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यहूदा विश्वासयोग्य नहीं रहा 
 
1 यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला। यहोवा का सन्देश यह था:  
2 “यिर्मयाह, जाओ और यरूशलेम के लोगों को सन्देश दो। उनसे कहो:  
   
 
“जिस समय तुम नव राष्ट्र थे, तुम मेरे विश्वासयोग्य थे।  
तुमने मेरा अनुगमन नयी दुल्हन सा किया।  
तुमने मेरा अनुगमन मरुभूमि में से होकर किया, उस प्रदेश में अनुगमन किया जिसे कभी कृषि भूमि न बनाया गया था।   
3 इस्राएल के लोग यहोवा को एक पवित्र भेंट थे।  
वे यहोवा द्वारा उतारे गये प्रथम फल थे।  
इस्राएल को चोट पहुँचाने का प्रयत्न करने वाले हर एक लोग अपराधी निर्णीत किये गए थे।  
उन बुरे लोगों पर बुरी आपत्तियाँ आई थीं।”  
यह सन्देश यहोवा का था।   
4 याकूब के परिवार, यहोवा का सन्देश सुनो।  
इस्राएल के तुम सभी परिवार समूहो, सन्देश सुनो।   
5 जो यहोवा कहता है, वह यह है:  
“क्या तुम समझते हो कि, मैं तुम्हारे पूर्वजों का हितैषी नहीं था?  
तब वे क्यों मुझसे दूर हो गए तुम्हारे पूर्वजों ने निरर्थक हो गये।   
6 तुम्हारे पूर्वजों ने यह नहीं कहा,  
‘यहोवा ने हमें मिस्र से निकाला।  
यहोवा ने मरुभूमि में हमारा नेतृत्व किया।  
यहोवा हमे सूखे चट्टानी प्रदेश से लेकर आया,  
यहोवा ने हमें अन्धकारपूर्ण और भयपूर्ण देशों में राह दिखाई।  
कोई भी लोग वहाँ नहीं रहते कोई भी लोग उस देश से यात्रा नहीं करते।  
लेकिन यहोवा ने उस प्रदेश में हमारा नेतृत्व किया।  
अत: वह यहोवा अब कहाँ हैं?’   
   
 
7 “यहोवा कहता है, मैं तुम्हें अनेक अच्छी चीज़ों से भरे उत्तम देश में लाया।  
मैंने यह किया जिससे तुम वहाँ उगे हुये फल और पैदावार को खा सके।  
किन्तु तुम आए और मेरे देश को तुमने “गन्दा” किया।  
मैंने वह देश तुम्हें दिया था,  
किन्तु तुमने उसे बुरा स्थान बनाया।”   
   
 
8 “याजकों ने नहीं पूछा, ‘यहोवा कहाँ हैं’ व्यवस्था को जाननेवाले लोगों ने मुझको जानना नहीं चाहा।  
इस्राएल के लोगों के प्रमुख मेरे विरुद्ध चले गए।  
नबियों ने झूठे बाल देवता के नाम भविष्यवाणी की।  
उन्होंने निरर्थक देव मूर्तियों की पूजा की।”   
   
 
9 यहोवा कहता है, “अत: मैं अब तुम्हें फिर दोषी करार दूँगा,  
और तुम्हारे पौत्रों को भी दोषी ठहराऊँगा।   
10 समुद्र पार कित्तियों के द्वीपों को जाओ  
और देखो किसी को केदार प्रदेश को भेजो  
और उसे ध्यान से देखने दो।  
ध्यान से देखो क्या कभी किसी ने ऐसा काम किया:   
11 क्या किसी राष्ट्र के लोगों ने कभी अपने पुराने देवताओं को नये देवता से बदला है नहीं!  
निसन्देह उनके देवता वास्तव में देवता हैं ही नहीं।  
किन्तु मेरे लोगों ने अपने यशस्वी परमेश्वर को निरर्थक देव मूर्तियों से बदला हैं।   
   
 
12 “आकाश, जो हुआ है उससे अपने हृदय को आघात पहुँचने दो!  
भय से काँप उठो!”  
यह सन्देश यहोवा का था।   
13 “मेरे लोगों ने दो पाप किये हैं।  
उन्होंने मुझे छोड़ दिया (मैं ताजे पानी का सोता हूँ।)  
और उन्होंने अपने पानी के निजी हौज खोदे हैं।  
(वे अन्य देवताओं के भक्त बने हैं।)  
किन्तु उनके हौज टूटे हैं।  
उन हौजों में पानी नहीं रुकेगा।   
   
