11
यहोवा ह बेईमानी के तौल ले बहुंत घिन करथे,
पर सही तौल ले ओह खुस होथे।
 
जब घमंड आथे, त अपमान घलो आथे,
पर नमरता के संग बुद्धि आथे।
 
ईमानदार मनखेमन ला ओमन के ईमानदारी ह अगुवई करथे,
पर बिसवासघाती मनखेमन अपन छल-कपट म नास हो जाथें।
 
कोप के बेरा म धन ले कोनो लाभ नइं होवय,
पर धरमीपन ह मिरतू ले बचाथे।
 
निरदोस मनखेमन के धरमीपन ह ओमन के रसता ला सीधा करथे,
पर दुस्ट मनखेमन अपन ही दुस्टता म गिर जाथें।
 
ईमानदार मनखेमन के धरमीपन ह ओमन ला बचाथे,
पर बिसवासघाती मनखेमन अपन ही दुस्ट ईछा म फंसथें।
 
दुस्ट मनखेमन के संग ओमन के आसा घलो टूट जाथे;
ओमन के सक्ति के जम्मो परतिगियां बेकार हो जाथे।
 
धरमी मनखेमन बिपत्ति ले बचाय जाथें,
पर ओहीच बिपत्ति दुस्ट मनखे ऊपर पड़थे।
 
भक्तिहीन मनखेमन अपन बात ले अपन परोसी ला नास करथें,
पर गियान के दुवारा धरमी मनखेमन बच जाथें।
 
10 जब धरमी मनखेमन उन्नति करथें, त सहर के मनखेमन आनंद मनाथें;
जब दुस्ट मनखेमन नास होथें, त आनंद के कारन जयकार होथे।
 
11 धरमी मनखेमन के आसीस ले सहर के उन्नति होथे।
पर दुस्ट मनखेमन के गोठ ले येह नास होथे।
 
12 जऊन ह अपन परोसी के हंसी उड़ाथे, ओह निरबुद्धि ए,
पर समझदार मनखे अपन मुहूं म लगाम लगाथे।
 
13 लबारी बात ह बिसवास ला टोरथे,
पर बिसवासयोग्य मनखे ह गुपत के बात ला बनाय रखथे।
 
14 मार्ग-दरसन के अभाव म देस ह बिपत्ति म पड़थे,
पर जीत ह बहुंत सलाहकारमन के जरिये मिलथे।
 
15 जऊन ह अजनबी के जमानत लेथे, ओह दुख उठाथे,
पर जऊन ह जमानत लेय बर मना करथे, ओह सुखी रहिथे।
 
16 दयालु माईलोगन ह आदरमान पाथे,
पर निरदयी आदमी सिरिप धन कमाथे।
 
17 दयालु मनखेमन अपन बर लाभ कमाथें,
पर निरदयीमन अपन ऊपर बिनास लानथें।
 
18 दुस्ट मनखे ह छल-कपट के कमई करथे,
पर जऊन ह धरमीपन देखाथे, ओह सही म ईनाम पाथे।
 
19 धरमीमन सही म जिनगी पाथें,
पर जऊन ह बुरई के पाछू चलथे, ओह मरथे।
 
20 यहोवा ह हठी मनखे ले घिन करथे,
पर ओह निरदोस चालचलनवाला मनखे ले खुस होथे।
 
21 ये बात बर निस्चित रहव: दुस्ट ह जरूर दंड पाही,
पर जऊन मन धरमी अंय, ओमन छोंड़ दिये जाहीं।
 
22 जऊन सुघर माईलोगन ह समझदारी नइं देखाय,
ओह थोथना म सोन के नथ पहिरे सूरा के सहीं अय।
 
23 धरमीमन के ईछा के अन्त सिरिप भलई म होथे,
पर दुस्टमन के आसा के अन्त सिरिप कोरोध म होथे।
 
24 एक मनखे ह दिल खोलके देथे, तभो ले ओकर बढ़ती होथे;
दूसर मनखे ह देय म कंजूसी करथे, पर ओह गरीब हो जाथे।
 
25 उदार मनखे के उन्नति होही,
अऊ जऊन ह दूसर के खियाल रखथे, ओकर खियाल रखे जाही।
 
26 मनखेमन ओ मनखे ला सराप देथें, जऊन ह अनाज ला दबाके रखे रहिथे,
पर जऊन ह बेचे के ईछा रखथे, ओकर बर मनखेमन आसीस मांगथें।
 
27 जऊन ह भलई करे चाहथे, ओकर ऊपर किरपा करे जाथे,
पर जऊन ह बुरई करे के ईछा रखथे, ओकर ऊपर बुरई आ जाथे।
 
28 जऊन मन अपन धन ऊपर भरोसा रखथें, ओमन गिरहीं,
पर धरमी मनखेमन हरियर पान सहीं बढ़हीं।
 
29 जऊन ह अपन परिवार ला दुख देथे, ओला बांटा म कुछू नइं मिलय,
अऊ मुरूख ह बुद्धिमान के दास होही।
 
30 धरमी के परतिफल जिनगी के रूख होथे,
अऊ जऊन ह बुद्धिमान ए, ओह जिनगी बचाथे।
 
31 यदि धरमी मनखे ला ये धरती म ओकर फर मिलथे,
त भक्तिहीन अऊ पापी ला ओकर परतिफल काबर नइं मिलही!