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कोई चूक मत कर 
 
1 हे मेरे पुत्र, बिना समझे बूझे यदि किसी की जमानत दी है अथवा किसी के लिये वचनबद्ध हुआ है,  
2 यदि तू अपने ही कथन के जाल में फँस गया है, तू अपने मुख के ही शब्दों के पिंजरे में बन्द हो गया है  
3 तो मेरे पुत्र, क्योंकि तू औरों के हाथों में पड़ गया है, तू स्वंय को बचाने को ऐसा कर: तू उसके निकट जा और विनम्रता से अपने पड़ोसो से अनुनय विनम्र कर।  
4 निरन्तर जागता रह, आँखों में नींद न हो और तेरी पलकों में झपकी तक न आये।  
5 स्वंय को चंचल हिरण शिकारी के हाथ से और किसी पक्षा सा उसके जाल से छुड़ा ले।   
आलसी मत बनों 
 
6 अरे ओ आलसी, चींटी के पास जा। उसकी कार्य विधि देख और उससे सीख ले।  
7 उसका न तो काई नायक है, न ही कोई निरीक्षक न ही कोई शासक है।  
8 फिर भी वह ग्रीष्म में भोजन बटोरती है और कटनी के समय खाना जुटाती है।   
9 अरे ओ दीर्घ सूत्री, कब तक तुम यहाँ पड़े ही रहोगे अपनी निद्रा से तुम कब जाग उठोगे  
10 तुम कहते रहोगे, “थोड़ा सा और सो लूँ, एक झपकी ले लूँ, थोड़ा सुस्ताने को हाथों पर हाथ रख लूँ।”  
11 और बस तुझको दरिद्रता एक बटमार सी आ घेरेगी और अभाव शस्त्रधारी सा घेर लेगा।   
दुष्ट जन 
 
12 नीच और दुष्ट वह होता है जो बुरी बातें बोलता हुआ फिरता रहता है।  
13 जो आँखों द्वारा इशारा करता है और अपने पैरों से संकेत देता है और अपनी उगंलियों से इशारे करता है।  
14 जो अपने मन में षड्यन्त्र रचता है और जो सदा अनबन उपजाता रहता है।  
15 अत: उस पर अचानक महानाश गिरेगा और तत्काल वह नष्ट हो जायेगा। उस के पास बचने का उपाय भी नहीं होगा।   
वे सात बातें जिनसे यहोवा घृणा करता है 
 
16 ये हैं छ: बातें वे जिनसे यहोवा घृणा रखता और ये ही सात बातें जिनसे है उसको बैर:   
17 गर्वीली आँखें, झूठ से भरी वाणी,  
वे हाथ जो अबोध के हत्यारे हैं।   
18 ऐसा हृदय जो कुचक्र भरी योजनाएँ रचता रहताहै,  
ऐसे पैर जो पाप के मार्ग पर तुरन्त दौड़ पड़ते हैं।   
19 वह झूठा गवाह, जो निरन्तर झूठ उगलता है  
और ऐसा व्यक्ति जो भाईयों के बीच फूट डाले।   
दुराचार के विरुद्ध चेतावनी 
 
20 हे मेरे पुत्र, अपने पिता की आज्ञा का पालन कर और अपनी माता की सीख को कभी मत त्याग।  
21 अपने हृदय पर उनको सदैव बाँध रह और उन्हें अपने गले का हार बना ले।  
22 जब तू आगे बढ़ेगा, वे राह दिखायेंगे। जब तू सो जायेगा, वे तेरी रखवाली करेंगे और जब तू जागेगा, वे तुझसे बातें करेंगे।   
23 क्योंकि ये आज्ञाएँ दीपक हैं और यह शिक्षा एक ज्योति है। अनुशासन के सुधार तो जीवन का मार्ग है।  
24 जो तुझे चरित्रहीन स्त्री से और भटकी हुई कुलटा की फुसलाती बातों से बचाते हैं।  
25 तू अपने मन को उसकी सुन्दरता पर कभी वासना सक्त मत होने दे और उसकी आँखों का जादू मत चढ़ने दे।  
26 क्योंकि वह वेश्या तो तुझको रोटी—रोटी का मुहताज कर देगी किन्तु वह कुलटा तो तेरा जीवन ही हर लेगी!  
27 क्या यह सम्भव है कि कोई किसी के गोद में आग रख दे और उसके वस्त्र फिर भी जरा भी न जलें  
28 दहकते अंगारों पर क्या कोई जन अपने पैरों को बिना झुलसाये हुए चल सकता है  
29 वह मनुष्य ऐसा ही है जो किसा अन्य की पत्नी से समागम करता है। ऐसी पर स्त्री के जो भी कोई छूएगा, वह बिना दण्ड पाये नहीं रह पायेगा।   
30-31 यदि कोई चोर कभी भूखों मरता हो, यदि यह भूख को मिटाने के लिये चोरी करे तो लोग उस से घृणा नहीं करेंगे। फिर भी यदि वह पकड़ा जाये तो उसे सात गुणा भरना पड़ता है चाहे उससे उसके घर का समूचा धन चुक जाये।  
32 किन्तु जो पर स्त्री से समागम करता है उसके पास तो विवेक का आभाव है। ऐसा जो करता है वह स्वयं को मिटाता है।  
33 प्रहार और अपमान उसका भाग्य है। उसका कलंक कभी नहीं धुल पायेगा।  
34 ईर्ष्या किसी पति का क्रोध जगाती है और जब वह इसका बदला लेगा तब वह उस पर दया नहीं करेगा।  
35 वह कोई क्षति पूर्ति स्वीकार नहीं करेगा और कोई उसे कितना ही बड़ा प्रलोभन दे, उसे वह स्वीकारे बिना ठुकरायेगा!