31
1 “मेंह अपन आंखीमन के संग करार करे हंव
कि मेंह कोनो जवान माईलोगन ला लालसा ले नइं देखंव।
2 स्वरग ले परमेसर के दुवारा हमन ला का बांटा मिले हे,
या ऊंच म बिराजे सर्वसक्तिमान ले हमन ला मिले संपत्ति का ए?
3 का येह दुस्टमन बर बिनास,
अऊ गलत करइयामन बर बिपत्ति नो हय?
4 का परमेसर ह मोर चालचलन ला नइं देखय
अऊ मोर कदम-कदम ला नइं गनय?
5 “कहूं मेंह लबारी आचरन करे हंव
या मोर गोड़ ह धोखा देय बर दऊड़े हे—
6 त परमेसर ह मोला सच के तराजू म तऊल लेवय
अऊ ओह जान लेवय कि मेंह निरदोस अंव—
7 कहूं मोर कदम ह ओकर डहार ले भटक गे हवय,
कहूं मोर मन ह मोर आंखी के मुताबिक चले हवय,
या कहूं मोर हांथमन असुध हो गे हवंय,
8 त जऊन कुछू मेंह बोये हंव, ओला आने मन खावंय,
अऊ मोर फसल ला उखान दिये जावय।
9 “कहूं मोर मन ह कोनो माईलोगन के दुवारा बहकाय गे हे,
या कहूं मेंह अपन परोसी के मुंहटा म घात लगाके बईठे हंव,
10 त मोर घरवाली ह आने आदमी के अनाज पीसय,
अऊ आने आदमीमन ओकर संग सुतंय।
11 काबरकि ओह दुस्ट काम होतिस,
अऊ नियायधीस के दुवारा पाप के दंड मिलतिस।
12 येह एक आगी ए, जऊन ह जलाके भसम कर देथे;
येह मोर कटनी के फसल ला जरी ले उखान देतिस।
13 “कहूं मेंह अपन कोनो सेवक के संग अनियाय करे हंव,
चाहे दास हो या दासी,
जब ओमन मोर बिरोध म मोर करा सिकायत करिन,
14 तब में का करहूं, जब परमेसर ह मोर ले जबाब मांगही?
मेंह का जबाब दूहूं, जब ओह मोर ले लेखा लीही?
15 जऊन ह मोला दाई के गरभ म बनाईस, का ओहीच ह ओमन ला नइं बनाईस?
का ओही ह हमन दूनों ला हमर दाईमन के गरभ म नइं रचिस?
16 “कहूं मेंह गरीबमन के ईछा ला पूरा नइं करे हंव
या मोर कारन बिधवामन म निरासा छा गीस,
17 कहूं मेंह खाना खाय म सुवारथी हो गे हंव,
अऊ खाना ला अनाथमन संग नइं बांटे हंव—
18 पर में तो ओमन ला अपन जवानी ले अइसे पालें-पोसें, जइसे एक ददा ह करथे,
अऊ मेंह अपन लइकापन ले ही बिधवा ला रसता देखावत हंव—
19 कहूं मेंह कोनो ला ओनहा के कमी के कारन नास होवत देखेंव,
या कोनो जरूरतमंद ला बिगर ओनहा के देखेंव,
20 त ओमन ला मेंह अपन भेड़ के ऊन ले गरम रखे के कारन
ओमन मोला हिरदय ले आसीरबाद नइं दे हवंय,
21 कहूं मेंह अनाथमन ऊपर अपन हांथ उठाय हंव,
ये जानके कि अदालत म मोर पहुंच हवय,
22 त मोर बाहां ह कंधा ले उखनके गिर जावय,
येह कोहनी ले टूटके अलग हो जावय।
23 काबरकि मेंह परमेसर कोति ले अवइया बिनास ले डरेंव,
अऊ ओकर सोभा के डर के कारन मेंह अइसे नइं कर सकेंव।
24 “कहूं मेंह अपन भरोसा सोन ऊपर रखे हंव
या चोखा सोन ले कहे हंव, ‘तेंह मोर आसरा अस,’
25 कहूं मेंह अपन बहुंत धन,
या अपन हांथ के बहुंत कमई ऊपर आनंद मनाय हंव,
26 कहूं मेंह सूरज के चमकई,
या चंदा ला सोभा म चलत देखेंव,
27 ताकि मोर मन ह मोहा गीस
अऊ ओमन के भक्ति म मोर हांथ के चूमा लेय हंव,
28 त ये पापमन के घलो दंड मिलतिस,
काबरकि तब मेंह ऊपर म बिराजे परमेसर के इनकार करे रहितेंव।
29 “कहूं मेंह अपन बईरी के दुरभाग्य म आनंद मनाय हंव
या ओकर ऊपर आय बिपत्ति ला देखके खुस होय हंव—
30 मेंह ओमन ला मरे के सराप देय के दुवारा
अपन मुहूं ले पाप नइं करे हंव—
31 कहूं मोर घर म रहइया मनखेमन ये कभू नइं कहे हवंय,
‘कोन ह अयूब के इहां खाके संतोस नइं होईस?’—
32 पर कोनो अजनबी ला गली म रथिया बिताना नइं परिस,
काबरकि मोर घर के मुंहटा ह बटोहीमन बर हमेसा खुला रिहिस—
33 अपन मन म अपन अपराध ला छुपाय के दुवारा
कहूं मेंह आने मनखेमन सहीं अपन पाप ला छुपाय हंव,
34 काबरकि मोला मनखेमन के भीड़ ले डर लगिस
अऊ अपन कुल के अपमान ले अइसे डर गेंव
कि मेंह चुप रहेंव अऊ घर ले बाहिर नइं निकलेंव—
35 (“आह, कि कोनो तो मोर बात के सुनइया रिहिस!
मेंह अब अपन बचाव के दसखत करत हंव—सर्वसक्तिमान ह मोला जबाब देवय;
मोर ऊपर दोस लगइया ह मोर दोस ला लिखित म देवय।
36 खचित मेंह येला अपन खांध म उठाहूं,
मेंह येला मुकुट कस पहिरहूं।
37 मेंह ओला अपन हर कदम के हिसाब दूहूं;
जइसे सासन करइया के आघू म मामला रखथें, वइसे मेंह येला ओकर आघू म रखहूं।)—
38 “कहूं मोर भुइयां ह मोर बिरोध म पुकारथे
अऊ नांगर ले बने येकर जम्मो घारीमन रोथें,
39 कहूं मेंह बिगर दाम चुकाय येकर ऊपज ला खा गे हंव
या येकर मालिक के मरे के कारन बने हंव,*अधरम करके दुख दे हंव
40 त गहूं के बलदा म कंटिली झाड़ी
अऊ जवांर के बलदा म खरपतवार उगय।”
अयूब के गोठ ह खतम होईस।