20
सोपर
तब नामात के रहइया सोपर ह जबाब दीस:
“मोर बियाकुल बिचार ह मोला उकसावत हे कि मेंह जबाब दंव
काबरकि मेंह बहुंत असांत हंव।
मेंह एक डांट सुनेंव, जेकर ले मोर अपमान होथे,
अऊ मोर समझ ह जबाब देय बर मोला उकसावत हे।
 
“खचित तेंह जानत हस कि पुराना जमाना ले येह कइसे हवय,
याने जब ले धरती के ऊपर मनखे*या आदम के सिरिस्टी करे गीस,
दुस्टमन के खुसी ह थोरकून समय के अय,
अऊ भक्तिहीन मनखेमन के आनंद छिन भर के होथे।
हालाकि भक्तिहीन मनखे के घमंड ह अकास तक हबरथे
अऊ ओकर मुड़ ह बादरमन ला छूथे,
पर ओह अपन खुद के संडास सहीं सदाकाल बर नास हो जाही;
जऊन मन ओला देखे रिहिन, ओमन पुछहीं, ‘ओह कहां हवय?’
सपना कस ओह उड़ जाथे, अऊ फेर कभू नइं मिलय,
रात के एक दरसन कस ओह दूरिहा हो जाही।
जऊन आंखी ह ओला देखे रिहिस, ओह ओला फेर नइं देखही;
ओह अपन जगह म फेर नइं देखे जाही।
10 ओकर लइकामन गरीबमन ले दया के आसा करहीं;
ओकर खुद के हांथमन ओकर धन वापिस दीहीं।
11 जऊन जवानी के बल ह ओकर हाड़ामन म भरे रहिथे,
ओह ओकर संग धुर्रा म मिल जाही।
 
12 “हालाकि बुरई ह ओकर मुहूं म मीठ लगथे
अऊ ओह ओला अपन जीभ के तरी म लुकाके रखथे,
13 हालाकि ओह ओला छोंड़े बर नइं चाहय
अऊ ओला अपन मुहूं म रखे रहिथे,
14 तभो ले ओकर जेवन ह पेट म करू हो जाही;
येह ओकर भीतर म सांप के जहर हो जाही।
15 जऊन धन ला ओह लील ले रिहिस, ओह ओला निकाल दीही;
परमेसर ह ओला ओकर पेट म ले उल्टी करवा दीही।
16 ओह सांपमन के जहर ला चुहकही;
जहरिला सांप के दांतमन ओला मार डारहीं।
17 ओह ओ झरना अऊ नदियामन के आनंद नइं उठा सकही,
जेमा मंधरस अऊ दही के धार बोहावत हवय।
18 जेकर बर ओह कठोर मेहनत करिस, ओला बिगर खाय ओह वापिस करही;
ओह अपन धंधा ले मिले लाभ के आनंद नइं उठा सकही।
19 काबरकि ओह कंगालमन ऊपर अतियाचार करे हवय अऊ ओमन ला बेसहारा छोंड़ दे हवय;
ओह ओ घरमन ला हड़प ले हवय, जऊन ला ओह नइं बनाय रिहिस।
 
20 “खचित, ओकर लालसा के कभू अन्त नइं होवय;
ओह अपन धन के दुवारा अपनआप ला नइं बंचा सकय।
21 खाय बर ओकर लिये कुछू नइं बांचे हवय;
ओकर अमीरी ह बने नइं रहय।
22 ओकर धन अऊ सफलता के समय म ओला दुख ह घेर लीही;
दुरगति के जम्मो चीज ओकर ऊपर आ पड़ही।
23 जब ओह अपन पेट ला भर चुके होही,
तभे परमेसर ह अपन भारी रिस ला ओकर ऊपर देखाही
अऊ ओकर ऊपर दुख ही दुख लानही।
24 हालाकि ओह लोहा के हथियार ले बच निकलथे,
फेर कांस के बान ह ओला छेद डारथे।
25 ओह ये बान ला तीरके ओकर पीठ ले निकालथे,
चिकचिकावत छोर ह ओकर करेजा ले बाहिर निकलथे।
ओकर ऊपर आतंक छा जाही;
26 ओकर धन-संपत्ति बर घिटके अंधियार ह बाट जोहथे।
बिगर हवा के बरत आगी ह ओला भसम कर दीही
अऊ ओकर डेरा म बांचे चीजमन ला नास कर दीही।
27 अकास ह ओकर अपराध ला परगट करही;
धरती ह ओकर बिरोध म ठाढ़ होही।
28 पानी के बाढ़ ह ओकर घर ला बोहाके ले जाही,
परमेसर के रिस के दिन ओकर पूंजी ह बोहा जाही।
29 परमेसर ह दुस्ट मनखे के हालत अइसने करथे,
परमेसर कोति ले ओमन बर ये किसम के उत्तराधिकार ठहिराय गे हवय।”

*20:4 या आदम