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स्वर्गीय महायाजक
1 अब जो बातें हम कह रहे हैं, उनमें से सबसे बड़ी बात यह है, कि हमारा ऐसा महायाजक है, जो स्वर्ग पर महामहिमन् के सिंहासन के दाहिने जा बैठा*जो स्वर्ग पर महामहिमन् के सिंहासन के दाहिने जा बैठा: दाहिना हाथ प्रमुख सम्मान की स्थान के रूप में माना जाता था, और जब यह कहा जाता हैं कि मसीह परमेश्वर के दाहिने हाथ में है, जिसका अर्थ है वह ब्रह्मांड में सर्वोच्च सम्मान से ऊँचा किया गया।। (भज. 110:1, इब्रा. 10:12) 2 और पवित्रस्थान और उस सच्चे तम्बू का सेवक हुआ, जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, वरन् प्रभु ने खड़ा किया था। 3 क्योंकि हर एक महायाजक भेंट, और बलिदान चढ़ाने के लिये ठहराया जाता है, इस कारण अवश्य है, कि इसके पास भी कुछ चढ़ाने के लिये हो। 4 और यदि मसीह पृथ्वी पर होता तो कभी याजक न होता, इसलिए कि पृथ्वी पर व्यवस्था के अनुसार भेंट चढ़ानेवाले तो हैं। 5 जो स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब†स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब: अर्थात्, तम्बू में जहाँ उन्होंने सेवा की वहाँ वास्तविक और तात्त्विक वस्तुओं की छाया मात्र थी। की सेवा करते हैं, जैसे जब मूसा तम्बू बनाने पर था, तो उसे यह चेतावनी मिली, “देख जो नमूना तुझे पहाड़ पर दिखाया गया था, उसके अनुसार सब कुछ बनाना।” (निर्ग. 25:40) 6 पर उन याजकों से बढ़कर सेवा यीशु को मिली, क्योंकि वह और भी उत्तम वाचा का मध्यस्थ ठहरा, जो और उत्तम प्रतिज्ञाओं के सहारे बाँधी गई है।
नई वाचा
7 क्योंकि यदि वह पहली वाचा निर्दोष होती, तो दूसरी के लिये अवसर न ढूँढ़ा जाता। 8 पर परमेश्वर लोगों पर दोष लगाकर कहता है,
“प्रभु कहता है, देखो वे दिन आते हैं,
कि मैं इस्राएल के घराने के साथ, और यहूदा के घराने के साथ, नई वाचा बाँधूँगा
9 यह उस वाचा के समान न होगी, जो मैंने उनके पूर्वजों के साथ उस समय बाँधी थी,
जब मैं उनका हाथ पकड़कर उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया,
क्योंकि वे मेरी वाचा पर स्थिर न रहे,
और मैंने उनकी सुधि न ली; प्रभु यही कहता है।
10 फिर प्रभु कहता है,
कि जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने के साथ बाँधूँगा, वह यह है,
कि मैं अपनी व्यवस्था को उनके मनों में डालूँगा,
और उसे उनके हृदय पर लिखूँगा,
और मैं उनका परमेश्वर ठहरूँगा,
और वे मेरे लोग ठहरेंगे।
11 और हर एक अपने देशवाले को
और अपने भाई को यह शिक्षा न देगा, कि तू प्रभु को पहचान
क्योंकि छोटे से बड़े तक सब मुझे जान लेंगे।
12 क्योंकि मैं उनके अधर्म के विषय में दयावन्त होऊँगा,
और उनके पापों को फिर स्मरण न करूँगा।”
13 नई वाचा की स्थापना से उसने प्रथम वाचा को पुराना ठहराया, और जो वस्तु पुरानी और जीर्ण हो जाती है उसका मिट जाना अनिवार्य है। (यिर्म. 31:31-34)
*8:1 जो स्वर्ग पर महामहिमन् के सिंहासन के दाहिने जा बैठा: दाहिना हाथ प्रमुख सम्मान की स्थान के रूप में माना जाता था, और जब यह कहा जाता हैं कि मसीह परमेश्वर के दाहिने हाथ में है, जिसका अर्थ है वह ब्रह्मांड में सर्वोच्च सम्मान से ऊँचा किया गया।
†8:5 स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब: अर्थात्, तम्बू में जहाँ उन्होंने सेवा की वहाँ वास्तविक और तात्त्विक वस्तुओं की छाया मात्र थी।