18
जऊन ह अपनआप ला आने मन ले अलग कर लेथे, ओह अपन खुद के ईछा पूरा करे बर अइसने करथे
अऊ जम्मो सही नियाय के बिरूध झगरा सुरू करथे।
 
मुरूख के मन ह समझ के बात म नइं लगय
पर ओला अपन खुद के बात कहे म खुसी मिलथे।
 
जब दुस्टता आथे, त अपमान घलो आथे,
अऊ लज्जा के संग कलंक आथे।
 
मुहूं के बचन ह गहिरा पानी सहीं अय,
पर बुद्धि के झरना ह तेज बहत नरवा के सहीं अय।
 
दुस्ट ला बचई
अऊ निरदोस के नियाय बिगड़ई बने नो हय।
 
मुरूखमन के गोठ ह ओमन ला झगरा म डालथे,
अऊ ओमन के बात ह ओमन ला मार खाय के लईक बनाथे।
 
मुरूखमन के बिनास ओमन के बात ले होथे,
अऊ ओमन के गोठ ह ओमन के खुद के जिनगी के फांदा बन जाथे।
 
बकवास करई ह सुवादवाले जेवन सहीं होथे;
येमन मनखे के भीतर तक चले जाथें।
 
जऊन ह अपन काम म ढीला होथे,
ओह नास करइया के भाई होथे।
 
10 यहोवा के नांव ह गढ़वाला महल ए;
धरमी जन उहां भागके जाथें अऊ सुरकछित रहिथें।
 
11 धनवानमन के धन ह ओमन के गढ़वाला सहर होथे;
ओमन के कल्पना म येह नाप के बाहिर बहुंत ऊंच दीवार ए।
 
12 नास होय के पहिली मनखे के मन ह घमंडी हो जाथे,
पर आदर पाय के पहिली ओमा नमरता आथे।
 
13 जऊन ह बात ला सुने के पहिली जबाब देथे,
ओह मुरूख होथे अऊ ओकर बेजत्ती होथे।
 
14 मनखे के आतमा ह बेमारी ला सह सकथे,
पर टूटे मन ला कोन सह सकथे?
 
15 समझदार मनखे के मन ह गियान पाथे,
काबरकि बुद्धिमान ह गियान के बात ला खोज लेथे।
 
16 उपहार ह मनखे बर रसता खोलथे
अऊ देवइया ला बड़े मनखेमन करा पहुंचाथे।
 
17 अदालत के मामला म जऊन ह पहिली बोलथे, ओह सही जान पड़थे,
जब तक कि दूसर ह आके ओकर बात ला जांच नइं लेथे।
 
18 परची डारे ले झगरा के निपटारा होथे
अऊ बलवाले बिरोधीमन ला अलग रखथे।
 
19 गलती करे भाई ला मनाई ह एक गढ़वाले सहर ला जीत लेवई ले कठिन ए;
झगरा ह महल के छड़ लगे दुवार के सहीं अय।
 
20 मनखे के पेट ह ओकर मुहूं के बात ले भरथे;
अपन मुहूं के बने बात के दुवारा ओकर मन ला संतोस मिलथे।
 
21 मनखे के गोठ म जिनगी अऊ मिरतू के ताकत होथे,
अऊ जऊन मन येकर ले मया करथें, ओमन येकर फर खाहीं।
 
22 जऊन ह माईलोगन ले बिहाव करथे, ओह बने चीज पाथे
अऊ यहोवा के अनुग्रह ओकर ऊपर होथे।
 
23 गरीब ह दया पाय बर बिनती करथे,
पर धनी मनखे कठोरता से जबाब देथे।
 
24 जेकर संगीमन भरोसा के लईक नो हंय, ओह जल्दी नास हो जाथे,
पर अइसे घलो संगी होथे, जऊन ह भाई ले घलो जादा नजदीक होथे।