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1 योना जब मछली के पेट में था, तो उसने अपने परमेश्वर यहोवा की प्रार्थना की। योना ने कहा,   
   
 
2 “मैं गहरी विपत्ति में था।  
मैंने यहोवा की दुहाई दी  
और उसने मुझको उत्तर दिया!  
मैं गहरी कब्र के बीच था हे यहोवा,  
मैंने तुझे पुकारा  
और तूने मेरी पुकार सुनी!   
   
 
3 “तूने मुझको सागर में फेंक दिया था।  
तेरी शक्तिशाली लहरों ने मुझे थपेड़े मारे मैं सागर के बीच में,  
मैं गहरे से गहरा उतरता चला गया।  
मेरे चारों तरफ बस पानी ही पानी था।   
4 फिर मैंने सोचा,  
‘अब मैं, जाने को विवश हूँ, जहाँ तेरी दृष्टि मुझे देख नहीं पायेगी।”  
किन्तु मैं सहायता पाने को तेरे पवित्र मन्दिर को निहारता रहूँगा।   
   
 
5 “सागर के जल ने मुझे निगल लिया है।  
पानी ने मेरा मुख बन्द कर दिया,  
और मेरा साँस घुट गया।  
मैं गहन सागर के बीच मैं उतरता चला गया  
मेरे सिर के चारों ओर शैवाल लिपट गये हैं।   
6 मैं सागर की तलहटी पर पड़ा था,  
जहाँ पर्वत जन्म लेते हैं।  
मुझको ऐसा लगा, जैसे इस बन्दीगृह के बीच सदा सर्वदा के लिये मुझ पर ताले जड़े हैं।  
किन्तु हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तूने मुझको मेरी इस कब्र से निकाल लिया!  
हे परमेश्वर, तूने मुझको जीवन दिया!   
   
 
7 “जब मैं मूर्छित हो रहा था।  
तब मैंने यहोवा का स्मरण किया हे यहोवा,  
मैंने तुझसे विनती की  
और तूने मेरी प्रार्थनाएं अपने पवित्र मन्दिर में सुनी।   
   
 
8 “कुछ लोग व्यर्थ के मूर्तियों की पूजा करते हैं,  
किन्तु उन मूर्तियों ने उनको कभी सहारा नहीं दिया।   
9 मुक्ति तो बस केवल यहोवा से आती है!  
हे यहोवा, मैं तुझे बलियाँ अर्पित करूँगा,  
और तेरे गुण गाऊँगा।  
मैं तेरा धन्यवाद करूँगा।”  
मैं तेरी मन्नते मानूँगा और अपनी मन्नतों को पूरा करूँगा।”   
   
 
10 फिर यहोवा ने उस मछली से कहा और उसने योना को सूखी धरती पर अपने पेट से बाहर उगल दिया।