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अय्यूब का बिल्दद को उत्तर: 
  1 तब अय्यूब ने कहा:   
 2 “हे बिल्दद, सोपर और एलीपज जो लोग दुर्बल हैं तुम सचमुच उनको सहारा दे सकते हो।  
अरे हाँ! तुमने दुर्बल बाँहों को फिर से शक्तिशाली बनाया है।   
 3 हाँ, तुमने निर्बुद्धि को अद्भुत सम्मत्ति दी है।  
कैसा महाज्ञान तुमने दिखाया है!   
 4 इन बातों को कहने में किसने तुम्हारी सहायता की  
किसकी आत्मा ने तुम को प्रेरणा दी   
 5 “जो लोग मर गये है  
उनकी आत्मायें धरती के नीचे जल में भय से प्रकंपित हैं।   
 6 मृत्यु का स्थान परमेश्वर की आँखों के सामने खुला है,  
परमेश्वर के आगे विनाश का स्थान ढका नहीं है।   
 7 उत्तर के नभ को परमेश्वर फैलाता है।  
परमेश्वर ने व्योम के रिक्त पर अधर में धरती लटकायी है।   
 8 परमेश्वर बादलों को जल से भरता है,  
किन्तु जल के प्रभार से परमेश्वर बादलों को फटने नहीं देता है।   
 9 परमेश्वर पूरे चन्द्रमा को ढकता है,  
परमेश्वर चाँद पर निज बादल फैलाता है और उसको ढक देता है।   
 10 परमेश्वर क्षितिज को रचता है  
प्रकाश और अन्धकार की सीमा रेखा के रूप में समुद्र पर।   
 11 जब परमेश्वर डाँटता है तो  
वे नीवें जिन पर आकाश टिका है भय से काँपने लगती है।   
 12 परमेश्वर की शक्ति सागर को शांत कर देती है।  
परमेश्वर की बुद्धि ने राहब (सागर के दैत्य) को नष्ट किया।   
 13 परमेश्वर का श्वास नभ को साफ कर देता है।  
परमेश्वर के हाथ ने उस साँप को मार दिया जिसमें भाग जाने का यत्न किया था।   
 14 ये तो परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों की थोड़ी सी बातें हैं।  
बस हम थोड़ा सा परमेश्वर के हल्की—ध्वनि भरे स्वर को सुनते हैं।  
किन्तु सचमुच कोई व्यक्ति परमेश्वर के शक्ति के गर्जन को नहीं समझ सकता है।”