नहेम्याह
लेखक
यहूदी परम्परा के अनुसार नहेम्याह (यहोवा शान्तिदाता है) इस ऐतिहासिक पुस्तक का प्रमुख लेखक है। पुस्तक का अधिकांश भाग प्रथम पुरुष के दृष्टिकोण से लिखा गया है। उसकी युवावस्था और पृष्ठभूमि के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। हम उसे एक वयस्क ही देखते हैं जो फारस के राजा के महल में सेवारत है। अर्तक्षत्र राजा का पिलानेहारा (नहे. 1:11-2:1)। नहेम्याह की पुस्तक को एज्रा की पुस्तक की उत्तर कथा रूप में पढ़ा जा सकता है। कुछ विद्वानों के विचार में ये दोनों पुस्तकें मूल रूप से एक ही ग्रन्थ रही हैं।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग 457 - 400 ई.पू
यह पुस्तक यहूदा, सम्भवतः यरूशलेम में लिखी गई थी, फारसी राज के समय बाबेल से लौटने के बाद।
प्रापक
नहेम्याह के लक्षित पाठक इस्राएलियों की पीढ़ियाँ हैं जो बाबेल की बन्धुआई से लौटे थे।
उद्देश्य
लेखक स्पष्ट इच्छा व्यक्त करता है कि उसके पाठक परमेश्वर के सामर्थ्य और उसके चुने हुओं के लिए उसके प्रेम को समझें और उसके प्रति अपनी वाचा के उत्तरदायित्वों को अंतर्ग्रहण करें। परमेश्वर प्रार्थना का उत्तर देता है। वह मनुष्यों के जीवन में रूचि रखता है और उसकी आज्ञाओं का पालन करने में जो भी आवश्यक है उसे देता है। मनुष्यों को एकजुट होकर काम करना है और अपने संसाधनों को आपस में बाँटना है। परमेश्वर के अनुयायियों के जीवन में स्वार्थ का कोई स्थान नहीं है। नहेम्याह ने धनवानों और कुलीन जनों को स्मरण कराया कि गरीबों से अनुचित लाभ न उठाएँ।
मूल विषय
पुनर्निर्माण
रूपरेखा
1. प्रशासक रूप में नहेम्याह का प्रथम प्रशासन काल — 1:1-12:47
2. प्रशासक रूप में नहेम्याह का दूसरा प्रशासन काल — 13:1-31
1
यरूशलेम के लिए चिंतित नहेम्याह
1 हकल्याह के पुत्र नहेम्याह के वचन। बीसवें वर्ष के किसलेव नामक महीने में, जब मैं शूशन नामक राजगढ़ में रहता था,
2 तब हनानी नामक मेरा एक भाई और यहूदा से आए हुए कई एक पुरुष आए; तब मैंने उनसे उन बचे हुए यहूदियों के विषय जो बँधुआई से छूट गए थे, और यरूशलेम के विषय में पूछा।
3 उन्होंने मुझसे कहा, “जो बचे हुए लोग बँधुआई से छूटकर उस प्रान्त में रहते हैं, वे बड़ी दुर्दशा में पड़े हैं, और उनकी निन्दा होती है; क्योंकि यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई, और उसके फाटक जले हुए हैं।”
4 ये बातें सुनते ही मैं बैठकर रोने लगा और कुछ दिनों तक विलाप करता; और स्वर्ग के परमेश्वर के सम्मुख उपवास करता और यह कहकर प्रार्थना करता रहा।
5 “हे स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा, हे महान और भययोग्य परमेश्वर! तू जो अपने प्रेम रखनेवाले और आज्ञा माननेवाले के विषय अपनी वाचा पालता और उन पर करुणा करता है;
6 तू कान लगाए और आँखें खोले रह, कि जो प्रार्थना मैं तेरा दास इस समय तेरे दास इस्राएलियों के लिये दिन-रात करता रहता हूँ, उसे तू सुन ले। मैं इस्राएलियों के पापों को जो हम लोगों ने तेरे विरुद्ध किए हैं, मान लेता हूँ। मैं और मेरे पिता के घराने दोनों ने पाप किया है।
7 हमने तेरे सामने बहुत बुराई की है, और जो आज्ञाएँ, विधियाँ और नियम तूने अपने दास मूसा को दिए थे, उनको हमने नहीं माना।
8 उस वचन की सुधि ले, जो तूने अपने दास मूसा से कहा था, ‘यदि तुम लोग विश्वासघात करो, तो मैं तुम को देश-देश के लोगों में तितर-बितर करूँगा।
9 परन्तु यदि तुम मेरी ओर फिरो, और मेरी आज्ञाएँ मानो, और उन पर चलो, तो चाहे तुम में से निकाले हुए लोग आकाश की छोर में भी हों, तो भी मैं उनको वहाँ से इकट्ठा करके उस स्थान में पहुँचाऊँगा, जिसे मैंने अपने नाम के निवास के लिये चुन लिया है।’
10 अब वे तेरे दास और तेरी प्रजा के लोग हैं जिनको तूने अपनी बड़ी सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा छुड़ा लिया है।
11 हे प्रभु विनती यह है, कि तू अपने दास की प्रार्थना पर, और अपने उन दासों की प्रार्थना पर, जो तेरे नाम का भय मानना चाहते हैं, कान लगा, और आज अपने दास का काम सफल कर, और उस पुरुष को उस पर दयालु कर।”
मैं तो राजा का पियाऊ था।