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अंतर्जातीय विवाह
1 जब यह सब पूरा हो चुका, प्रशासकों ने आकर मुझसे कहा, “इस्राएलियों ने, पुरोहितों ने तथा लेवियों ने स्वयं को इस देश के मूल निवासियों, कनानियों, हित्तियों, परिज्ज़ियों, यबूसियों, अम्मोनियों, अमोरी तथा मोआबियों की घृणित जीवनशैली से अलग नहीं रखा है. 2 क्योंकि उन्होंने उनकी कुछ कन्याओं से विवाह कर लिया है तथा कुछ का विवाह अपने पुत्रों से कर दिया है; परिणामस्वरूप यह पवित्र, अलग किया हुआ राष्ट्र इन राष्ट्रों में मिल चुका है. सच तो यह है कि शासक और अधिकारी इस विश्वासघात में सबसे आगे रहे हैं.”
3 यह सुनकर मैंने अपना वस्त्र और बागा फाड़ दिया तथा सिर के कुछ बाल तथा दाढ़ी के कुछ बाल भी नोच दिए और निराश होकर बैठ गया. 4 उस समय वे सभी, जो इन बंधुआई से आए लोगों के इस विश्वासघात के कारण भयभीत हो गए थे, मेरे पास इकट्ठे हो गए. मैं शाम तक निराश बैठा रहा.
5 जब सांझ की बलि का समय हो गया, मैं अपने विलाप की दशा से उठा. मेरे वे वस्त्र फटे हुए ही थे; मैंने घुटनों पर आ याहवेह, अपने परमेश्वर की ओर हाथ बढ़ा दिए 6 और यह दोहाई दी:
“मेरे परमेश्वर, मैं इतना लज्जित और परेशान हूं, कि मैं आपकी ओर आंख तक नहीं उठा सकता, मेरे परमेश्वर, हमारा अधर्म तो हमारे सिरों से भी ऊपर उठ चुका है तथा हमारे दोष तो आकाश तक पहुंच चुके हैं. 7 हमारे पूर्वजों के समय से लेकर आज तक हम घोर दोष में डूबे हुए हैं, हमारे अधर्म के कारण हमें, हमारे राजाओं को तथा हमारे पुरोहितों को अन्य राष्ट्रों की तलवार, बंधुआई, लूट तथा लज्जा का सामना करना पड़ा है तथा यह स्थिति आज भी वही है.
8 “किंतु अब, याहवेह हमारे परमेश्वर ने कुछ समय के लिए हम पर कृपादृष्टि की है. आपने हमारे लिए एक भाग छोड़ रखा है, कि हमें आपके पवित्र स्थान में जगह मिल सके, कि परमेश्वर हमारी आंखों में नई रोशनी देकर हमारी बंधुआई में हमें कुछ शांति दें. 9 क्योंकि सच यह है कि हम तो सिर्फ दास ही हैं; फिर भी परमेश्वर ने हमें छोड़ नहीं दिया, बल्कि हमें फारस के राजाओं की नज़रों में दया प्रदान की है, कि हम ताज़गी पाकर अपने परमेश्वर के भवन को दोबारा बना सकें, कि हम खंडहरों को सुधारते हुए यहूदिया एवं येरूशलेम के लिए शहरपनाह खड़ी कर सकें.
10 “अब, हमारे परमेश्वर, इसके बाद हमारे सामने कहने के लिए कुछ भी बचा नहीं है. हमने तो आपकी आज्ञाएं तोड़ दी हैं, 11 जो हमें आपने अपने सेवकों, उन भविष्यवक्ताओं के द्वारा इन शब्दों में दी थी ‘तुम लोग जिस देश पर अधिकार करने के लक्ष्य से उसमें प्रवेश कर रहे हो, एक अशुद्ध देश है, जिसे उन राष्ट्रों के लोगों ने अशुद्ध कर दिया है, उनके घिनौने कामों ने इस देश को एक छोर से दूसरे छोर तक अपनी ही अशुद्धताओं से भर दिया है. 12 इसलिये अब न तो अपनी पुत्रियां उनके पुत्रों की पत्नियां होने के लिए दोगे और न ही उनकी पुत्रियां अपने पुत्रों की पत्नियां होने के लिए लोगे. कभी भी उनकी शांति की दिशा में कोई कोशिश न करना और न उनके बलवंत होने के लिए कोई सहायता ही देना. इससे तुम बलवान होते जाओगे तथा भूमि की सबसे अच्छी उपज को खाते हुए, अपनी संतानों के लिए सदा की मीरास छोड़ सकोगे.’
13 “जबकि सच यही है कि हम पर यह स्थिति सिर्फ हमारे ही बुरे कामों और घोर अपराधों के कारण आई है. इतना होने पर भी परमेश्वर, आपने हमारे अधर्म के प्रति सही दंड देने में धीरज बनाए रखा और हमें यह भाग सौंप दिया है. 14 क्या हमारा दोबारा आपके आदेशों को त्याग कर घृणित जीवन बिताने वाले लोगों के साथ वैवाहिक संबंध रखना सही होगा? क्या आपका हम पर क्रोधित होना, हां, यहां तक क्रोधित हो जाना, जिससे आपके द्वारा हमें नाश कर देने में कुछ बाकी न रह जाए और न ही कोई रह जाए. 15 याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर, आप तो धर्मी हैं. हम तो सिर्फ आज यहां बच निकले भाग ही है. हम स्वीकार करते हैं हम आपके सामने दोषियों के रूप में उपस्थित हैं, जबकि इस स्थिति में तो कोई भी आपके सामने ठहर नहीं सकता.”