लूका रचित सुसमाचार
लेखक
प्राचीन लेखकों का एकमत से मानना है कि, इस पुस्तक का लेखक वैद्य लूका है, और अपनी इस पुस्तक के आधार पर वह द्वितीय पीढ़ी का मसीही विश्वासी प्रतीत होता है। परम्परा के अनुसार वह एक अन्यजाति विश्वासी था। मुख्यतः वह एक सुसमाचार प्रचारक था। उसने मसीह के शुभ सन्देश का वृत्तान्त एवं प्रेरितों के काम की पुस्तकें लिखी थीं। वह मसीही प्रचार कार्य में पौलुस का सहकर्मी भी रहा था (कुलु. 4:14, 2 तीमु. 4:11; 11:1)।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग ई.स. 60 - 80
लूका ने इस पुस्तक को कैसरिया में लिखना आरम्भ किया और रोम में आकर उसे पूरा किया। लिखने के मुख्य स्थान बैतलहम, गलील, यहूदिया और यरूशलेम रहे होंगे।
प्रापक
लूका द्वारा मसीह के शुभ सन्देश की यह पुस्तक थियुफिलुस को समर्पित है। थियुफिलुस का अर्थ है “परमेश्वर से प्रेम करनेवाला”। यह स्पष्ट नहीं है कि वह मसीही विश्वासी था या विश्वासी बनना चाहता था। यह तथ्य कि लूका उसे “अत्युत्तम” कहकर संबोधित करता है 1:3, यह सुझाव देता है कि वह एक रोमी उच्च पद का अधिकारी रहा होगा। अनेक प्रमाण अन्यजाति पाठकों की ओर संकेत करते हैं। उसकी प्रमुख अभिव्यक्तियाँ थीं, “मनुष्य का पुत्र” और “परमेश्वर का राज्य” (लूका 5:24; 19:10; 17:20-21; 13:18)।
उद्देश्य
यीशु के जीवन का वृत्तान्त लिखते हुए, लूका यीशु को “मनुष्य का पुत्र” कहता है। उसने थियुफिलुस को लिखा कि, जिन बातों की शिक्षा उसे दी गई है उनकी उचित समझ उसे प्राप्त हो (लूका 1:4)। लूका सताव के समय अपने लेखों द्वारा मसीही विश्वास की रक्षा कर रहा था कि थियुफिलुस को समझ प्राप्त हो कि यीशु के अनुयायियों में अनिष्ट या बुराई वाली कोई बात नहीं है।
मूल विषय
यीशु- एक उत्तम व्यक्ति
रूपरेखा
1. यीशु का जन्म एवं आरम्भिक जीवन — 1:5-2:52
2. यीशु की सेवा का आरम्भ — 3:1 - 4:13
3. उद्धार का कर्ता यीशु — 4:14-9:50
4. यीशु का क्रूस की ओर बढ़ना — 9:51-19:27
5. यरूशलेम में यीशु का विजय प्रवेश, क्रूसीकरण और पुनरूत्थान — 19:28-24:53
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लूका का उद्देश्य
बहुतों ने उन बातों का जो हमारे बीच में बीती हैं, इतिहास लिखने में हाथ लगाया है। जैसा कि उन्होंने जो पहले ही से इन बातों के देखनेवाले और वचन के सेवक थे हम तक पहुँचाया। इसलिए हे श्रीमान थियुफिलुस मुझे भी यह उचित मालूम हुआ कि उन सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक-ठीक जाँच करके उन्हें तेरे लिये क्रमानुसार लिखूँ, कि तू यह जान ले, कि वे बातें जिनकी तूने शिक्षा पाई है, कैसी अटल हैं।
जकर्याह और एलीशिबा
यहूदिया के राजा हेरोदेस के समय अबिय्याह के दल में जकर्याह नाम का एक याजक था, और उसकी पत्नी हारून के वंश की थी, जिसका नाम एलीशिबा था। और वे दोनों परमेश्वर के सामने धर्मी थे, और प्रभु की सारी आज्ञाओं और विधियों पर निर्दोष चलनेवाले थे। उनके कोई सन्तान न थी, क्योंकि एलीशिबा बाँझ थी, और वे दोनों बूढ़े थे।
स्वर्गदूत द्वारा यूहन्ना के जन्म की भविष्यद्वाणी
