11
सोपर
1 तब नामात के रहइया सोपर ह जबाब दीस:
2 “का ये जम्मो गोठ के जबाब नइं देना चाही?
का ये गोठ कहइया के समरथन करे जावय?
3 का तोर बड़े बोल ले आने मन चुप रहंय?
का तोला कोनो झन डांटय, जब तेंह हंसी उड़ाथस?
4 तेंह परमेसर ले कहिथस, ‘मोर बिसवास म कोनो कमी नइं ए
अऊ मेंह तोर नजर म सुध हवंव।’
5 बने होतिस, परमेसर ह खुद गोठियातिस,
अऊ तोर बिरोध म अपन मुहूं ला खोलतिस
6 अऊ तोर ऊपर बुद्धि के गुपत गोठमन ला परगट करतिस,
काबरकि सत-बुद्धि के दू ठन पहलू हवय।
येला जान ले: परमेसर ह तोर कुछू पापमन ला भुला गे हवय।
7 “का तेंह परमेसर के भेद के बातमन ला समझ सकथस?
का तेंह सर्वसक्तिमान के सीमना के पता पा सकत हस?
8 ओमन स्वरगमन ले घलो ऊंच हवंय—तेंह का कर सकत हस?
ओह तो पाताल-लोक ले जादा गहिरा हवय—तेंह का जान सकत हस?
9 ओमन के नाप ह धरती ले लम्बा
अऊ समुंदर ले घलो जादा चाकर हवय।
10 “कहूं ओह आवय अऊ तोला जेल म डाल देवय
अऊ अदालत लगावय, त कोन ह ओला रोक सकथे?
11 खचित ओह धोखा देवइयामन ला चिन लेथे;
अऊ जब ओह बुरई देखथे, त का ओह ओला धियान नइं देवय?
12 पर मुरूख मनखे ह बुद्धिमान नइं बन सकय,
जइसे कि जंगली गदहा के पीला ह मनखे के रूप म नइं जनम सकय।
13 “तभो ले कहूं तेंह अपन मन ला ओकर कोति लगाथस
अऊ अपन हांथमन ला ओकर कोति पसारथस,
14 यदि तेंह अपन पापमन ला छोंड़ देथस
अऊ अपन डेरा म बुरई ला रहे बर नइं देवस,
15 तब, तेंह निरदोस होके अपन चेहरा ऊपर उठा सकबे;
अऊ तेंह बिगर भय के मजबूत ठाढ़े रहिबे।
16 तेंह खचित अपन दुख ला भुला जाबे,
ओह तोला सिरिप बहा दिये गय पानी कस सुरता रहिही।
17 तोर जिनगी ह मंझनियां ले घलो जादा चमकदार होही,
अऊ अंधियार ह बिहनियां कस हो जाही।
18 तेंह सुरकछित रहिबे, काबरकि तोला आसा होही;
तेंह अपनआप ला देखबे अऊ निरभय होके अराम करबे।
19 जब तेंह लेटबे, त तोला कोनो नइं डराहीं,
अऊ बहुंते झन तोर बर मया देखाहीं।
20 पर दुस्ट मनखेमन के आंखीमन अंधरा हो जाहीं,
अऊ ओमन ला बचके निकले के कोनो रसता नइं दिखही;
ओमन ये आसा करहीं कि ओमन मर जावंय।”