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पाप, पश्चात्ताप और उद्धार 
  1 याहवेह का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सकें,  
न ही वह बहरे हो चुके कि सुन न सकें.   
 2 परंतु तुम्हारे बुरे कामों ने  
तुम्हारे एवं परमेश्वर के बीच में दूरी बना दी है;  
उनके मुंह को उन्होंने तुम्हारे ही पापों के कारण छिपा रखा है,  
कि वह नहीं सुनता.   
 3 खून से तुम्हारे हाथ तथा अधर्म से तुम्हारी उंगलियां दूषित हो चुकी हैं,  
तुम्हारे होंठों ने झूठ बोला है.  
तुम्हारी जीभ दुष्टता की बातें कहती है.   
 4 कोई भी धर्म व्यवहार में नहीं लाता;  
कोई भी सच्चाई से मुकदमा नहीं लड़ता.  
वे झूठ बोलते हैं और छल पर भरोसा रखते हैं;  
वे अनिष्ट का गर्भधारण करते हैं तथा पाप को जन्म देते हैं.   
 5 वे विषैले सांप के अंडे सेते हैं  
तथा मकड़ी का जाल बुनते हैं.  
जो कोई उनके अण्डों का सेवन करता है, उसकी मृत्यु हो जाती है,  
तथा कुचले अंडे से सांप निकलता है.   
 6 उनके द्वारा बुने गए जाल से वस्त्र नहीं बन सकते;  
अपनी शिल्पकारी से वे अपने आपको आकार नहीं दे सकते.  
उनके काम तो अनर्थ ही हैं,  
उनके हाथ से हिंसा के काम होते हैं.   
 7 उनके पैर बुराई करने के लिए दौड़ते हैं;  
निर्दोष की हत्या करने को तैयार रहते हैं.  
उनके विचार व्यर्थ होते हैं;  
उनका मार्ग विनाश एवं उजाड़ से भरा है.   
 8 शांति का मार्ग वे नहीं जानते;  
न उनके स्वभाव में न्याय है.  
उन्होंने अपने मार्ग को टेढ़ा कर रखा है;  
इस मार्ग में कोई व्यक्ति शांति न पायेगा.   
 9 इस कारण न्याय हमसे दूर है,  
धर्म हम तक नहीं पहुंचता.  
हम उजियाले की राह देखते हैं, यहां तो अंधकार ही अंधकार भरा है;  
आशा की खोज में हम अंधकार में आगे बढ़ रहे हैं.   
 10 हम अंधों के समान दीवार को ही टटोल रहे हैं,  
दिन में ऐसे लड़खड़ा रहे हैं मानो रात है;  
जो हृष्ट-पुष्ट हैं उनके बीच हम मृत व्यक्ति समान हैं.   
 11 हम सभी रीछ के समान गुर्राते हैं;  
तथा कबूतरों के समान विलाप में कराहते हैं.  
हम न्याय की प्रतीक्षा करते हैं, किंतु न्याय नहीं मिलता;  
हम छुटकारे की राह देखते हैं, किंतु यह हमसे दूर है.   
 12 हमारे अपराध आपके सामने बहुत हो गये हैं,  
हमारे ही पाप हमारे विरुद्ध गवाही दे रहे हैं:  
हमारे अपराध हमारे साथ जुड़ गए हैं,  
हम अपने अधर्म के काम जानते हैं:   
 13 हमने याहवेह के विरुद्ध अपराध किया, हमने उन्हें ठुकरा दिया  
और परमेश्वर के पीछे चलना छोड़ दिया,  
हम अंधेर और गलत बातें करने लगे,  
झूठी बातें सोची और कही भी है.   
 14 न्याय को छोड़ दिया है,  
तथा धर्म दूर खड़ा हुआ है;  
क्योंकि सत्य तो मार्ग में गिर गया है,  
तथा सीधाई प्रवेश नहीं कर पाती है.   
 15 हां यह सच है कि सच्चाई नहीं रही,  
वह जो बुराई से भागता है, वह खुद शिकार हो जाता है.  
न्याय तथा मुक्ति याहवेह ने देखा तथा उन्हें यह सब अच्छा नहीं लगा  
क्योंकि कहीं भी सच्चाई और न्याय नहीं रह गया है.   
 16 उसने देखा वहां कोई भी मनुष्य न था,  
और न कोई मध्यस्थता करनेवाला है;  
तब उसी के हाथ ने उसका उद्धार किया,  
तथा उसके धर्म ने उसे स्थिर किया.   
 17 उन्होंने धर्म को कवच समान पहन लिया,  
उनके सिर पर उद्धार का टोप रखा गया;  
उन्होंने पलटा लेने का वस्त्र पहना  
तथा उत्साह का वस्त्र बाहर लपेट लिया.   
 18 वह उनके कामों के अनुरूप ही,  
उन्हें प्रतिफल देंगे  
विरोधियों पर क्रोध  
तथा शत्रुओं पर बदला देंगे.   
 19 तब पश्चिम दिशा से, उन पर याहवेह का भय छा जाएगा,  
तथा पूर्व दिशा से, उनकी महिमा का भय मानेंगे.  
जब शत्रु आक्रमण करेंगे  
तब याहवेह का आत्मा उसके विरुद्ध झंडा खड़ा करेगा.   
 20 “याकोब वंश में से जो अपराध से मन फिराते हैं,  
ज़ियोन में एक छुड़ाने वाला आयेगा,”  
यह याहवेह की वाणी है.   
 21 “मेरी स्थिति यह है, उनके साथ मेरी वाचा है,” यह याहवेह का संदेश है. “मेरा आत्मा, जो तुम पर आया है, तथा मेरे वे शब्द, जो मैंने तुम्हारे मुंह में डाले; वे तुम्हारे मुंह से अलग न होंगे, न तुम्हारी संतान के मुंह से, न ही तुम्हारी संतान की संतान के मुंह से, यह सदा-सर्वदा के लिए आदेश है.” यह याहवेह की घोषणा है.