2
उद्धार की उपेक्षा के विरुद्ध चेतावनी
इस कारण चाहिए, कि हम उन बातों पर जो हमने सुनी हैं अधिक ध्यान दें, ऐसा न हो कि बहक कर उनसे दूर चले जाएँ। क्योंकि जो वचन स्वर्गदूतों के द्वारा कहा गया था, जब वह स्थिर रहा और हर एक अपराध और आज्ञा न मानने का ठीक-ठीक बदला मिला। तो हम लोग ऐसे बड़े उद्धार से उपेक्षा करके कैसे बच सकते हैं*कैसे बच सकते हैं: दण्ड से बचे रहने का कौन सा रास्ता हैं, यदि हमें इस महान उद्धार से उपेक्षित होकर पीड़ित होना पड़े, और उसके उद्धार देने के प्रस्ताव को न लें।? जिसकी चर्चा पहले-पहल प्रभु के द्वारा हुई, और सुननेवालों के द्वारा हमें निश्चय हुआ। और साथ ही परमेश्वर भी अपनी इच्छा के अनुसार चिन्हों, और अद्भुत कामों, और नाना प्रकार के सामर्थ्य के कामों, और पवित्र आत्मा के वरदानों के बाँटने के द्वारा इसकी गवाही देता रहा।
उसने उस आनेवाले जगत को जिसकी चर्चा हम कर रहे हैं, स्वर्गदूतों के अधीन न किया। वरन् किसी ने कहीं, यह गवाही दी है,
“मनुष्य क्या है, कि तू उसकी सुधि लेता है?
या मनुष्य का पुत्र क्या है, कि तू उस पर दृष्टि करता है?
तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही कम कियातूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया: अर्थात् परमेश्वर ने मनुष्य को स्वर्गदूतों से कुछ ही कम बनाया, परन्तु फिर भी परमेश्वर ने उन्हें उनके बराबर का स्थान दिया है।;
तूने उस पर महिमा और आदर का मुकुट रखा और उसे अपने हाथों के कामों पर अधिकार दिया।
तूने सब कुछ उसके पाँवों के नीचे कर दिया।”
इसलिए जबकि उसने सब कुछ उसके अधीन कर दिया, तो उसने कुछ भी रख न छोड़ा, जो उसके अधीन न हो। पर हम अब तक सब कुछ उसके अधीन नहीं देखते। (भज. 8:6, 1 कुरि. 15:27) पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुःख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहने हुए देखते हैं; ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से वह हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे। 10 क्योंकि जिसके लिये सब कुछ है, और जिसके द्वारा सब कुछ है, उसे यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुँचाए, तो उनके उद्धार के कर्ता को दुःख उठाने के द्वारा सिद्ध करे। 11 क्योंकि पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जाते हैं, सब एक ही मूल से हैं, अर्थात् परमेश्वर, इसी कारण वह उन्हें भाई कहने से नहीं लजाता। 12 पर वह कहता है,
“मैं तेरा नाम अपने भाइयों को सुनाऊँगा,
सभा के बीच में मैं तेरा भजन गाऊँगा।” (भज. 22:22)
13 और फिर यह,
“मैं उस पर भरोसा रखूँगा।” और फिर यह,
“देख, मैं उन बच्चों सहित जो परमेश्वर ने मुझे दिए।” (यशा. 8:17-18, यशा. 12:2)
14 इसलिए जबकि बच्चे माँस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उनके समान उनका सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थीमृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी: शैतान इस संसार में मृत्यु का कारण था। मृत्यु का प्रारम्भ शैतान के कारण हुआ।, अर्थात् शैतान को निकम्मा कर दे, (रोम. 8:3, कुलु. 2:15) 15 और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फँसे थे, उन्हें छुड़ा ले। 16 क्योंकि वह तो स्वर्गदूतों को नहीं वरन् अब्राहम के वंश को सम्भालता है। (गला. 3:29, यशा. 41:8-10) 17 इस कारण उसको चाहिए था, कि सब बातों में अपने भाइयों के समान बने; जिससे वह उन बातों में जो परमेश्वर से सम्बंध रखती हैं, एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बने ताकि लोगों के पापों के लिये प्रायश्चित करे। 18 क्योंकि जब उसने परीक्षा की दशा में दुःख उठाया, तो वह उनकी भी सहायता कर सकता है, जिनकी परीक्षा होती है।

*2:3 कैसे बच सकते हैं: दण्ड से बचे रहने का कौन सा रास्ता हैं, यदि हमें इस महान उद्धार से उपेक्षित होकर पीड़ित होना पड़े, और उसके उद्धार देने के प्रस्ताव को न लें।

2:7 तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया: अर्थात् परमेश्वर ने मनुष्य को स्वर्गदूतों से कुछ ही कम बनाया, परन्तु फिर भी परमेश्वर ने उन्हें उनके बराबर का स्थान दिया है।

2:14 मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी: शैतान इस संसार में मृत्यु का कारण था। मृत्यु का प्रारम्भ शैतान के कारण हुआ।