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आसाप का एक स्तुति गीत। 
 
1 परमेश्वर देवों की सभा के बीच विराजता है।  
उन देवों की सभा का परमेश्वर न्यायाधीश है।   
2 परमेश्वर कहता है, “कब तक तुम लोग अन्यायपूर्ण न्याय करोगे  
कब तक तुम लोग दुराचारी लोगों को यूँ ही बिना दण्ड दिए छोड़ते रहोगे?”   
   
 
3 अनाथों और दीन लोगों की रक्षा कर,  
जिन्हें उचित व्यवहार नहीं मिलता तू उनके अधिकारों कि रक्षा कर।   
4 दीन और असहाय जन की रक्षा कर।  
दुष्टों के चंगुल से उनको बचा ले।   
   
 
5 “इस्राएल के लोग नहीं जानते क्या कुछ घट रहा है।  
वे समझते नहीं,  
वे जानते नहीं वे क्या कर रहे हैं।  
उनका जगत उनके चारों ओर गिर रहा है।”   
6 मैंने (परमेश्वर) कहा, “तुम लोग ईश्वर हो,  
तुम परम परमेश्वर के पुत्र हो।   
7 किन्तु तुम भी वैसे ही मर जाओगे जैसे निश्चय ही सब लोग मर जाते हैं।  
तुम वैसे मरोगे जैसे अन्य नेता मर जाते हैं।”   
   
 
8 हे परमेश्वर, खड़ा हो! तू न्यायाधीश बन जा!  
हे परमेश्वर, तू सारे ही राष्ट्रों का नेता बन जा!