 
14 “क्या इस्राएल के लोग दास हो गए हैं  
ल के लोगों की सम्पत्ति अन्य लोगों ने क्यों ले ली   
15 जवान सिंह (शत्रु) इस्राएल राष्ट्र पर दहाड़ते हैं, गुरते हैं।  
सिंहों ने इस्राएल के लोगों का देश उजाड़ दिया हैं।  
इस्राएल के नगर जला दिये गए हैं।  
उनमें कोई भी नहीं रह गया है।   
16 नोप और तहपन्हेस नगरों के लोगों ने तुम्हारे सिर के शीर्ष को कुचल दिया है।   
17 यह परेशानी तुम्हारे अपने दोष के कारण है।  
तुम अपने यहोवा परमेश्वर से विमुख हो गए, जबकि वह सही दिशा में तुम्हें ले जा रहा था।   
18 यहूदा के लोगों, इसके बारे में सोचो:  
क्या उसने मिस्र जाने में सहायता की क्या इसने नील नदी का पानी पीने में सहायता की नहीं!  
क्या इसने अश्शूर जाने में सहायता की क्या इसने परात नदी का जल पीने में सहायता की नहीं!   
19 तुमने बुरे काम किये, और वे बुरी चीजें तुम्हें केवल दण्ड दिलाएंगी।  
विपत्तियाँ तुम पर टूट पड़ेंगी और ये विपत्तियाँ तुम्हें पाठ पढ़ाएंगी।  
इस विषय में सोचो: तब तुम यह समझोगे कि अपने परमेश्वर से विमुख हो जाना कितना बुरा है।  
मुझसे न डरना बुरा है।”  
यह सन्देश मेरे स्वामी सर्वशक्तिमान यहोवा का था।   
20 “यहूदा बहुत पहले तुमने अपना जुआ फेंक दिया था।  
तुमने वह रस्सियाँ तोड़ फेंकी जिसे मैं तुम्हें अपने पास रखने में काम में लाता था।  
तुमने मुझसे कहा, ‘मै आपकी सेवा नहीं करूँगा!’  
सच्चाई यह है कि तुम वेश्या की तरह हर एक ऊँची पहाड़ी पर  
और हर एक हरे पेड़ के नीचे लेटे और काम किये।   
21 यहूदा, मैंने तुम्हें विशेष अंगूर की बेल की तरह रोपा।  
तुम सभी अच्छे बीज के समान थे।  
तुम उस भिन्न बेल में कैसे बदले  
जो बुरे फल देती है   
22 यदि तुम अपने को ल्ये से भी धोओ,  
बहुत साबुन भी लगाओ,  
तो भी मैं तुम्हारे दोष के दाग को देख सकता हूँ।”  
यह सन्देश परमेश्वर यहोवा का था।   
23 “यहूदा, तुम मुझसे कैसे कह सकते हो,  
‘मै अपराधी नहीं हूँ, मैंने बाल की मूर्तियों की पूजा नहीं की है!’  
उन कामों के बारे में सोचों  
जिन्हें तुमने घाटी में किये।  
उस बारे में सोचों, तुमने क्या कर डाला है।  
तुम उस तेज ऊँटनी के समान हो जो एक स्थान से दूसरे स्थान को दौड़ती है।   
24 तुम उस जँगली गधी की तरह हो जो मरुभूमि में रहती है  
और सहभोग के मौसम में जो हवा को सूंघती है (गन्ध लेती है।)  
कोई व्यक्ति उसे कामोत्तेजना के समय लौटा कर ला नहीं सकता।  
सहभोग के समय हर एक गधा जो उसे चाहता है, पा सकता है।  
उसे खोज निकालना सरल है।   
25 यहूदा, देवमूर्तियों के पीछे दौड़ना बन्द करो।  
उन अन्य देवताओं के लिये प्यास को बुझ जाने दो।  
किन्तु तुम कहते हो, ‘यह व्यर्थ है! मैं छोड़ नहीं सकता!  
मैं उन अन्य देवताओं से प्रेम करता हूँ।  
मैं उनकी पूजा करना चाहता हूँ।’   
   