जब वह अपने दल की पारी पर परमेश्वर के सामने याजक का काम करता था। तो याजकों की रीति के अनुसार उसके नाम पर चिट्ठी निकली, कि प्रभु के मन्दिर में जाकर धूप जलाए। (निर्ग. 30:7) 10 और धूप जलाने के समय लोगों की सारी मण्डली बाहर प्रार्थना कर रही थी। 11 कि प्रभु का एक स्वर्गदूत धूप की वेदी की दाहिनी ओर खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया। 12 और जकर्याह देखकर घबराया और उस पर बड़ा भय छा गया। 13 परन्तु स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे जकर्याह, भयभीत न हो क्योंकि तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरी पत्नी एलीशिबा से तेरे लिये एक पुत्र उत्पन्न होगा, और तू उसका नाम यूहन्ना रखना। 14 और तुझे आनन्द और हर्ष होगा और बहुत लोग उसके जन्म के कारण आनन्दित होंगे। 15 क्योंकि वह प्रभु के सामने महान होगा; और दाखरस और मदिरा कभी न पीएगा; और अपनी माता के गर्भ ही से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाएगा। (इफि. 5:18, न्याय. 13:4,5) 16 और इस्राएलियों में से बहुतों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर फेरेगा। 17 वह एलिय्याह की आत्मा और सामर्थ्य में होकर उसके आगे-आगे चलेगा, कि पिताओं का मन बाल-बच्चों की ओर फेर दे; और आज्ञा न माननेवालों को धर्मियों की समझ पर लाए; और प्रभु के लिये एक योग्य प्रजा तैयार करे।” (मला. 4:5,6)
18 जकर्याह ने स्वर्गदूत से पूछा, “यह मैं कैसे जानूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ; और मेरी पत्नी भी बूढ़ी हो गई है।” 19 स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “मैं गब्रिएल*गब्रिएल: गब्रिएल नाम का अर्थ “परमेश्वर का एक शक्तिशाली”, यह सुसमाचार का खास सन्देशवाहक है। हूँ, जो परमेश्वर के सामने खड़ा रहता हूँ; और मैं तुझ से बातें करने और तुझे यह सुसमाचार सुनाने को भेजा गया हूँ। (दानि. 8:16, दानि. 9:21) 20 और देख, जिस दिन तक ये बातें पूरी न हो लें, उस दिन तक तू मौन रहेगा, और बोल न सकेगा, इसलिए कि तूने मेरी बातों की जो अपने समय पर पूरी होंगी, विश्वास न किया।” 21 लोग जकर्याह की प्रतीक्षा करते रहे और अचम्भा करने लगे कि उसे मन्दिर में ऐसी देर क्यों लगी? 22 जब वह बाहर आया, तो उनसे बोल न सका अतः वे जान गए, कि उसने मन्दिर में कोई दर्शन पाया है; और वह उनसे संकेत करता रहा, और गूँगा रह गया। 23 जब उसकी सेवा के दिन पूरे हुए, तो वह अपने घर चला गया। 24 इन दिनों के बाद उसकी पत्नी एलीशिबा गर्भवती हुई; और पाँच महीने तक अपने आपको यह कह के छिपाए रखा। 25 “मनुष्यों में मेरा अपमान दूर करने के लिये प्रभु ने इन दिनों में कृपादृष्टि करके मेरे लिये ऐसा किया है।” (उत्प. 30:23)
स्वर्गदूत का मरियम के सामने प्रगट होना
26 छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से गब्रिएल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में, 27 एक कुँवारी के पास भेजा गया। जिसकी मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरुष से हुई थी: उस कुँवारी का नाम मरियम था। 28 और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा, “आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर परमेश्वर का अनुग्रह हुआ है! प्रभु तेरे साथ है!” 29 वह उस वचन से बहुत घबरा गई, और सोचने लगी कि यह किस प्रकार का अभिवादन है? 30 स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। 31 और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। (यशा. 7:14) 32 वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा। (भज. 132:11, यशा. 9:6-7) 33 और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (2 शमू. 