इतिहास की दूसरी पुस्तक
लेखक
यहूदी परम्परा के अनुसार विधिशास्त्री एज्रा इसका लेखक है। 2 इतिहास की पुस्तक का आरम्भ सुलैमान के राज्य के वृत्तान्त से होता है। सुलैमान की मृत्यु के बाद राज्य का विभाजन हो गया। 1 इतिहास की संलग्न पुस्तक, 2 इतिहास इब्रानियों के इतिहास का ही अनवरत वर्णन है- सुलैमान के राज्यकाल से लेकर बाबेल की बन्धुआई तक।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग 450 - 425 ई. पू.
इतिहास की पुस्तक का तिथि निर्धारण बहुत कठिन है, यद्यपि यह स्पष्ट है कि उसका लेखनकाल बाबेल की बन्धुआई से लौटने के बाद का है।
प्रापक
प्राचीनकाल के यहूदी तथा बाद के सब बाइबल पाठक।
उद्देश्य
2 इतिहास की पुस्तक में अधिकतर 2 शमूएल और 2 राजाओं की पुस्तकों में दी गई जानकारियों का ही पुनरावलोकन है। 2 इतिहास की पुस्तक उस समय के पुरोहितीय पक्ष पर अधिक बल देती है। 2 इतिहास की पुस्तक मुख्यतः राष्ट्र के धार्मिक इतिहास का मूल्यांकन है।
मूल विषय
इस्राएल की आध्यात्मिक विरासत
रूपरेखा
1. सुलैमान के समय का इस्राएल का इतिहास — 1:1-9:31
2. रहोबाम से आहाज तक — 10:1-28:27
3. हिजकिय्याह से यहूदिया के अन्त तक — 29:1-36:23
1
सुलैमान के राज्य का आरम्भ
1 दाऊद का पुत्र सुलैमान राज्य में स्थिर हो गया, और उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग रहा और उसको बहुत ही बढ़ाया।
2 सुलैमान ने सारे इस्राएल से, अर्थात् सहस्त्रपतियों, शतपतियों, न्यायियों और इस्राएल के सब प्रधानों से जो पितरों के घरानों के मुख्य-मुख्य पुरुष थे, बातें कीं। 3 तब सुलैमान पूरी मण्डली समेत गिबोन के ऊँचे स्थान पर गया, क्योंकि परमेश्वर का मिलापवाला तम्बू, जिसे यहोवा के दास मूसा ने जंगल में बनाया था, वह वहीं पर था। 4 परन्तु परमेश्वर के सन्दूक को दाऊद किर्यत्यारीम से उस स्थान पर ले आया था जिसे उसने उसके लिये तैयार किया था, उसने तो उसके लिये यरूशलेम में एक तम्बू खड़ा कराया था। 5 पर पीतल की जो वेदी ऊरी के पुत्र बसलेल ने, जो हूर का पोता था, बनाई थी, वह गिबोन में यहोवा के निवास के सामने थी। इसलिए सुलैमान मण्डली समेत उसके पास गया। 6 सुलैमान ने वहीं उस पीतल की वेदी के पास जाकर, जो यहोवा के सामने मिलापवाले तम्बू के पास थी, उस पर एक हजार होमबलि चढ़ाए।
बुद्धि के लिए सुलैमान की प्रार्थना
7 उसी दिन-रात को परमेश्वर ने सुलैमान को दर्शन देकर उससे कहा, “जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूँ, वह माँग।” 8 सुलैमान ने परमेश्वर से कहा, “तू मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करुणा करता रहा और मुझ को उसके स्थान पर राजा बनाया है। 9 अब हे यहोवा परमेश्वर! जो वचन तूने मेरे पिता दाऊद को दिया था, वह पूरा हो; तूने तो मुझे ऐसी प्रजा का राजा बनाया है जो भूमि की धूल के किनकों के समान बहुत है। 10 अब मुझे ऐसी बुद्धि और ज्ञान दे कि मैं इस प्रजा के सामने अन्दर- बाहर आना-जाना कर सकूँ, क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके?” 11 परमेश्वर ने सुलैमान से कहा, “तेरी जो ऐसी ही इच्छा हुई, अर्थात् तूने न तो धन-सम्पत्ति माँगी है, न ऐश्वर्य और न अपने बैरियों का प्राण और न अपनी दीर्घायु माँगी, केवल बुद्धि और ज्ञान का वर माँगा है, जिससे तू मेरी प्रजा का जिसके ऊपर मैंने तुझे राजा नियुक्त किया है, न्याय कर सके, 12 इस कारण बुद्धि और ज्ञान तुझे दिया जाता है। मैं तुझे इतनी धन-सम्पत्ति और ऐश्वर्य भी दूँगा*मैं तुझे इतनी धन-सम्पत्ति और ऐश्वर्य भी दूँगा: उससे की गई प्रतिज्ञा में दीर्घायु भी थी, परन्तु वह शर्त आधारित थी और क्योंकि सुलैमान ने शर्त पूरी नहीं की इसलिए वह प्रतिज्ञा प्रभावी नहीं हुई। (1 राजा 3:14) , जितना न तो तुझ से पहले किसी राजा को मिला और न तेरे बाद किसी राजा को मिलेगा।”
सुलैमान की सैन्य और आर्थिक शक्ति
13 तब सुलैमान गिबोन के ऊँचे स्थान से, अर्थात् मिलापवाले तम्बू के सामने से यरूशलेम को आया और वहाँ इस्राएल पर राज्य करने लगा। 14 फिर सुलैमान ने रथ और सवार इकट्ठे कर लिये; और उसके चौदह सौ रथ और बारह हजार सवार थे, और उनको उसने रथों के नगरों में, और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 15 राजा ने ऐसा किया कि यरूशलेम में सोने-चाँदी का मूल्य बहुतायत के कारण पत्थरों का सा, और देवदार का मूल्य नीचे के देश के गूलरों का सा बना दिया। 16 जो घोड़े सुलैमान रखता था, वे मिस्र से आते थे, और राजा के व्यापारी उन्हें झुण्ड के झुण्ड ठहराए हुए दाम पर लिया करते थे। 17 एक रथ तो छः सौ शेकेल चाँदी पर, और एक घोड़ा डेढ़ सौ शेकेल पर मिस्र से आता था; और इसी दाम पर वे हित्तियों के सब राजाओं और अराम के राजाओं के लिये उन्हीं के द्वारा लाया करते थे।
*1:12 मैं तुझे इतनी धन-सम्पत्ति और ऐश्वर्य भी दूँगा: उससे की गई प्रतिज्ञा में दीर्घायु भी थी, परन्तु वह शर्त आधारित थी और क्योंकि सुलैमान ने शर्त पूरी नहीं की इसलिए वह प्रतिज्ञा प्रभावी नहीं हुई। (1 राजा 3:14)