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व्यवहारिक चेतावनियां 
  1 मेरे पुत्र, यदि तुम अपने पड़ोसी के लिए ज़मानत दे बैठे हो,  
किसी अपरिचित के लिए वचनबद्ध हुए हो,   
 2 यदि तुम वचन देकर फंस गए हो,  
तुम्हारे ही शब्दों ने तुम्हें विकट परिस्थिति में ला रखा है,   
 3 तब मेरे पुत्र, ऐसा करना कि तुम स्वयं को बचा सको,  
क्योंकि इस समय तो तुम अपने पड़ोसी के हाथ में आ चुके हो:  
तब अब अपने पड़ोसी के पास चले जाओ,  
और उसको नम्रता से मना लो!   
 4 यह समय निश्चिंत बैठने का नहीं है,  
नींद में समय नष्ट न करना.   
 5 इस समय तुम्हें अपनी रक्षा उसी हिरणी के समान करना है, जो शिकारी से बचने के लिए अपने प्राण लेकर भाग रही है,  
जैसे पक्षी जाल डालनेवाले से बचकर उड़ जाता है.   
 6 ओ आलसी, जाकर चींटी का ध्यान कर;  
उनके कार्य पर विचार कर और ज्ञानी बन जा!   
 7 बिना किसी प्रमुख,  
अधिकारी अथवा प्रशासक के,   
 8 वह ग्रीष्मकाल में ही अपना आहार जमा कर लेती है  
क्योंकि वह कटनी के अवसर पर अपना भोजन एकत्र करती रहती है.   
 9 ओ आलसी, तू कब तक ऐसे लेटा रहेगा?  
कब टूटेगी तेरी नींद?   
 10 थोड़ी और नींद, थोड़ा और विश्राम,  
कुछ देर और हाथ पर हाथ रखे हुए विश्राम,   
 11 तब देखना निर्धनता कैसे तुझ पर डाकू के समान टूट पड़ती है  
और गरीबी, सशस्त्र पुरुष के समान.   
 12 बुरा व्यक्ति निकम्मा ही सिद्ध होता है,  
उसकी बातों में हेरा-फेरी होती है,   
 13 वह पलकें झपका कर,  
अपने पैरों के द्वारा  
तथा उंगली से इशारे करता है,   
 14 वह अपने कपटी हृदय से बुरी युक्तियां सोचता  
तथा निरंतर ही कलह को उत्पन्न करता रहता है.   
 15 परिणामस्वरूप विपत्ति उस पर एकाएक आ पड़ेगी;  
क्षण मात्र में उस पर असाध्य रोग का प्रहार हो जाएगा.   
 16 छः वस्तुएं याहवेह को अप्रिय हैं,  
सात से उन्हें घृणा है:   
 17 घमंड से भरी आंखें,  
झूठ बोलने वाली जीभ,  
वे हाथ, जो निर्दोष की हत्या करते हैं,   
 18 वह मस्तिष्क, जो बुरी योजनाएं सोचता रहता है,  
बुराई के लिए तत्पर पांव,   
 19 झूठ पर झूठ उगलता हुआ साक्षी तथा वह व्यक्ति,  
जो भाइयों के मध्य कलह निर्माण करता है.   
व्यभिचार के विरुद्ध चेतावनी 
  20 मेरे पुत्र, अपने पिता के आदेश पालन करते रहना,  
अपनी माता की शिक्षा का परित्याग न करना.   
 21 ये सदैव तुम्हारे हृदय में स्थापित रहें;  
ये सदैव तुम्हारे गले में लटके रहें.   
 22 जब तुम आगे बढ़ोगे, ये तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे;  
जब तुम विश्राम करोगे, ये तुम्हारे रक्षक होंगे;  
और जब तुम जागोगे, तो ये तुमसे बातें करेंगे.   
 23 आदेश दीपक एवं शिक्षा प्रकाश है,  
तथा ताड़ना सहित अनुशासन जीवन का मार्ग हैं,   
 24 कि बुरी स्त्री से तुम्हारी रक्षा की जा सके  
व्यभिचारिणी की मीठी-मीठी बातों से.   
 25 मन ही मन उसके सौंदर्य की कामना न करना,  
उसके जादू से तुम्हें वह अधीन न करने पाए.   
 26 वेश्या मात्र एक भोजन के द्वारा मोल ली जा सकती है*या वेश्या तुमको गरीबी में ले जाएगी!,  
किंतु दूसरे पुरुष की औरत तुम्हारे खुद के जीवन को लूट लेती है.   
 27 क्या यह संभव है कि कोई व्यक्ति अपनी छाती पर आग रखे  
और उसके वस्त्र न जलें?   
 28 अथवा क्या कोई जलते कोयलों पर चले  
और उसके पैर न झुलसें?   
 29 यही नियति है उस व्यक्ति की, जो पड़ोसी की पत्नी के साथ यौनाचार करता है;  
उसके साथ इस रूप से संबंधित हर एक व्यक्ति का दंड निश्चित है.   
 30 लोगों की दृष्टि में वह व्यक्ति घृणास्पद नहीं होता  
जिसने अतिशय भूख मिटाने के लिए भोजन चुराया है,   
 31 हां, यदि वह चोरी करते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे उसका सात गुणा लौटाना पड़ता है,  
इस स्थिति में उसे अपना सब कुछ देना पड़ सकता है.   
 32 वह, जो व्यभिचार में लिप्त हो जाता है, निरा मूर्ख है;  
वह, जो यह सब कर रहा है, स्वयं का विनाश कर रहा है.   
 33 घाव और अपमान उसके अंश होंगे,  
उसकी नामधराई मिटाई न जा सकेगी.   
 34 ईर्ष्या किसी भी व्यक्ति को क्रोध में भड़काती है,  
प्रतिशोध की स्थिति में उसकी सुरक्षा संभव नहीं.   
 35 उसे कोई भी क्षतिपूर्ति स्वीकार्य नहीं होती;  
कितने भी उपहार उसे लुभा न सकेंगे.