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पौलुस खे दिव्य दर्शन
अगर घमण्ड करणो ते मरा लिये ठीक नी, फिर भी करणु पडस हइ. पर मी प्रभु का दिया हुया दर्शनहोन अरु प्रकटीकरण की चर्चा कर्यु. मी मसीह मे एक इन्सान खे जानुस हइ, चौदह साल हुयी कि नी जान्ये आंगसहित, नी जान्ये आंगरहित, परमेश्वर जानुस हइ, असो इन्सान तीसरा स्वर्ग तक उठैइ लियो गयो. मी असा इन्सान खे जानुस हइ नी जान्ये आंगसहित, नी जान्ये आंगरहित परमेश्वर ही जानस हइ. कि स्वर्गलोक पर उठैइ लियो गयो, अरु असी बातहोन सुनी जो बोलन की नी अरु जेको मुडा मे लानो इन्सान खे अच्छो नी. असा इन्सान पर तो मी घमण्ड कर्यु, पर अपना पर अपनी कमजोरीहोन खे छोड, अपना बारे मे घमण्ड नी कर्यु. क्युकि अगर मी घमण्ड करणो चाहु भी ते मूर्ख नी हूयु, क्युकि सच्ची बोल्यु. ते भी रुखी जास हइ, असो नी हो, कि जसो कोय मेखे देखस हइ, या मरासे सुनस हइ, मेखे ओकासे बडी, समझ्ये.
अरु येका लिये कि मी प्रकटीकरण की भोतायत से फूलीनी जाये मरा आंग मे एक काटो गडायो गयो मंनजे सैतान को एक दूत कि मेखे घुसो मार्यो ताकि मी फूल नी जायु. येका बारे मे मेने प्रभु से तीन बार बिंनती करी, कि मरासे यो दूर हुइ जाये. अरु ओने मरासे बोल्यो, “मरो अनुग्रह तरा लिये भोत हइ. क्युकि मरो सामर्थ्य कमजोरी मे सिद्ध होस हइ” येका लिये मी बडा खुशी से अपनी कमजोरहोन पर घमण्ड कर्यु, कि मसीह को सामर्थ्य मरा पर छाय करते र्‍हिये. 10 यो करण मी मसीह, लिये कमजोरहोन, अरु अपमानहोन मे, अरु दरिद्रता मे, अरु उपद्रव मे, अरु संकटहोन मे, प्रसन्‍न हइ. क्युकि जब मी कमजोर होस हइ, तभी बलवन्त होस हइ.
एक प्रेरित को लक्षण
11 मी मूर्ख तो बन्यो, पर तुम ही ने मरासे यो मजबुर करायो तुमने तो मरी बडैइ करण होनु थो, क्युकि अगर मी कुछ भी का फिर भी वे बडा से बडा प्रेरितहोन से कोय बात मे कम नी हइ. 12 प्रेरित को लक्षण भी तुमारा बीच सब प्रकार का धीरज सहित चिन्हहोन, अरु अद्भुत काम होन का अरु सामर्थ्य काम होन से दिखाया गयो. 13 तुम कोन सी बात मे अरु मंडलीहोन से बुराइ कम था, फक्त येमे कि मेने तुम पर अपनो बजन नी रख्यो मरो यो अन्याय माफ करणु.
14 अब, मी तीसरी बार तुमारा पास आन खे तैयार हुयो अरु मी तुम पर कोय बजन नी रख्यु. क्युकि मी तुमारी सम्पत्ति नी, क्युकी तुम ही खे चाहुस हइ, क्युकि बच्चाहोन खे माय बाप का लिये धन बटोरनखे नी हुनु, पर माय बाप खे बच्चाहोन का लिये. 15 मी तुमारी आत्मा का लिये भोत मन से खर्च कर्यु, क्युकी खुद भी खर्च हुइ जायु, जेत्तो बडीके मी तुम से प्रेम रखुस हइ, ओत्तो ही घटी खे तुम मरासे प्रेम रख्ये?
16 असो हुइ सकस हइ, कि मेने तुम पर बोझ नी डाल्यो, पर दिमाख से तुमखे धोको दिखे फसैइ लियो. 17 भलो जिन का मेने तुमारा पास भेज्यो उनमे से कोय का उनमे से कोइ का वजेसे मेने छल करी खे तुम से कुछ ली लियो? 18 मेने तीतुस खे समझी खे ओका साथ उ भैइ खे भेज्यो, ते का तीतुस ने छल करीके तुम से कुछ लियो? का हम एक ही आत्मा को चाल नी चलनु? का एक ही चाल पर नी चलनु?
19 तुम अभी तक समजी र्‍हा हुये कि हम तुमारा सामने जवाब दि र्‍हा हइ हम तो परमेश्वर खे उपस्थित जानी मसीह मे बोलस हइ, अरु हे प्रियजन सब बातहोन तुमारी उन्नती ही का लिये बोलस हइ. 20 क्युकि मेखे डर हइ, कहीं असो नी हो, कि मी अय खे जसो चाहुस हइ, ओसो तुमखे नी पायु. अरु मेखे भी जसो तुम नी चाहस ओसो पानु कि तुम मे वाद विवाद, डाह, घुस्सा, विरोध, इर्ष्या, चुगली, अभिमान अरु बखेडो हुये. 21 अरु कहीं असो नी हो कि जब मी वापस आयु, मरो परमेश्वर मेखे अपमान कर्ये अरु मेखे भोतजन का लिये फिर शोक करणु पड्ये जेने पैयले पाप कर्यो थो अरु उ गंदा काम अरु व्यभिचार, अरु लुचापन से, जो उनने कर्यो, मन नी फिरायो.