42
प्रभु का दास
1 मेरे दास को देखो जिसे मैं सम्भाले हूँ, मेरे चुने हुए को, जिससे मेरा जी प्रसन्न है; मैंने उस पर अपना आत्मा रखा है, वह जाति-जाति के लिये न्याय प्रगट करेगा। (मत्ती 3:17, लूका 9:35, 2 पत. 1:17) 2 न वह चिल्लाएगा और न ऊँचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपनी वाणी सुनाएगा। 3 कुचले हुए नरकट*कुचले हुए नरकट: नरकट दलदल में उगने वाली लम्बी घास है। को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुझाएगा; वह सच्चाई से न्याय चुकाएगा। 4 वह न थकेगा और न हियाव छोड़ेगा जब तक वह न्याय को पृथ्वी पर स्थिर न करे; और द्वीपों के लोग उसकी व्यवस्था की बाट जोहेंगे।
5 परमेश्वर जो आकाश का सृजने और ताननेवाला है, जो उपज सहित पृथ्वी का फैलानेवाला और उस पर के लोगों को साँस और उस पर के चलनेवालों को आत्मा देनेवाला यहोवा है, वह यह कहता है: 6 “मुझ यहोवा ने तुझको धार्मिकता से बुला लिया है, मैं तेरा हाथ थाम कर तेरी रक्षा करूँगा; मैं तुझे प्रजा के लिये वाचा और जातियों के लिये प्रकाश ठहराऊँगा; (लूका 2:32, प्रेरि. 13:47) 7 कि तू अंधों की आँखें खोले, बन्दियों को बन्दीगृह से निकाले और जो अंधियारे में बैठे हैं उनको कालकोठरी से निकाले। (यशा. 61:1, प्रेरि. 26:18) 8 मैं यहोवा हूँ, मेरा नाम यही है; अपनी महिमा मैं दूसरे को न दूँगा और जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतों को न दूँगा†जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतों को न दूँगा: परमेश्वर ने जो कुछ किया है उसका श्रेय एवं गुणगान वह मूर्तियों को नहीं देगा।। 9 देखो, पहली बातें तो हो चुकी है, अब मैं नई बातें बताता हूँ; उनके होने से पहले मैं तुम को सुनाता हूँ।”
स्तुति का एक गीत
10 हे समुद्र पर चलनेवालों, हे समुद्र के सब रहनेवालों, हे द्वीपों, तुम सब अपने रहनेवालों समेत यहोवा के लिये नया गीत गाओ और पृथ्वी की छोर से उसकी स्तुति करो। (भज. 96:1-3, भज. 97:1) 11 जंगल और उसमें की बस्तियाँ और केदार के बसे हुए गाँव जयजयकार करें; सेला के रहनेवाले जयजयकार करें, वे पहाड़ों की चोटियों पर से ऊँचे शब्द से ललकारें। 12 वे यहोवा की महिमा प्रगट करें और द्वीपों में उसका गुणानुवाद करें। 13 यहोवा वीर के समान निकलेगा और योद्धा के समान अपनी जलन भड़काएगा, वह ऊँचे शब्द से ललकारेगा और अपने शत्रुओं पर जयवन्त होगा।
14 बहुत काल से तो मैं चुप रहा और मौन साधे अपने को रोकता रहा; परन्तु अब जच्चा के समान चिल्लाऊँगा मैं हाँफ-हाँफकर साँस भरूँगा। 15 पहाड़ों और पहाड़ियों को मैं सूखा डालूँगा और उनकी सब हरियाली झुलसा दूँगा; मैं नदियों को द्वीप कर दूँगा और तालों को सूखा डालूँगा। 16 मैं अंधों को एक मार्ग से ले चलूँगा जिसे वे नहीं जानते और उनको ऐसे पथों से चलाऊँगा जिन्हें वे नहीं जानते। उनके आगे मैं अंधियारे को उजियाला करूँगा और टेढ़े मार्गों को सीधा करूँगा। मैं ऐसे-ऐसे काम करूँगा और उनको न त्यागूँगा। (लूका 3:5, यशा. 29:18) 17 जो लोग खुदी हुई मूरतों पर भरोसा रखते और ढली हुई मूरतों से कहते हैं, “तुम हमारे ईश्वर हो,” उनको पीछे हटना और अत्यन्त लज्जित होना पड़ेगा।
इस्राएल का अंधापन और बहरापन
18 हे बहरों, सुनो; हे अंधों, आँख खोलो कि तुम देख सको! (मत्ती 11:5) 19 मेरे दास के सिवाय कौन अंधा है? मेरे भेजे हुए दूत के तुल्य कौन बहरा है? मेरे मित्र के समान कौन अंधा या यहोवा के दास के तुल्य अंधा कौन है? 20 तू बहुत सी बातों पर दृष्टि करता है परन्तु उन्हें देखता नहीं है; कान तो खुले हैं परन्तु सुनता नहीं है‡कान तो खुले हैं परन्तु सुनता नहीं है: उन्होंने मूसा द्वारा दिये गये विधान के नियमों को सुना और पितरों के निर्देशनों को परम्परा में ग्रहण किया परन्तु उन्हें मन में नहीं बसाया या उन पर ध्यान नहीं दिया। ।
21 यहोवा को अपनी धार्मिकता के निमित्त ही यह भाया है कि व्यवस्था की बड़ाई अधिक करे। (मत्ती 5:17,18, रोम. 7:12; 10:4) 22 परन्तु ये लोग लुट गए हैं, ये सब के सब गड्ढों में फँसे हुए और कालकोठरियों में बन्द किए हुए हैं; ये पकड़े गए और कोई इन्हें नहीं छुड़ाता; ये लुट गए और कोई आज्ञा नहीं देता कि उन्हें लौटा ले आओ। 23 तुम में से कौन इस पर कान लगाएगा? कौन ध्यान करके होनहार के लिये सुनेगा? 24 किसने याकूब को लुटवाया और इस्राएल को लुटेरों के वश में कर दिया? क्या यहोवा ने यह नहीं किया जिसके विरुद्ध हमने पाप किया, जिसके मार्गों पर उन्होंने चलना न चाहा और न उसकी व्यवस्था को माना? 25 इस कारण उस पर उसने अपने क्रोध की आग भड़काई और युद्ध का बल चलाया; और यद्यपि आग उसके चारों ओर लग गई, तो भी वह न समझा; वह जल भी गया, तो भी न चेता।
*42:3 कुचले हुए नरकट: नरकट दलदल में उगने वाली लम्बी घास है।
†42:8 जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतों को न दूँगा: परमेश्वर ने जो कुछ किया है उसका श्रेय एवं गुणगान वह मूर्तियों को नहीं देगा।
‡42:20 कान तो खुले हैं परन्तु सुनता नहीं है: उन्होंने मूसा द्वारा दिये गये विधान के नियमों को सुना और पितरों के निर्देशनों को परम्परा में ग्रहण किया परन्तु उन्हें मन में नहीं बसाया या उन पर ध्यान नहीं दिया।