यूहन्ना का पहला 'आम ख़त
मुसन्निफ़ की पहचान
यह ख़त मुसन्निफ़ की पहचान नहीं करती मगर एक मज़्बूत बा उसूल और कलीसिया की सब से पहली गवाही मन्सूब करते हैं कि इस का मुसन्निफ़ यूहन्ना रसूल और शागिर्द है। (लूक़ा 6:13, 14) हालांकि इन तीनों ख़तों में कहीं भी यूहन्ना के नाम का ज़िक्र नहीं है इस के बावजूद भी तीन मज्बूर करने वाले हुक़ूक़ सामने आते हैं जो उसके मुसन्निफ़ होने की तरफ़ इशारा करते हैं। पहला है इब्तिदाई दूसरी सदी के लिखने वाले जो यूहन्ना के मुसन्निफ़ होने का हवाला पेश करते हैं दूसरा है ख़ुतूत के फ़रहंग बिलकुल वैसी है जैसी कि यूहन्ना की इन्जील। तीसरा यह कि मुसन्निफ़ ने ख़ुद लिखा कि उसने येसू मसही को देख है और उस के जिस्म को छुआ है जो कि यक़ीन दिलाता है कि वह यूहन्ना रसूल ही है (1 यूहन्ना 1:1 — 4; 4:14)।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
इस के लिखे जाने की तारीख़ तक़रीबन 85 - 95 के बीच है।
इस ख़त को यूहन्ना ने इफ़सस में रहते हुए लिखा जहां वह अपनी बुढ़ापे की ज़िन्दगी गुज़ार रहा था।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
1 यूहन्ना के सामईन की बाबत ख़ास तौर से ख़त में कोई इशारा नहीं किया गया है। किसी तरह इस ख़त के मज़्मून इशारा करते हैं कि यूहन्ना ने यह ख़त मसीही ईमान्दारों को लिखा है (1 यूहन्ना 1:3 — 4; 2:12 — 14) यह मुमकिन है कि उसने कई एक इलाक़ों में रहने वाले ख़ुदा रसीदा लोगों को लिखा हो। आम तौर से तमाम मसीहियों के लिए जो हर जगह पाये जाते हैं, 2:1, “मेरे छोटे बच्चों।”
असल मक़सूद
यूहन्ना ने यह ख़त रिफ़ाक़त को बढ़ाने और उस की तक़वियत के लिए लिखा ताकि हम ख़ुशी से भर जाएं, और हम गुनाहों से बाज़ रहें, हमें नजात का यक़ीन दिलाने के लिए और ईमान्दार को मसीह के साथ एक शख़्सी रिफ़ाक़त में लाने के लिए। यूहन्ना ख़ास तौर से झूटे उस्तादों का मुद्दा उठाता हैं जो कलीसिया से अलग हो चुके थे और लोगों को इन्जील की सच्चाई से गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे।
मौज़’अ
ख़ुदा के साथ रिफ़ाक़त।
बैरूनी ख़ाका
1. तजस्सुसम की हकीक़त — 1:1-4
2. रिफ़ाक़त — 1:5-2:17
3. फ़रेब की पहचान — 2:18-27
4. पाकीज़ा ज़िन्दगी के लिए ज़माना — ए — हाल में तहरीक किया जाना — 2:28-3:10
5. मुहब्बत यक़ीन के लिए बुनियाद बतौर — 3:11-24
6. बुरी रूह की बसीरत — 4:1-6
7. मख़्सूसियत के लिए ज़रूरी बातें — 4:7-5:21
1
तारूफ़
उस ज़िन्दगी के कलाम के बारे में जो शुरू से था, और जिसे हम ने सुना और अपनी आँखों से देखा बल्कि, ग़ौर से देखा और अपने हाथों से छुआ। [ये ज़िन्दगी ज़ाहिर हुई और हम ने देखा और उसकी गवाही देते हैं, और इस हमेशा की ज़िन्दगी की तुम्हें ख़बर देते हैं जो बाप के साथ थी और हम पर ज़ाहिर हुई है]।
जो कुछ हम ने देखा और सुना है तुम्हें भी उसकी ख़बर देते है, ताकि तुम भी हमारे शरीक हो, और हमारा मेल मिलाप बाप के साथ और उसके बेटे ईसा मसीह के साथ है। और ये बातें हम इसलिए लिखते है कि हमारी ख़ुशी पूरी हो जाए।
उससे सुन कर जो पैग़ाम हम तुम्हें देते हैं, वो ये है कि ख़ुदा नूर है और उसमें ज़रा भी तारीकी नहीं। अगर हम कहें कि हमारा उसके साथ मेल मिलाप है और फिर तारीकी में चलें, तो हम झूठे हैं और हक़ पर 'अमल नहीं करते। लेकिन जब हम नूर में चलें जिस तरह कि वो नूर में हैं, तो हमारा आपस में मेल मिलाप है, और उसके बेटे ईसा का ख़ून हमें तमाम गुनाह से पाक करता है।
अगर हम कहें कि हम बेगुनाह हैं तो अपने आपको धोखा देते हैं, और हम में सच्चाई नहीं। अगर अपने गुनाहों का इक़रार करें, तो वो हमारे गुनाहों को मु'आफ़ करने और हमें सारी नारास्ती से पाक करने में सच्चा और 'आदिल है। 10 अगर कहें कि हम ने गुनाह नहीं किया, तो उसे झूठा ठहराते हैं और उसका कलाम हम में नहीं है।