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साक्षीपत्र का सन्दूक
बसलेल ने बबूल की लकड़ी का पवित्र सन्दूक बनाया। सन्दूक पैतालिस इंच लम्बा, सत्ताईस इंच चौड़ा और सत्ताईस इंच ऊँचा था। उसने सन्दूक के भीतरी और बाहर भाग को शुद्ध सोने से मढ़ दिया। तब उसने सोने की पट्टी सन्दूक के चारों ओर लगाई। फिर उसने सोने के चार कड़े बनाए और उन्हें नीचे के चारों कोनों पर लगाया। ये कड़े सन्दूक को ले जाने के लिए उपयोग में आते थे। दोनों तरफ दो—दो कड़े थे। तब उसने सन्दूक ले चलने के लिये बल्लियों को बनाया। बल्लियों के लिये उसने बबूल की लकड़ी का उपयोग किया और बल्लियों को शुद्ध सोने से मढ़ा। उसने सन्दूक के हर एक सिरे पर बने कड़ों में बल्लियों को डाला। तब उसने शुद्ध सोने से ढक्कन को बनाया। ये ढाई हाथ लम्बा तथा डेढ़ हाथ चौड़ा था। तब बसलेल ने सोने को पीट कर दो करूब बनाए। उसने ढक्कन के दोनों छोरो पर करूब लगाये। उसने एक करूब को एक ओर तथा दूसरे को दूसरी ओर लगाया। करूब को ढक्कन से एक बनाने के लिये जोड़ दिया गया। करूबों के पंख आकाश की ओर उठा दिए गए। करूबों ने सन्दूक को अपने पंखों से ढक लिया। करूबों एक दूसरे के सामने ढक्कन को देख रहे थे।
विशेष मेज
10 तब बसलेल ने बबूल की लकड़ी की मेज बनाई। मेज़ छत्तीस इंच लम्बी, अट्ठारह इंच चौड़ी और सत्ताईस इंच ऊँची थी। 11 उसने मेज को शुद्ध सोने से मढ़ा। उसने सोने की सजावट मेज के चारों ओर की। 12 तब उसने मेज के चारों ओर एक किनारे बनायी। यह किनारे लगभग तीन इंच*तीन इंच शाब्दिक, “एक हथेली” एक व्यक्ति के हाथ की चौड़ाई। चौड़ी थी। उसने किनारे पर सोने की झालर लगाई। 13 तब उसने मेज के लिये चार सोने के कड़े बनाए। उसने नीचे के चारों कोनों पर सोने के चार कड़े लगाए। ये वहीं—वहीं थे जहाँ चार पैर थे। 14 कड़े किनारी के समीप थे। कड़ों में वे बल्लियाँ थीं जो मेज को ले जाने में काम आती थीं। 15 तब उसने मेज को ले जाने के लिये बल्लियाँ बनाईं। बल्लियों के लिये उसने बबूल की लकड़ी का उपयोग किया और उन को शुद्ध सोने से मढ़ा। 16 तब उसने उन चीज़ों को बनाया जो मेज पर काम आती थीं। उसने तश्तरी, चम्मच, परात और पेय भेंटों के लिये उपयोग में आने वाले घड़े बनाए। ये सभी चीज़ें शुद्ध सोने से बनाई गईं थीं।
दीपाधार
17 तब उसने दीपाधार बनाया। इसके लिये उसने शुद्ध सोने का उपयोग किया और उसे पीट कर आधार तथा उसके डंडे को बनाया। तब उसने फूलों के समान दिखने वाले प्याले बनाए। प्यालों के साथ कलियाँ और खिले हुए पुष्प थे। हर एक चीज़ शुद्ध सोने की बनी थी। ये सभी चीजें एक ही इकाई बनाने के रूप में परस्पर जुड़ी थी। 18 दीपाधार के दोनों ओर छः शाखाएं थी। एक ओर तीन शाखाएं थी तथा तीन शाखाएं दूसरी ओर। 19 हर एक शाखा पर सोने के तीन फूल थे। ये फूल बादाम के फूल के आकार के बने थे। उनमें कलियाँ और पंखुडियाँ थीं। 20 दीपाधार की डंडी पर सोने के चार फूल थे। वे भी कली और पंखुडियों सहित बादाम के फूल के आकार के बने थे। 21 छः शाखाएं दो—दो करके तीन भागों में थीं। हर एक भाग की शाखाओं के नीचे एक कली थी। 22 ये सभी कलियां, शाखाएं और दीपाधार शुद्ध सोने के बने थे। इस सारे सोने को पीट कर एक ही में मिला दिया गया था। 23 उसने इस दीपाधार के लिये सात दीपक बनाए तब उसने तश्तरियाँ और चिमटे बनाए। हर एक वस्तु को शुद्ध सोने से बनाया। 24 उसने लगभग पचहत्तर पौंड शुद्ध सोना दीपाधार और उसके उपकरणों को बनाने में लगाया।
धूप जलाने की वेदी
25 तब उसने धूप जलाने की एक वेदी बनाई। उसने इसे बबूल की लकड़ी का बनाया। वेदी वर्गाकार थी। यह अट्ठारह इंच लम्बी, अट्ठारह इंच चौड़ी और छत्तीस इंच ऊँची थी। वेदी पर चार सींग बनाए गए थे। हर एक कोने पर एक सींग बना था। ये सींगे वेदी के साथ एक इकाई बनाने के लिये जोड़ दिए गए थे। 26 उसने सिरे, सभी बाजुओं और सींगो को शुद्ध सोने के पतरे से मढ़ा। तब उसने वेदी के चारों ओर सोने की झालर लगाई। 27 उसने सोने के दो कड़े वेदी के लिये बनाए। उसने सोने के कड़ों को वेदी के हर ओर की झालर से नीचे रखा। इन कड़ों में वेदी के हर ओर की झालर से नीचे रखा। इन कड़ों में वेदी को ले जाने के लिये बल्लियाँ डाली जाती थीं। 28 तब उसने बबूल की लकड़ी की बल्लियाँ बनाईं और उन्हें सोने से मढ़ा।
29 तब उसने अभिषेक का पवित्र तेल बनाया। उसने शुद्ध सुगन्धित धूप भी बनाई। ये चीज़ें उसी प्रकार बनाई गई जिस प्रकार कोई निपुण बनाता हैं।

*37:12: तीन इंच शाब्दिक, “एक हथेली” एक व्यक्ति के हाथ की चौड़ाई।