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आत्मिक युद्ध
मैं वही पौलुस जो तुम्हारे सामने दीन हूँ, परन्तु पीठ पीछे तुम्हारी ओर साहस करता हूँ; तुम को मसीह की नम्रता, और कोमलता* के कारण समझाता हूँ। मैं यह विनती करता हूँ, कि तुम्हारे सामने मुझे निर्भय होकर साहस करना न पड़े; जैसा मैं कितनों पर जो हमको शरीर के अनुसार चलनेवाले समझते हैं, वीरता दिखाने का विचार करता हूँ। क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तो भी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं। हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊँची बात को, जो परमेश्वर की पहचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं। और तैयार रहते हैं कि जब तुम्हारा आज्ञा मानना पूरा हो जाए, तो हर एक प्रकार की आज्ञा न मानने का पलटा लें।
पौलुस के अधिकार
तुम इन्हीं बातों को देखते हो, जो आँखों के सामने हैं, यदि किसी का अपने पर यह भरोसा हो, कि मैं मसीह का हूँ, तो वह यह भी जान ले, कि जैसा वह मसीह का है, वैसे ही हम भी हैं। क्योंकि यदि मैं उस अधिकार के विषय में और भी घमण्ड दिखाऊँ, जो प्रभु ने तुम्हारे बिगाड़ने के लिये नहीं पर बनाने के लिये हमें दिया है, तो लज्जित न होऊँगा। यह मैं इसलिए कहता हूँ, कि पत्रियों के द्वारा तुम्हें डरानेवाला न ठहरूँ। 10 क्योंकि वे कहते हैं, “उसकी पत्रियाँ तो गम्भीर और प्रभावशाली हैं; परन्तु जब देखते हैं, तो कहते है वह देह का निर्बल और वक्तव्य में हलका जान पड़ता है।” 11 इसलिए जो ऐसा कहता है, कि वह यह समझ रखे, कि जैसे पीठ पीछे पत्रियों में हमारे वचन हैं, वैसे ही तुम्हारे सामने हमारे काम भी होंगे।
पौलुस के अधिकार की सीमाएँ
12 क्योंकि हमें यह साहस नहीं कि हम अपने आपको उनके साथ गिनें, या उनसे अपने को मिलाएँ, जो अपनी प्रशंसा करते हैं, और अपने आपको आपस में नाप तौलकर एक दूसरे से तुलना करके मूर्ख ठहरते हैं।
13 हम तो सीमा से बाहर घमण्ड कदापि न करेंगे, परन्तु उसी सीमा तक जो परमेश्वर ने हमारे लिये ठहरा दी है, और उसमें तुम भी आ गए हो और उसी के अनुसार घमण्ड भी करेंगे। 14 क्योंकि हम अपनी सीमा से बाहर अपने आपको बढ़ाना नहीं चाहते, जैसे कि तुम तक न पहुँचने की दशा में होता, वरन् मसीह का सुसमाचार सुनाते हुए तुम तक पहुँच चुके हैं। 15 और हम सीमा से बाहर औरों के परिश्रम पर घमण्ड नहीं करते; परन्तु हमें आशा है, कि ज्यों-ज्यों तुम्हारा विश्वास बढ़ता जाएगा त्यों-त्यों हम अपनी सीमा के अनुसार तुम्हारे कारण और भी बढ़ते जाएँगे। 16 कि हम तुम्हारी सीमा से आगे बढ़कर सुसमाचार सुनाएँ, और यह नहीं, कि हम औरों की सीमा के भीतर बने बनाए कामों पर घमण्ड करें।
17 परन्तु जो घमण्ड करे, वह प्रभु पर घमण्ड करे। (1 कुरि. 1:31, यिर्म. 9:24)
18 क्योंकि जो अपनी बड़ाई करता है, वह नहीं, परन्तु जिसकी बड़ाई प्रभु करता है, वही ग्रहण किया जाता है।
* 10:1 10:1 मसीह की नम्रता, और कोमलता: नम्रता और उद्धारकर्ता की दयालुता; या उसकी नम्रता और सौम्यता की अनुसरण करने की इच्छा।