. 49:10, यशा. 11:1)
15 हमारा दावा और भी स्पष्टता से प्रकट हो जाता है, जब मलिकिसिदक के समान एक और ऐसा याजक उत्पन्न होनेवाला था। 16 जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ्य के अनुसार नियुक्त हो। 17 क्योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है,
“तू मलिकिसिदक की रीति पर
युगानुयुग याजक है।”
18 इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। 19 (इसलिए कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं की§व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं की: यह किसी बात को सिद्ध प्रस्तुत नहीं करती हैं, यह वह नहीं करती है जो पापियों के लिये करना वांछनीय था।) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिसके द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं।
नये महायाजक की महानता
20 और इसलिए मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई। 21 क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उसकी ओर से नियुक्त किया गया जिसने उसके विषय में कहा,
“प्रभु ने शपथ खाई, और वह उससे फिर न पछताएगा,
कि तू युगानुयुग याजक है।” 22 इस कारण यीशु एक उत्तम वाचा का जामिन ठहरा।
23 वे तो बहुत से याजक बनते आए, इसका कारण यह था कि मृत्यु उन्हें रहने नहीं देती थी। 24 पर यह युगानुयुग रहता है; इस कारण उसका याजकपद अटल है। 25 इसलिए जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते हैं, वह उनका पूरा-पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिये विनती करने को सर्वदा जीवित है। (1 यूह. 2:1,2, 1 तीमु. 2:5)
26 क्योंकि ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्र, और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊँचा किया हुआ हो। 27 और उन महायाजकों के समान उसे आवश्यक नहीं कि प्रतिदिन पहले अपने पापों और फिर लोगों के पापों के लिये बलिदान चढ़ाए; क्योंकि उसने अपने आपको बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार निपटा दिया। (लैव्य. 16:6, इब्रा. 10:10-14) 28 क्योंकि व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्त करती है; परन्तु उस शपथ का वचन जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्त करता है जो युगानुयुग के लिये सिद्ध किया गया है।

*7:1 मलिकिसिदक: इस नाम का अर्थ “धर्म का राजा” है - यह दो शब्दों से मिलकर, “राजा और धर्मी” से बना हैं।

7:1 और परमप्रधान परमेश्वर का याजक सर्वदा याजक बना रहता है

7:4 यह कैसा महान था: प्रेरित का मलिकिसिदक की प्रतिष्ठा और गरिमा की बढ़ाई करने का लक्ष्य था।

§7:19 व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं की: यह किसी बात को सिद्ध प्रस्तुत नहीं करती हैं, यह वह नहीं करती है जो पापियों के लिये करना वांछनीय था।