12
1 अऊर इत्ता म हजार हुन लोग हुन कि भीड़ लग गई, इत्ते का लोग एक दुसरा हुन को कुचल रयो हतो। ते यीसु पहलो अपनो चेला हुन से कह लगो, “फरीसी हुन ख कपटी जसा खमीर से होसियार रहनो।” 2 कुछ ढको नी, जे खोलो नी जान को; अर न कुछ लूको हैं, जे समझो नी जान को। 3 एकोलाने जे कई तुम न अंधेरो म कय्हो हैं, उ उजेलो म सुनायो जाएगो; अर जो तुम न कोठरी हुन म कान ही कान म बोल्यो हैं उ छत पर से प्रचार कियो जाएगो।
कोसे से डेर?
(मत्ती 10:28-31)
4 मी तुम से जो मोरा दोस्त आय कहू हैं कि जो सरीर का चोट *घात करत हैं पर ओको पिछे अर कुछ नी कर सकत, ओसे मत डर। 5 मी तुम ख जताऊ हैं कि तुमका कोसे डर नो चाहिए, घात करन का बाद जेका नरक म डालन को अधिकार हैं, ओ से ही डर; हाँ मी तो से कहूँ हैं, ओ से ही डरनू।
6 का दो पैसा कि पाँच गऊरैया नी बाकी? तेभी परमेस्वर ओमा से एक का भी नी भुला। 7 तुमारो मुण्डी का सब बाल भी गिनिया वाला हैं एकोलाने डर नो मत, तुम ढ़ेर सारा गऊरैया से बढ़ ख हैं।
यीसु का माननू या नी माननू
(मत्ती 10:32,33; 12:32; 10:19,20)
8 “मी तो से कहू हैं, जो कोई अदमी को सामने मोखा मान लेहे ओ ख इंसान को पोरिया भी परमेस्वर का स्वर्गदूत का सामने मान लेहे।” 9 पर जो अदमी को सामे मोरो इंकार करे ओ ख मी भी परमेस्वर को स्वर्गदूत को सामे इंकार करूगो।
10 “जो कोई इंसान को पोरिया को खिलाप म कोई बुरी बात कहे, ओको वी अपराध माप कियो जाहे, पर जो सुध्द आत्मा की बुराई करे, ओको अपराध छमा नी कियो जाहे।
11 “जब अदमी हुन तुमका प्रार्थना घर अर हाकिमो अर अधिकारी हुन को सामे ले जाहे, ते चिन्ता नी करनु कि हम कसो रिती से या का उत्तर देहे, या का कहे। 12 काहेकि सुध्द आत्मा उत्तीच बखत तुमका सब सिका देहे कि का कहनो चाहिए।”
एक धनवान वाले अर मूर्ख का उदाहरन
13 फिर भीड़ म से एक न ओसे कहयो, “अरे गुरू मोरो भई से कहूँ की बाप की धन-दऊलत मोरो संग बाँट ल।”
14 ओ न ओसे कहयो, “व्यक्ति, को न मो ख तुमरो न्याय करत न वालो या बाँटन वालो नियुक्त कियो हैं?” 15 अर ओ न ओसे कहयो, “सतर ख रहनो, अर सब प्रकार को लोभ से अपनो तुम ख बचा ख रखनू; काहेकि कि कोई को जीवन ओकी धन-दऊलत को ज्यादा होनो से नी होवा।”
16 फिर यीसु न उन ख यू उदाहरन सुनायो; “कोई धनवान कि जगह पर बेजा फसल भई।” 17 एको बाद उ अपनो मन म विचार करन लग गयो, मी का करूँ? काहेकि मोरो यहाँ जगह नी जहाँ अपनो अनाज अऊर कुछ रखूँ। 18 अर ओ न कय्हो, मी असो करुँगो मी अपनो बखारी का तोड़ ख ओसे बड़ी बनाऊँगो; अर वहाँ अपन सब अनाज अर धन-दऊलत रखूगो; 19 अर अपनो मन से बोलुगो कि मन, तोरो पास बेजा साल को लाने बेजा दऊलत धरी हैं; चैन कर खा पी, सुख से रह। 20 पर परमेस्वर न ओसे कय्हो, अरे मुर्ख! या रात तोरी जान तो से ले लियो जाहे; तब जो कुछ तू न जोड़ियो हैं उ कोको होय?
