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धनवानमन ला चेतउनी
1 हे धनवान मनखेमन, अब मोर बात ला सुनव, तुमन अपन ऊपर अवइया बिपत के कारन रोवव अऊ बिलाप करव। 2 तुम्हर धन-दौलत ह सड़ गे हवय अऊ तुम्हर कपड़ामन ला कीरा खा गे हवय। 3 तुम्हर सोन अऊ चांदी म जंक लग गे हवय, अऊ ये जंक ह तुम्हर बिरूध गवाही दीही अऊ येह तुम्हर देहें ला आगी सहीं जला दीही। तुमन संसार के आखिरी समय म धन बटोरे हवव। 4 देखव! जऊन बनिहारमन तुम्हर खेत के फसल ला लुईन, ओमन के बनी ला तुमन धोखा देके रख ले हवव, एकरसेति ओमन रोवत हवंय, अऊ ओमन के रोवई ह सर्वसक्तिमान परभू के कान तक पहुंच गे हवय। 5 तुमन धरती म भोग-बिलास अऊ सुख के जिनगी बिताय हवव। तुमन बध होय के दिन खातिर अपनआप ला मोटा-ताजा कर ले हवव। 6 तुमन धरमी मनखे ऊपर दोस लगाके ओला मार डारेव। ओह तुम्हर बिरोध नइं करत रिहिस।
धीरज अऊ पराथना
7 एकरसेति, हे भाईमन, परभू यीसू के वापिस आवत तक ले धीरज धरे रहव। देखव, किसान ह कइसने खेत के कीमती फसल के बाट जोहथे अऊ कइसने पहिली अऊ आखिरी बरसा होवत तक धीरज धरे रहिथे। 8 तुमन घलो धीरज धरव, अऊ अपन हिरदय ला मजबूत करव, काबरकि परभू के अवई लकठा म हवय। 9 हे भाईमन, एक-दूसर ऊपर दोस झन लगावव ताकि परमेसर तुमन ला दोसी झन ठहिरावय। देखव, मसीह ह नियाय करे बर बहुंत जल्दी अवइया हवय। ओह दुवारी म ठाढ़े हे सहीं समझव!
10 हे भाईमन, ओ अगमजानीमन ला सुरता करव, जऊन मन परभू के नांव म तुम्हर ले गोठियाईन। दुख के बेरा म ओमन जऊन धीरज धरिन, ओला एक उदाहरन के रूप म लेवव। 11 जइसने कि तुमन जानत हव कि धीरज धरइयामन ला हमन आसीसित मनखे समझथन। तुमन अयूब के धीरज के बारे म तो सुने हवव अऊ परभू ह आखिरी म कइसने ओकर धीरज के परतिफल दीस, ओला घलो जानत हव। परभू ह अब्बड़ किरपालु अऊ दयालु अय।
12 हे मोर भाईमन, जम्मो ले बड़े बात ये अय कि कोनो बात म, तुमन कसम झन खावव—न स्वरग के, न धरती के, अऊ न कोनो आने चीज के। पर तुम्हर गोठ ह “हां” के “हां”, अऊ “नइं” के “नइं” होवय, ताकि तुमन दंड के भागीदार झन होवव।
बिसवास के पराथना
13 कहूं तुमन म कोनो दुखी हवय, त ओह पराथना करय, अऊ कहूं कोनो खुस हवय, त ओह परभू के भजन गावय। 14 कहूं तुमन म कोनो बेमार हवय, त ओह कलीसिया के अगुवामन ला बलावय कि ओमन परभू के नांव म ओकर ऊपर तेल लगाके ओकर बर पराथना करंय। 15 अऊ बिसवास के पराथना ले बिमरहा ह बने हो जाही, अऊ परभू ह ओला ठाढ़ कर दीही। अऊ कहूं ओह पाप घलो करे होही, त ओकर छेमा हो जाही। 16 एकरसेति, तुमन एक-दूसर के आघू म अपन-अपन पाप ला मान लेवव अऊ एक-दूसर बर पराथना करव, ताकि तुम्हर बेमारी ह ठीक हो जावय। धरमी मनखे के पराथना ह सक्तिसाली अऊ परभावी होथे।
17 एलियाह घलो हमरेच सहीं दुख-सुख भोगी मनखे रिहिस। ओह गिड़गिड़ाके पराथना करिस कि पानी झन बरसय, अऊ साढ़े तीन बछर तक ले धरती म पानी नइं गिरिस। 18 तब ओह फेर पराथना करिस कि बरसा होवय, त अकास ले बरसा होईस, अऊ भुइयां म फेर फसल होईस।
19 हे मोर भाईमन, कहूं तुमन ले कोनो सत के रसता ले भटक जावय, अऊ कोनो ओला सही रसता म फेर वापिस ले आवय, 20 त येला जान लेवव कि जऊन कोनो भटके पापी ला सही रसता म फेर वापिस ले आही, ओह ओकर परान ला मिरतू ले बचाही, अऊ बहुंते पाप के छेमा के कारन बनही।