12
विश्वासक श्रेष्ठ उदाहरण—यीशु
1 तेँ जखन गवाही देबऽ वला सभक एहन विशाल समूह सँ अपना सभ घेरल छी तँ अबैत जाउ, अपना सभ प्रत्येक विघ्न-वाधा उतारि कऽ फेकि दी, आ पापो, जे अपना सभ केँ तुरत्ते ओझरबैत अछि, आ ई दौड़, जाहि मे अपना सभ केँ दौड़बाक अछि, नहि छोड़ि धैर्यपूर्बक अन्त तक दौड़ी।
2 अपन नजरि अपना सभक विश्वास केँ शुरुआत आ सिद्ध कयनिहार यीशु पर राखी जे सामने राखल आनन्दक कारणेँ क्रूसक कलंक पर ध्यान नहि दऽ तकर दुःख सहलनि आ आब परमेश्वरक सिंहासनक दहिना कात बैसल छथि।
3 ओ जे पापी सभक हाथ सँ कतेक घोर विरोध सहलनि तिनका पर ध्यान दिअ, जाहि सँ एना नहि होअय जे अहाँ सभ थाकि कऽ हिम्मत हारी।
परमेश्वरक सजाय सुधारक लेल
4 पाप सँ संघर्ष करैत अहाँ सभ केँ एखन तक अपन खून नहि बहाबऽ पड़ल अछि।
5 की अहाँ सभ धर्मशास्त्रक ई उपदेश बिसरि गेलहुँ जाहि मे अहाँ सभ केँ पुत्र कहि कऽ सम्बोधन कयल गेल अछि?—
“हे हमर पुत्र, प्रभुक सजाय केँ तुच्छ नहि मानह,
और जखन ओ तोरा कोनो गलती देखा कऽ डँटैत छथुन
तँ हिम्मत नहि हारह।
6 कारण, जकरा सँ प्रभु प्रेम करैत छथि तकरा ओ सजाय दऽ कऽ सुधारैत छथिन,
जकरा ओ पुत्र मानैत छथि तकरा ओ कोड़ा लगबैत छथिन।”
7 कष्ट केँ ई बुझि कऽ सहि लिअ जे परमेश्वर एहि द्वारा हमरा सुधारि रहल छथि। कारण ओ अहाँ केँ पुत्र मानि अहाँक संग पिता जकाँ व्यवहार कऽ रहल छथि। की कोनो एहन पुत्र अछि जकर पिता ओकरा सजाय दऽ कऽ नहि सुधारैत होइक?
8 जँ अहाँ सभ केँ सुधारल नहि जाइत अछि जखन की सभ बेटा केँ सुधारल जाइत छैक तँ अहाँ सभ पारिवारिक-पुत्र नहि, अनजनुआ-जन्मल पुत्र सभ छी।
9 एतबे नहि, जखन शारीरिक पिता अपना सभ केँ सजाय दैत छलाह आ ताहि लेल अपना सभ हुनका सभक आदर करैत छलहुँ तँ ओहि सँ बढ़ि कऽ अपन आत्मिक पिताक अधीन मे रहनाइ अपना सभ किएक नहि स्वीकार करी जाहि सँ जीवन पाबी?
10 ओ सभ सीमित समयक लेल जहिना अपना बुद्धिक अनुसार ठीक बुझैत छलाह, तहिना अपना सभ केँ सजाय देलनि, मुदा परमेश्वर ई जानि जे अपना सभक कल्याणक लेल केहन सजाय ठीक होयत अपना सभ केँ सुधारैत छथि जाहि सँ ओ जहिना पवित्र छथि, तहिना अपनो सभ पवित्र बनी।
11 जखन कोनो तरहक सजाय ककरो भेटि रहल छैक तँ ताहि समय मे ओ ओकरा सुखदायक नहि, दुःखदायक लगैत छैक, मुदा बाद मे, तकरा द्वारा सुधारल गेलाक बाद, ओकर परिणाम एक धार्मिक आ शान्तिपूर्ण जीवन होइत अछि।
12 तेँ थाकल हाथ आ कमजोर ठेहुन केँ मजगूत बनाउ।
13 और “अपना लेल सोझ रस्ता बनाउ” जाहि सँ नाङड़क पयर उखड़ैक नहि, बल्कि स्वस्थ भऽ जाइक।
परमेश्वर केँ अस्वीकार कयनिहारक लेल चेतावनी
14 सभक संग मेल-मिलाप सँ रहबाक लेल आ पवित्र जीवन बितयबाक लेल पूरा मोन सँ प्रयत्न करू, कारण, पवित्रताक बिना केओ परमेश्वर केँ नहि देखऽ पाओत।