21 असो ही उ इंसान भी हैं जो अपनो लाने पैसा जोड़ा हैं, “पर परमेस्वर की नजर म धनी नी हाय”
परमेस्वर पर भरोसा रखो
(मत्ती 6:25-34)
22 फिर ओ न अपना चेला हुन से कय्हो, “एकोलाने मी तुम से बोलू हैं, अपनो जिन्दगी को लाने यू चिन्ता करनो कि हम का खाएँगो; न अपनो सरीर की, कि हम का पहिने।” 23 काहेकि खाना से जान, अर कपड़ा से सरीर बढ़ ख हैं। 24 कोऊवा हुन पर ध्यान देव; वी न बोवा हैं, न काटा नी उ ख बखारी अऊर नी बखारी हुन होवा हैं! तेभी परमेस्वर उन ख खिलावा हैं। तुमारो का दरजा इन पक्छी हुन से कही जादा नी हैं। 25 तुम म से असो कोन हैं जे चिन्ता करनो से अपनी उमर म एक घड़ी भी बढ़ा सकह हैं? 26 एकोलाने यदि तुम सबसे छोटो काम भी नी कर सका, ते अऊर बात हुन को लाने कहे चिन्ता करा हैं? 27 जंगल का फूल हुन पर ध्यान देव कि वी कसा बड़ा हैं: वी न तो मेहनत करा हैं न काता हैं; तेबी मी तुम से कहूँ हैं कि सुलैमान भी अपनो पुरो राज्य म, उनमा से कोई एक को समान कपड़ा पहिनिया नी हतो रह 28 एकोलाने जब भी परमेस्वर बररा कि घास ख, जे आज हैं अर कल आगी म झोकी जाएगो, असो पहिनावा हैं; ते अरे अल्प विस्वासी हुन, उ तुम ख काहे नी पहिना हे?
29 अर तुम यू बात की ताक म मत रहनू की का खाएगो अर का पाएगो, अर न मन संका करनो 30 काहेकि दुनिया की जात हुन यी सब चीज हुन की खोज म रहवा हैं: अर तुमरो परमेस्वर बाप जाना हैं कि तुम ख यी चीज हुन की जरूरत हैं। 31 पर ओखा राज की खोज म रहनू, ते यी चीज भी तुम ख मिल जाएगो।
स्वर्ग म धन
(मत्ती 6:19-21)
32 “अरे छोटा झुंड, मत डर; काहेकि तुम्हारो बाप का यू भयो हैं, कि तुमका राज दे। 33 अपनी धन-दऊलत बेच ख दान कर देव; अर अपनो लाने असो बटुवा बनाव जो जुनना नी होवा, एकोमतलब स्वर्ग म असो धन इकट्ठो करो जो की घटा नी अर जे को जोने चोर नी जावा, अर कीड़ा नी बिगड़ सका। 34 काहेकि जहाँ तुमारो धन रहे, वही तुमरो मन भी लगो रहे।
जगते रहेनो
35 “अऊर तुमारो कमरे बन्धी रया अऊर तुमारो दिया जलते रह, 36 अर तुम ख वी अदमी हुन को जसो बननो चाहिए, जो अपनो मालिक की रस्ता देख रया होय कि उ सादी से कब लउटेगो कि जब उ आ ख दरवाजा खटखटाए ते जादा ओको लाने खोल देऊ। 37 धन्य हैं वी दास जेको मालिक आय जगते देखे मी तुम ख सच कहूँ हूँ कि उ कम्मर बाँध ख उन ख खाना खलान ख बैठाले, अर नजीक आँख उनकी सेवा करेगों। 38 अदि उ रात को दुसरो या तीसरो पहर म आ ख उन ख जगते देखे ते वी दास धन्य हैं। 39 पर तुम यु समझ लेनो, की अदि घर को मालिक (स्वामी) जानतो कि चोर कित्ती घड़ी आएँगो, ते जगते रहनू अर अपनो घर म चोरी नी होन देन को 40 तुम भी तैयार रहनो काहेकि जे बखत तुम सोचा भी नी उन्ती बखत इंसान को पोरिया आ जाएगो।”