7:12,16, इब्रा. 1:8, दानि. 2:44) 34 मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं।” 35 स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी; इसलिए वह पवित्रवह पवित्र: यीशु एक स्त्री द्वारा पैदा हुआ था और इसलिए वह एक वास्तविक मनुष्य था। उसका पिता परमेश्वर है और वह परमेश्वर का पुत्र है। जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा। 36 और देख, और तेरी कुटुम्बिनी एलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्र होनेवाला है, यह उसका, जो बाँझ कहलाती थी छठवाँ महीना है। 37 परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।” (मत्ती 19:26, यिर्म. 32:27) 38 मरियम ने कहा, “देख, मैं प्रभु की दासी हूँ, तेरे वचन के अनुसार मेरे साथ ऐसा हो।” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
इलीशिबा के पास मरियम का जाना
39 उन दिनों में मरियम उठकर शीघ्र ही पहाड़ी देश में यहूदा के एक नगर को गई। 40 और जकर्याह के घर में जाकर एलीशिबा को नमस्कार किया। 41 जैसे ही एलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, वैसे ही बच्चा उसके पेट में उछला, और एलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई। 42 और उसने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है! 43 और यह अनुग्रह मुझे कहाँ से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई? 44 और देख जैसे ही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा वैसे ही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा। 45 और धन्य है, वह जिसने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उससे कही गई, वे पूरी होंगी।”
मरियम द्वारा परमेश्वर की स्तुति
46 तब मरियम ने कहा,
“मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
47 और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करनेवाले
परमेश्वर से आनन्दित हुई। (1 शमू. 2:1)
48 क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर
दृष्टि की है;
इसलिए देखो, अब से सब युग-युग
के लोग मुझे धन्य कहेंगे। (1 शमू. 1:11, लूका 1:42, मला. 3:12)
49 क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े-
बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
50 और उसकी दया उन पर,
जो उससे डरते हैं,
पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है। (भज. 103:17)
51 उसने अपना भुजबल दिखाया,
और जो अपने मन में घमण्ड करते थे,
उन्हें तितर-बितर किया। (2 शमू. 22:28, भज. 89:10)
52 उसने शासकों को सिंहासनों से
गिरा दिया;
और दीनों को ऊँचा किया। (1 शमू. 2:7, अय्यू. 5:11, भज. 113:7,8)
53 उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से
तृप्त किया,
और धनवानों को खाली हाथ निकाल दिया। (1 शमू. 2:5, भज. 107:9)
54 उसने अपने सेवक इस्राएल को सम्भाल
लिया कि अपनी उस दया को स्मरण करे, (भज. 98:3, यशा. 41:8,9)
55 जो अब्राहम और उसके वंश पर सदा रहेगी,
जैसा उसने हमारे पूर्वजों से कहा था।” (उत्प. 22:17, मीका 7:20) 56 मरियम लगभग तीन महीने उसके साथ रहकर अपने घर लौट गई।
यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का जन्म
