35
1 तब एलीहू ह ये घलो कहिस:
2 “का तेंह येला नियाय-संगत मानथस?
तेंह कहिथस, ‘मेंह सही अंव, परमेसर नइं।’
3 तभो ले तेंह ओकर ले पुछथस, ‘मोला येकर ले का फायदा,
पाप नइं करे ले मोला का मिलत हे?’
4 “मेंह तोला अऊ तोर संगीमन ला
जबाब देय चाहत हंव।
5 अकासमन कोति निहार अऊ देख;
बादरमन कोति निहार, जऊन मन तोर बहुंत ऊपर हवंय।
6 कहूं तेंह पाप करथस, त परमेसर के का बिगड़थे?
कहूं तोर पापमन बहुंते हवंय, त येकर ले ओला का फरक पड़थे?
7 कहूं तेंह धरमी अस, त तेंह ओला का देथस?
या ओला तोर हांथ ले का मिल जाथे?
8 तोर दुस्टता ह सिरिप तोर सहीं मनखेमन ऊपर,
अऊ तोर धरमीपन ह आने मनखेमन ऊपर असर डालथे।
9 “अब्बड़ अतियाचार के कारन मनखेमन कलहरथें;
ओमन बलवान के बाहुबल ले छुटकारा पाय बर बिनती करथें।
10 पर कोनो नइं कहय, ‘मोर सिरजनहार परमेसर कहां हवय,
जऊन ह रथिया गीत गाय बर देथे,
11 जऊन ह हमन ला धरती के जानवरमन ले जादा सिकछा देथे
अऊ हमन ला अकास के चिरईमन ले जादा बुद्धिमान बनाथे।’
12 दुस्ट मनखेमन के घमंड के कारन
परमेसर जबाब नइं देवय, जब मनखेमन गोहारथें।
13 वास्तव म, परमेसर ह ओमन के खाली निबेदन ला नइं सुनय;
सर्वसक्तिमान ह ओकर कोति धियान नइं देवय।
14 त ओह तोर का सुनही
जब तेंह कहिथस कि मेंह ओला नइं देखत हंव,
जबकि तोर मामला ओकर आघू म हवय,
अऊ तोला ओकर बाट जोहना जरूरी अय।
15 अऊ देख, ओह गुस्सा होके कभू दंड नइं देवय
अऊ ओह दुस्टता कोति कम धियान नइं देवय।
16 एकरसेति अयूब ह बेकार के बात कहे बर अपन मुहूं खोलथे;
बिगर गियान के, ओह बहुंत गोठियाथे।”