भरोसा को लायक अऊर अविस्वसी को लायक दास
(मत्ती 24:45-51)
41 तब पतरस न कय्हो, “अरे प्रभु, का यू उदाहरन तू हम से ही या सब ख कहवा हैं।”
42 प्रभु न कय्हो, “वी भरोसा अर बुध्दिमान भण्डारी कोन हैं, जेको स्वामी ओखा नऊकर चाकर हुन पर सरदार ठहरायो कि उन का बखत पर खान कि समान दे।” 43 भलो हैं वी दास, जेका ओको मालिक आय ख असो ही करत पायो। 44 मी तो से सच कहूँ हैं, वी ओ ख अपनी सारी धन-संपति पर हक ठहराएगो। 45 पर अदि उ सेवक सोचन लग जाहे कि मोरो मालिक आनो म देर कर रहयो हैं अर दास हुन अर दासी हुन का मारन पिटन लग गयो, अर खान-पीवन अर पियक्कड़ होन लगियो 46 ते उ दास को मालिक असो दिन जब उ ओकी बाट जोहता नी रह, अऊर असी बखत जेसे उ पता नी हो आहे अऊर ओ ख भारी दण्ड देकर ओको भाग अविस्वासी हुन ख संग ठहराएगो।
47 वी दास जे अपनो मालिक कि इच्छा जानत रह हता अर तैयार नी रहा अर नी ओकी इच्छा को अनुसार चलो, अर बेजा मार खाएगो। 48 पर जे न जानकर मार खान को योग्य काम करा उ थोड़ी मार खाएगो। एकोलाने जे ख बेजा दियो गयो हैं, ओसे बेजा माँगियो जाहे; अर जे ख बेजा सऊपियो गयो हैं ओसे बेजा लियो जाएगो।
यीसु को आन को बारे म
(मत्ती 10:34-36)
49 “मी दुनिया पर आग लगान आयो हैं अऊर का चाहूँ हैं मी केवल यू कि अभी आगी परचा जाय हैं! 50 मो ख तो एक पानी बपतिस्मा लेन हैं अर जब तक उ नी हो लेन को तब तक मी कसो दुख म रहूंगो। 51 का तुम समझा हैं कि मी जमीन प सान्ति या मिलाप करन ख आयो हूँ? मी तोसे कहू हैं अर; नी, पर अलग करान आयो हैं। 52 काहेकि अब से एक ही घर म पाँच जन आपस म बैर रखेगो, तीन दो से अर दो तीन से। 53 बाप पोरिया से अर पोरिया बाप से बैर रखोगो: माय-पोरी से, अर पोरी माय से, सास बहू से, बहू सास से रखोगी।”
बखत को बदलाव
(मत्ती 16:2,3)
54 ओ न भीड़ से भी कय्हो, “जब तुम बददल का तरफ पस्चिम से उठते देखा हैं ते तुरंत कह हो कि बारिस होवन वाली हैं, अर असो ही होवा हैं, 55 अर जब दक्छिनी हवा चलते देखा हैं ते बोला हैं की धूप (लूह) चले, अर असो ही होवा हैं।” 56 अरे कपटी हुन, तुम जमीन अर आकास को रंग-रूप म भेर कर सका हैं, ते यु युग को बारे म काहे भेद करनो नी जाना?
अपनो गवाह देन वालो से समझोता
(मत्ती 5:25,26)
57 “तुम अपनो तुम म ही निर्नय काहे कर लेवा कि उचित का हैं? 58 जब तू अपनो गवाह को संग न्याय करन वालो ख नजीक जा रहे हो, ते मार्ग म ही ओ ख से समझोता करन कि कोसिस कर। कही असो नी हो कि उ तुम ख न्यायाधीस को नजीक खीच ले जाहे अऊर न्यायाधीस तुम ख सिपाई को हवालो कर दे। अऊर सिपाई तुम ख जेल खाना म डाल दे। 59 मी तो से कहूँ हैं कि जब लक तू दमड़ी-दमड़ी भर नी देहे तब लक वहा से छुट नी पावन को।”