57 तब एलीशिबा के जनने का समय पूरा हुआ, और वह पुत्र जनी। 58 उसके पड़ोसियों और कुटुम्बियों ने यह सुनकर, कि प्रभु ने उस पर बड़ी दया की है, उसके साथ आनन्दित हुए। 59 और ऐसा हुआ कि आठवें दिन वे बालक का खतना करने आए और उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकर्याह रखने लगे। (उत्प. 17:12, लैव्य. 12:3) 60 और उसकी माता ने उत्तर दिया, “नहीं; वरन् उसका नाम यूहन्ना रखा जाए।” 61 और उन्होंने उससे कहा, “तेरे कुटुम्ब में किसी का यह नाम नहीं।” 62 तब उन्होंने उसके पिता से संकेत करके पूछा कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है? 63 और उसने लिखने की पट्टी मँगवाकर लिख दिया, “उसका नाम यूहन्ना है,” और सभी ने अचम्भा किया। 64 तब उसका मुँह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर की स्तुति करने लगा। 65 और उसके आस-पास के सब रहनेवालों पर भय छा गया; और उन सब बातों की चर्चा यहूदिया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई। 66 और सब सुननेवालों ने अपने-अपने मन में विचार करके कहा, “यह बालक कैसा होगा?” क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साथ था।
जकर्याह की भविष्यद्वाणी
67 और उसका पिता जकर्याह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्वाणी करने लगा।
68 “प्रभु इस्राएल का परमेश्वर धन्य हो,
कि उसने अपने लोगों पर दृष्टि की
और उनका छुटकारा किया है, (भज. 111:9, भज. 41:13)
69 और अपने सेवक दाऊद के घराने में
हमारे लिये एक उद्धार का सींगसींग: सींग सामर्थ्य, महिमा, और शक्ति का एक प्रतीक है।
निकाला, (भज. 132:17, यिर्म. 30:9)
70 जैसे उसने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं
के द्वारा जो जगत के आदि से होते
आए हैं, कहा था,
71 अर्थात् हमारे शत्रुओं से, और हमारे सब
बैरियों के हाथ से हमारा उद्धार किया है; (भज. 106:10)
72 कि हमारे पूर्वजों पर दया करके अपनी
पवित्र वाचा का स्मरण करे,
73 और वह शपथ जो उसने हमारे पिता
अब्राहम से खाई थी, (उत्प. 17:7, भज. 105:8,9)
74 कि वह हमें यह देगा, कि हम अपने
शत्रुओं के हाथ से छूटकर,
75 उसके सामने पवित्रता और धार्मिकता
से जीवन भर निडर रहकर उसकी सेवा करते रहें।
76 और तू हे बालक, परमप्रधान का
भविष्यद्वक्ता कहलाएगा§परमप्रधान का भविष्यद्वक्ता कहलाएगा: वह मसीह और सुसमाचार का प्रचारक ही नहीं था, उसने मसीह के आने की भविष्यद्वाणी भी की थी,
क्योंकि तू प्रभु के मार्ग तैयार करने
के लिये उसके आगे-आगे चलेगा, (मला. 3:1, यशा. 40:3)
77 कि उसके लोगों को उद्धार का ज्ञान दे,
जो उनके पापों की क्षमा से प्राप्त होता है।
78 यह हमारे परमेश्वर की उसी बड़ी करुणा से होगा;
जिसके कारण ऊपर से हम पर भोर का प्रकाश उदय होगा।
79 कि अंधकार और मृत्यु की छाया में बैठनेवालों को ज्योति दे,
और हमारे पाँवों को कुशल के मार्ग में सीधे चलाए।” (यशा. 58:8, यशा. 60:1,2, यशा. 9:2)
80 और वह बालक यूहन्ना, बढ़ता और आत्मा में बलवन्त होता गया और इस्राएल पर प्रगट होने के दिन तक जंगलों में रहा।

*1:19 गब्रिएल: गब्रिएल नाम का अर्थ “परमेश्वर का एक शक्तिशाली”, यह सुसमाचार का खास सन्देशवाहक है।

1:35 वह पवित्र: यीशु एक स्त्री द्वारा पैदा हुआ था और इसलिए वह एक वास्तविक मनुष्य था। उसका पिता परमेश्वर है और वह परमेश्वर का पुत्र है।

1:69 सींग: सींग सामर्थ्य, महिमा, और शक्ति का एक प्रतीक है।

§1:76 परमप्रधान का भविष्यद्वक्ता कहलाएगा: वह मसीह और सुसमाचार का प्रचारक ही नहीं था, उसने मसीह के आने की भविष्यद्वाणी भी की थी