भजन संहिता
लेखक
कविताओं का संग्रह, भजन संहिता पुराने नियम की पुस्तकों में एक है जिसमें अनेक रचयिताओं की रचनाओं का संग्रह है। इसके अनेक लेखक हैं: दाऊद, आसाप, कोरह के पुत्रों, सुलैमान, एतान, हेमान, मूसा और अज्ञात भजनकार हैं। सुलैमान और मूसा की अपेक्षा सब भजनकार या तो याजक थे या लेवी थे जो दाऊद के राज्य में पवित्रस्थान में उपासना हेतु संगीत की व्यवस्था का दायित्व निभा रहे थे।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग 1440 - 430 ई. पू.
व्यक्तिगत भजन इतिहास में मूसा के समय तक पुराने हैं और दाऊद, आसाप, सुलैमान तथा एज्रा पंथियों (बाबेल के दासत्व के बाद) तक के हैं। इसका अर्थ है कि इस पुस्तक में लगभग एक हजार वर्ष का भजन संग्रह है।
प्रापक
इस्राएल की प्रजा- परमेश्वर ने उनके लिए और सम्पूर्ण इतिहास में विश्वासियों के लिए क्या किया है।
उद्देश्य
भजनों के विषय रहे हैं: परमेश्वर और उसकी सृष्टि, युद्ध, आराधना, बुद्धि, पाप और बुराई, दण्ड, न्याय तथा मसीह का आगमन। भजन पाठकों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे परमेश्वर का तथा उसके कामों का गुणगान करें। भजन हमारे परमेश्वर की महानता को प्रकाशित करते हैं। संकटकाल में हमारे लिए उसकी विश्वासयोग्यता की पुष्टि करते हैं और हमें उसके वचन की परम केन्द्रिता का स्मरण करवाते हैं।
मूल विषय
प्रशंसा
रूपरेखा
1. मसीही पुस्तक — 1:1-41:13
2. मनोकामना की पुस्तक — 42:1-72:20
3. इस्राएल की पुस्तक — 73:1-89:52
4. परमेश्वर के शासन की पुस्तक — 90:1-106:48
5. गुणगान की पुस्तक — 107:1-150:6
पहला भाग
1
भज. 1-41
परमेश्वर की व्यवस्था में सच्चा सुख
1 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो दुष्टों की योजना पर*योजना पर: पाप करनेवालों की राय नहीं मानता है। वह उनके विचारों और सुझावों के अनुसार अपना जीवन नहीं जीता है। नहीं चलता,
और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता;
और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है!
2 परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता;
और उसकी व्यवस्था पर रात-दिन ध्यान करता रहता है।
3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती पानी की धाराओं के किनारे लगाया गया है†वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती पानी की धाराओं के किनारे लगाया गया है: वह वृक्ष अपने आप नहीं उगा है वह ऐसा वृक्ष है जो एक मनोवांछित स्थान में लगाया गया है और बड़ी सावधानी से उसका पालन-पोषण किया गया है।
और अपनी ऋतु में फलता है,
और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं।
और जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।
4 दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते,
वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है।
5 इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे,
और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे;
6 क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है,
परन्तु दुष्टों का मार्ग नाश हो जाएगा।
*1:1 योजना पर: पाप करनेवालों की राय नहीं मानता है। वह उनके विचारों और सुझावों के अनुसार अपना जीवन नहीं जीता है।
†1:3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती पानी की धाराओं के किनारे लगाया गया है: वह वृक्ष अपने आप नहीं उगा है वह ऐसा वृक्ष है जो एक मनोवांछित स्थान में लगाया गया है और बड़ी सावधानी से उसका पालन-पोषण किया गया है।