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मसीही दम्पतिक दायित्व
1-2 एही तरहेँ, हे स्त्री सभ, अहाँ सभ अपन-अपन पतिक अधीन रहू, जाहि सँ जँ हुनका सभ मे सँ केओ प्रभुक वचन केँ नहि मानैत होथि, तँ अहाँ सभक पवित्र आ श्रद्धापूर्ण चालि-चलन केँ देखि कऽ हुनका सभक हृदय मे परिवर्तन भऽ जानि आ ओ सभ विश्वास मे अबथि—ककरो किछु कहबाक कारणेँ नहि, बल्कि अहाँ सभक व्यवहारक कारणेँ।
3 अहाँ सभक सुन्दरता बाहरी श्रृंगार सँ नहि आबय, जेना केशक गुहनाइ, वा सोनाक गहना-गुड़िया सभ आ बढ़ियाँ-बढ़ियाँ कपड़ा पहिरनाइ सँ,
4 बल्कि अहाँ सभक भितरी चरित्र सँ आबय, अर्थात् नम्र आ शान्त स्वभावक सुन्दरता होअय। एहन सुन्दरता टिकैत अछि, और परमेश्वरक नजरि मे बहुत मूल्यवान अछि।
5 किएक तँ प्राचीन काल मे परमेश्वर पर भरोसा राखऽ वाली आ अपना पतिक अधीन रहऽ वाली पवित्र स्त्रीगण सभ एही तरहेँ अपन श्रृंगार करैत छलीह।
6 उदाहरणक लेल, सारा अब्राहम केँ “स्वामी” कहि कऽ हुनकर आज्ञाकारी रहैत छलीह। अहूँ सभ जँ कोनो बात सँ भयभीत नहि भऽ कऽ वैह करी जे उचित अछि, तँ साराक बेटी सभ ठहरब।
7 तहिना यौ पति लोकनि, अहूँ सभ अपन स्त्रीक संग समझदारी सँ रहू। स्त्री केँ “अबला” मानि कऽ हुनकर आदर करू, आ मोन राखू जे ओहो अहाँ जकाँ अनन्त जीवनक वरदान मे सहभागी छथि। एना जँ नहि रहब, तँ अहाँ सभक प्रार्थना मे बाधा पड़ि जायत।
एक-दोसराक लेल सहानुभूति
8 अन्त मे ई जे, अहाँ सभ गोटे एक मोनक होउ, एक-दोसराक लेल सहानुभूति राखू, एक-दोसर केँ भाइ मानि कऽ प्रेम करू, दयालु आ नम्र बनू।
9 अधलाह बातक बदला अधलाह बात सँ नहि दिअ, वा अपमानक बदला अपमान सँ नहि, बल्कि आशीर्वाद सँ दिअ। किएक तँ अहाँ सभ यैह करबाक लेल बजाओल गेल छी, जाहि सँ अहाँ सभ आशिष प्राप्त करब।
10 जेना धर्मशास्त्र कहैत अछि,
“जे केओ जीवन मे आनन्द उठाबऽ चाहैत अछि
आ नीक दिन देखऽ चाहैत अछि,
से अपना जीह केँ अधलाह बात सभ बाजऽ सँ
आ अपना ठोर केँ कपटपूर्ण बात सभ बाजऽ सँ रोकय।
11 ओ दुष्टता सँ दूर रहय आ भलाइक काज करय,
ओ पूरा मोन सँ सभक संग शान्ति सँ रहबाक कोशिश करय।
12 किएक तँ प्रभुक कृपादृष्टि धार्मिक लोक सभ पर रहैत अछि,
आ हुनकर कान ओकरा सभक प्रार्थनाक दिस लागल रहैत अछि,
मुदा जे सभ अधलाह काज करैत अछि,
तकरा सभक दिस सँ प्रभु मुँह फेरि लैत छथि।”
उचित काज करबाक कारणेँ कष्ट
13 जँ अहाँ सभ वैह करबाक लेल उत्सुक छी जे उचित अछि तँ अहाँ सभक हानि के करत?
14 तैयो जँ अहाँ सभ केँ एहि लेल कष्ट सहऽ पड़य जे उचित काज करैत छी तँ ई अहाँ सभक लेल सौभाग्यक बात अछि। “लोकक धमकी सँ ने तँ भयभीत होउ आ ने घबड़ाउ।”
15 मसीह केँ प्रभु मानि कऽ अपना हृदय मे सभ सँ ऊँच स्थान दिऔन। अहाँ सभ केँ जे आशा अछि, ताहि विषय मे जे सभ अहाँ सभ सँ प्रश्न करैत अछि, तकरा सभ केँ उत्तर देबाक लेल सदिखन तत्पर रहू। मुदा से नम्रता आ आदरक संग करू,
16 एहन चालि-चलन राखि कऽ जकरा कारणेँ अहाँक विवेक अहाँ केँ दोषी नहि ठहराओत, जाहि सँ जे लोक सभ अहाँ सभ केँ बदनाम करैत अछि आ अहाँ सभक नीक मसीही आचरणक निन्दा करैत अछि, तकरा सभ केँ लज्जित होमऽ पड़ैक।
17 किएक तँ जँ परमेश्वरक इच्छा ई छनि जे अहाँ सभ दुःख उठाबी, तँ नीक यैह अछि जे अहाँ सभ उचित काज करबाक कारणेँ दुःख उठाउ, नहि कि अधलाह काज करबाक कारणेँ।
18 मसीह सेहो, धर्मी भऽ कऽ अधर्मी सभक लेल मरलाह, पापक प्रायश्चित्तक वास्ते सदाकालक लेल एक बेर मरलाह, जाहि सँ ओ अहाँ सभ केँ परमेश्वर लग लऽ अबथि। ओ शरीर सँ मारल गेलाह, मुदा आत्मा सँ जिआओल गेलाह।
19 और आत्मे मे जा कऽ ओ कैद मे पड़ल आत्मा सभक बीच प्रचार कयलनि।
20 ई आत्मा सभ प्राचीन काल मे आज्ञाक पालन नहि कयने छल जहिया नूहक समय मे जहाज बनैत काल परमेश्वर धैर्यपूर्बक प्रतीक्षा कऽ रहल छलाह। ओहि जहाज मे किछुए लोक, अर्थात् आठ गोटे, पानि द्वारा बाँचल छल।
21 ई पानि बपतिस्माक दिस संकेत करैत अछि, जे आब अहाँ सभ केँ बचबैत अछि। बपतिस्माक अर्थ शरीरक मैल छोड़ौनाइ नहि, बल्कि शुद्ध हृदय सँ अपना केँ परमेश्वरक प्रति समर्पित कयनाइ अछि। ई बपतिस्मा यीशु मसीहक जीबि उठनाइ द्वारा अहाँ सभक उद्धार करैत अछि।
22 कारण, यीशु मसीह जीबि उठि कऽ स्वर्ग मे प्रवेश कयलनि आ आब परमेश्वरक दहिना कात विराजमान छथि। सभ स्वर्गदूत, अधिकारी आ शक्ति सभ हुनके अधीन मे अछि।