15 सावधान रहू जाहि सँ अहाँ सभ मे सँ केओ परमेश्वरक कृपा सँ वंचित नहि रही, और जाहि सँ एना नहि होअय जे ककरो मोन मे ईर्ष्याक बीया जनमि कऽ कष्टक कारण बनय आ ओकर विष बहुतो केँ दुषित करय।
16 अहाँ सभ मे सँ केओ ककरो संग अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध नहि राखू आ ने एसाव जकाँ परमेश्वरक डर नहि मानऽ वला होउ जे एक साँझक भोजनक बदला मे अपन जेठ सन्तान वला अधिकार बेचि देलनि।
17 अहाँ सभ जनैत छी जे बाद मे जखन ओ अपन पिताक आशीर्वाद प्राप्त करऽ चाहैत छलाह तँ हुनका अस्वीकार कयल गेलनि। नोरो बहा-बहा कऽ विनती कयलनि मुदा हुनका अपन पहिल निर्णय बदलबाक अवसर नहि भेटलनि।
18 अहाँ सभ पूर्वज सभ जकाँ ओहि सीनय पहाड़ लग नहि आयल छी जकरा छुअल जा सकैत अछि, जाहिठाम धधकैत आगि, कारी मेघ, घोर अन्हार, भयंकर अन्हड़-बिहारि,
19 आ धुतहूक आवाज छल, आ जाहिठाम एक स्वर एहन बात कहैत सुनाइ दैत छल जकरा सुनि लोक सभ विनती करऽ लागल जे ओ फेर ओकरा सभ केँ नहि सुनाइ दैक।
20 कारण, ओकरा सभ केँ ओहि स्वरक ई आज्ञा बरदास्त नहि भेलैक जे, “जँ मालो-जाल पहाड़ मे भिड़त तँ ओकरा पथरबाहि कऽ कऽ मारि देल जाय।”
21 ओ दृश्य ततेक भयानक छल जे मूसो कहलनि, “हम डर सँ थर-थर कँपैत छी।”
22 अहाँ सभ ओतऽ नहि, बल्कि सियोन नामक पहाड़ जे स्वर्गिक यरूशलेम अछि, अर्थात् जीवित परमेश्वरक नगर लग आयल छी, जतऽ खुशीक उत्सव मनाबऽ वला लाखो-लाख स्वर्गदूतक सम्मेलन अछि।
23 जतऽ ओ मण्डली अछि, जकर प्रत्येक सदस्य जेठ सन्तान मानल जाइत अछि आ जकरा सभक नाम स्वर्ग मे लिखल गेल अछि ततऽ आयल छी। जतऽ सभक न्यायाधीश परमेश्वर छथि आ जतऽ सिद्ध कयल गेल धार्मिक लोक सभक आत्मा अछि ततऽ आयल छी।
24 अहाँ सभ यीशु लग आयल छी, जे परमेश्वर आ हुनकर लोकक बीच नव सम्बन्धक मध्यस्थ छथि, जिनकर छिटल गेल खून हाबिलक खूनक अपेक्षा कतेक उत्तम बात कहैत अछि।
25 सावधान रहू! जे बाजि रहल छथि तिनकर आज्ञा केँ अस्वीकार नहि करू। कारण, जे लोक सभ पृथ्वी पर सँ चेतावनी देनिहारक बात नहि सुनलक से जखन नहि बाँचि सकल, तखन अपना सभ जँ स्वर्ग सँ चेतावनी देनिहारक बात नहि सुनब तँ कोना बाँचब?
26 ओहि समय हुनकर स्वर पृथ्वी केँ डोला देलक मुदा आब ओ ई वचन देलनि जे, “हम एक बेर आरो पृथ्विए नहि, बल्कि आकाशो डोला देब।”
27 हुनकर “एक बेर आरो” कहला सँ ई स्पष्ट कयल गेल जे डोलऽ वला वस्तु, अर्थात् सृष्टि कयल वस्तु, हटाओल जायत जाहि सँ जे नहि डोलाओल जा सकैत अछि सैहटा रहि जायत।
28 तेँ जखन अपना सभ केँ एहन राज्य भेटि रहल अछि जे अटल अछि तँ अबैत जाउ, अपना सभ परमेश्वरक धन्यवाद करैत श्रद्धा आ भयक संग हुनकर एहन आराधना करी जे हुनका ग्रहणयोग्य होनि।
29 कारण, “अपना सभक परमेश्वर भस्म करऽ वला आगि छथि।”