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वर  
1 हे मेरी प्रिय तू सुन्दर है, तू सुन्दर है!  
तेरी आँखें तेरी लटों के बीच में कबूतरों  
के समान दिखाई देती है।  
तेरे बाल उन बकरियों के झुण्ड के समान हैं  
जो गिलाद पहाड़ के ढाल पर लेटी हुई हों। (नीति. 5:19)    
2 तेरे दाँत उन ऊन कतरी हुई भेड़ों के झुण्ड के समान हैं,  
जो नहाकर ऊपर आई हों, उनमें हर एक के दो-दो जुड़वा बच्चे होते हैं।  
और उनमें से किसी का साथी नहीं मरा।   
3 तेरे होंठ लाल रंग की डोरी के समान हैं,  
और तेरा मुँह मनोहर है,  
तेरे कपोल तेरी लटों के नीचे  
अनार की फाँक से देख पड़ते हैं।   
4 तेरा गला दाऊद की मीनार के समान है,  
जो अस्त्र-शस्त्र के लिये बना हो, और जिस पर हजार ढालें टँगी हुई हों,  
वे सब ढालें शूरवीरों की हैं।   
5 तेरी दोनों छातियाँ मृग के दो जुड़वे बच्चों के तुल्य हैं,  
जो सोसन फूलों के बीच में चरते हों।   
6 जब तक दिन ठंडा न हो, और छाया लम्बी होते-होते मिट न जाए,  
तब तक मैं शीघ्रता से गन्धरस के पहाड़ और लोबान की पहाड़ी पर चला जाऊँगा।   
7 हे मेरी प्रिय तू सर्वांग सुन्दरी है;  
तुझ में कोई दोष नहीं। (इफि. 5:27)    
8 हे मेरी दुल्हन, तू मेरे संग लबानोन से,  
मेरे संग लबानोन से चली आ।  
तू अमाना की चोटी पर से,  
सनीर और हेर्मोन की चोटी पर से,  
सिंहों की गुफाओं से, चीतों के पहाड़ों पर से दृष्टि कर।   
9 हे मेरी बहन, हे मेरी दुल्हन, तूने मेरा मन मोह लिया है,  
तूने अपनी आँखों की एक ही चितवन से,  
और अपने गले के एक ही हीरे से मेरा हृदय मोह लिया है।   
10 हे मेरी बहन, हे मेरी दुल्हन, तेरा प्रेम क्या ही मनोहर है!  
तेरा प्रेम दाखमधु से क्या ही उत्तम है,  
और तेरे इत्रों का सुगन्ध सब प्रकार के मसालों के सुगन्ध से! (यूह. 4:10, यशा. 12:3)    
11 हे मेरी दुल्हन, तेरे होठों से मधु टपकता है;  
तेरी जीभ के नीचे मधु और दूध रहता है;  
तेरे वस्त्रों का सुगन्ध लबानोन के समान है।   
12 मेरी बहन, मेरी दुल्हन, किवाड़ लगाई हुई बारी के समान,  
किवाड़ बन्द किया हुआ सोता, और छाप लगाया हुआ झरना है।   
13 तेरे अंकुर उत्तम फलवाली अनार की बारी के तुल्य हैं,  
जिसमें मेंहदी और जटामासी,   
14 जटामासी और केसर,  
लोबान के सब भाँति के पेड़, मुश्क और दालचीनी,  
गन्धरस, अगर, आदि सब मुख्य-मुख्य सुगन्ध-द्रव्य होते हैं।   
15 तू बारियों का सोता है,  
फूटते हुए जल का कुआँ,  
और लबानोन से बहती हुई धाराएँ हैं।  
वधू   
16 हे उत्तर वायु जाग, और हे दक्षिण वायु चली आ!  
मेरी बारी पर बह, जिससे उसका सुगन्ध फैले।  
मेरा प्रेमी अपनी बारी में आए,  
और उसके उत्तम-उत्तम फल खाए।