नहूम
लेखक
नहूम की पुस्तक का लेखक अपना नाम नहूम बताता है। (इब्रानी में इसका अर्थ है, “शान्तिदाता”) वह एल्कोशवासी था (1:1)। भविष्यद्वक्ता के रूप में नहूम अश्शूर में विशेष करके उनकी राजधानी नीनवे में मन फिराव का प्रचार करने भेजा गया था। यह योना से 150 वर्ष बाद की घटना है। अतः स्पष्ट है कि उन्होंने उस समय मन फिराया परन्तु पुनः मूर्तिपूजा करने लगे थे।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग 620 - 612 ई. पू.
नहूम का लेखन समय स्पष्ट ज्ञात किया जा सकता है क्योंकि उसकी भविष्यद्वाणी दो चिरपरिचित घटनाओं के मध्य की है- तेबेस का पतन और नीनवे का पतन
प्रापक
नहूम की भविष्यद्वाणी उत्तरी राज्य के दस गोत्रों को बन्धुआई में ले जानेवाले अश्शूरों तथा दक्षिणी राज्य यहूदिया दोनों के लिए थी। यहूदिया को भय था कि उसका भी वही हाल होगा जो इस्राएल का होगा।
उद्देश्य
परमेश्वर का न्याय सही एवं निश्चित होता है। परमेश्वर ने 150 वर्ष पूर्व भविष्यद्वक्ता योना को उनके पास भेजा था और उनसे प्रतिज्ञा की थी कि यदि वे अपनी दुष्टता में रहेंगे तो क्या होगा। उस समय तो उन्होंने मन फिराया परन्तु अब वे और भी अधिक बुराई में थे। अश्शूर अपनी विजय में पूर्णतः पाशविक हो गए थे। नहूम यहूदिया की प्रजा से कह रहा था कि वे निराश न हों क्योंकि परमेश्वर ने न्याय की घोषणा कर दी है और अश्शूरों को उनके योग्य दण्ड मिलेगा।
मूल विषय
सांत्वना
रूपरेखा
1. परमेश्वर की प्रभुसत्ता — 1:1-14
2. नीनवे को परमेश्वर का दण्ड — 1:15-3:19
1
परमेश्वर का अपने शत्रुओं पर क्रोध
नीनवे* 1:1 नीनवे: नहूम की भविष्यद्वाणी भी बहुत कठोर एवं भयानक है योना की चेतावनी सुनकर नीनवे वासियों ने मन फिराया था परन्तु वे फिर पाप में गिर गये थे के विषय में भारी वचन। एल्कोशवासी नहूम के दर्शन की पुस्तक।
यहोवा जलन रखनेवाला और बदला लेनेवाला परमेश्वर है; यहोवा बदला लेनेवाला और जलजलाहट करनेवाला है; यहोवा अपने द्रोहियों से बदला लेता है, और अपने शत्रुओं का पाप नहीं भूलता। यहोवा विलम्ब से क्रोध करनेवाला और बड़ा शक्तिमान है 1:3 बड़ा शक्तिमान है: दिव्य शक्ति के साथ दैवीय सहनशीलता भी जाती है परमेश्वर धीरजवन्त है उसका धीरज दुर्बलता का नहीं उसके सामर्थ्य का प्रतीक है ; वह दोषी को किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा। यहोवा बवंडर और आँधी में होकर चलता है, और बादल उसके पाँवों की धूल हैं।
उसके घुड़कने से महानद सूख जाते हैं, वह सब नदियों को सूखा देता है; बाशान और कर्मेल कुम्हलाते और लबानोन की हरियाली जाती रहती है। उसके स्पर्श से पहाड़ काँप उठते हैं और पहाड़ियाँ गल जाती हैं; उसके प्रताप से पृथ्वी वरन् सारा संसार अपने सब रहनेवालों समेत थरथरा उठता है।
उसके क्रोध का सामना कौन कर सकता है? और जब उसका क्रोध भड़कता है, तब कौन ठहर सकता है? उसकी जलजलाहट आग के समान भड़क जाती है, और चट्टानें उसकी शक्ति से फट फटकर गिरती हैं। (प्रका. 6:17) यहोवा भला है; संकट के दिन में वह दृढ़ गढ़ ठहरता है, और अपने शरणागतों की सुधि रखता है। परन्तु वह उमड़ती हुई धारा से उसके स्थान का अन्त कर देगा, और अपने शत्रुओं को खदेड़कर अंधकार में भगा देगा। तुम यहोवा के विरुद्ध क्या कल्पना कर रहे हो? वह तुम्हारा अन्त कर देगा; विपत्ति दूसरी बार पड़ने न पाएगी। 10 क्योंकि चाहे वे काँटों से उलझे हुए हों, और मदिरा के नशे में चूर भी हों, तो भी वे सूखी खूँटी की समान भस्म किए जाएँगे। 11 तुझ में से एक निकला है, जो यहोवा के विरुद्ध कल्पना करता और नीचता की युक्ति बाँधता है।
12 यहोवा यह कहता है, “चाहे वे सब प्रकार से सामर्थी हों 1:12 चाहे वे सब प्रकार से सामर्थी हों: अर्थात् वे अनेक हों कि तोड़े न जा सके तो भी वे काट डाले जाएगे और उनका प्रधान और उनका राजा नष्ट हो जाएगा। , और बहुत भी हों, तो भी पूरी रीति से काटे जाएँगे और शून्य हो जाएँगे। मैंने तुझे दुःख दिया है, परन्तु फिर न दूँगा। 13 क्योंकि अब मैं उसका जूआ तेरी गर्दन पर से उतारकर तोड़ डालूँगा, और तेरा बन्धन फाड़ डालूँगा।”
14 यहोवा ने तेरे विषय में यह आज्ञा दी है “आगे को तेरा वंश न चले; मैं तेरे देवालयों में से ढली और गढ़ी हुई मूरतों को काट डालूँगा, मैं तेरे लिये कब्र खोदूँगा, क्योंकि तू नीच है।”
15 देखो, पहाड़ों पर शुभ समाचार का सुनानेवाला और शान्ति का प्रचार करनेवाला आ रहा है! अब हे यहूदा, अपने पर्व मान, और अपनी मन्नतें पूरी कर, क्योंकि वह दुष्ट फिर कभी तेरे बीच में होकर न चलेगा, वह पूरी रीति से नष्ट हुआ है। (प्रेरि. 10:36, रोम. 10:15, इफि. 6:15)

*1:1 1:1 नीनवे: नहूम की भविष्यद्वाणी भी बहुत कठोर एवं भयानक है योना की चेतावनी सुनकर नीनवे वासियों ने मन फिराया था परन्तु वे फिर पाप में गिर गये थे

1:3 1:3 बड़ा शक्तिमान है: दिव्य शक्ति के साथ दैवीय सहनशीलता भी जाती है परमेश्वर धीरजवन्त है उसका धीरज दुर्बलता का नहीं उसके सामर्थ्य का प्रतीक है

1:12 1:12 चाहे वे सब प्रकार से सामर्थी हों: अर्थात् वे अनेक हों कि तोड़े न जा सके तो भी वे काट डाले जाएगे और उनका प्रधान और उनका राजा नष्ट हो जाएगा।