 
26 “चोर लज्जित होता है जब उसे लोग पकड़ लेते हैं।  
उसी प्रकार इस्राएल का परिवार लज्जित है।  
राजा और प्रमुख, याजक और नबी लज्जित हैं।   
27 वे लोग लकड़ी के टुकड़ो से बातें करते हैं, वे कहते हैं,  
‘तुम मेरे पिता हो।’  
वे लोग चट्टान से बात करते हैं, वे कहते हैं,  
‘तुमने मुझे जन्म दिया है।’  
वे सभी लोग लज्जित होंगे।  
वे लोग मेरी ओर ध्यान नहीं देते।  
उन्होंने मुझसे पीठ फेर ली है।  
किन्तु जब यहूदा के लोगों पर विपत्ति आती है  
तब वे मुझसे कहते हैं, ‘आ और हमें बचा!’   
28 उन देवमूर्तियों को आने और तुमको बचाने दो!  
वे देवमूर्तियाँ कहाँ हैं जिसे तुमने अपने लिये बनाया है हमें देखने दो,  
क्या वे मूर्तियाँ आती हैं और तुम्हारी रक्षा विपत्ति से करती हैं  
यहूदा के लोगों, तुम लोगों के पास उतनी मूर्तियाँ हैं जितने नगर।   
   
 
29 “तुम मुझसे विवाद क्यों करते हो  
तुम सभी मेरे विरुद्ध हो गए हो।”  
यह सन्देश यहोवा का था।   
30 “यहूदा के लोगों, मैंने तुम्हारे लोगों को दण्ड दिया,  
किन्तु इसका कोई परिणाम न निकला।  
तुम तब लौट कर नहीं आए जब दण्डित किये गये।  
तुमने उन नबियों को तलवार के घाट उतारा जो तुम्हारे पास आए।  
तुम खूंखार सिंह की तरह थे  
और तुमने नबियों को मार डाला।”   
31 इस पीढ़ी के लोगों, यहोवा के सन्देश पर ध्यान दो:  
   
 
“क्या मैं इस्राएल के लोगों के लिये मरुभूमि सा बन गया?  
“क्या मैं उनके लिये अंधेरे और भयावने देश सा बन गया?  
मेरे लोग कहते है, ‘हम अपनी राह जाने को स्वतन्त्र हैं,  
यहोवा, हम फिर तेरे पास नहीं लौटेंगे!’  
वे उन बातों को क्यों कहते हैं?   
32 क्या कोई युवती अपने आभूषण भूलती है नहीं।  
क्या कोई दुल्हन अपने श्रृंगार के लिए अपना टुपट्टा भूल जाती है नहीं।  
किन्तु मेरे लोग मुझे अनगिनत दिनों से भूल गए हैं।   
   
 
33 “यहूदा, तुम सचमुच प्रेमियों (झूठे देवताओं) के पीछे पड़ना जानते हो।  
अत: तुमने पाप करना स्वयं ही सीख लिया है।   
34 तुम्हारे हाथ खून से रंगे हैं! यह गरीब और भोले लोगों का खून है।  
तुमने लोगों को मारा और वे लोग ऐसे चोर भी नहीं थे जिन्हें तुमने पकड़ा हो!  
तुम वे बुरे काम करते हो!   
35 किन्तु तुम फिर कहते रहते हो, ‘हम निरपराध हैं।  
परमेश्वर मुझ पर क्रोधित नहीं है।’  
अत: मैं तुम्हें झूठ बोलने वाला अपराधी होने का भी निर्णय दूँगा।  
क्यों क्योंकि तुम कहते हो, “मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया है।”   
36 तुम्हारे लिये इरादे को बदलना बहुत आसान हैं।  
अश्शूर ने तुम्हें हताश किया! अत: तुमने अश्शूर को छोड़ा और सहायता के लिये मिस्र पहुँचे।  
मिस्र तुम्हें हताश करेगा।   
37 ऐसा होगा कि तुम मिस्र भी छोड़ोगे  
और तुम्हारे हाथ लज्जा से तुम्हारी आँखों पर होंगे।  
तुमने उन देशों पर विश्वास किया।  
किन्तु तुम्हें उन देशों में कोई सफलता नहीं मिलेगी।  
क्यों क्योंकि यहोवा ने उन देशों को अस्वीकार कर दिया है।