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दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति
1 तब वे झील के दूसरे तट पर गिरासेन क्षेत्र में आए.
2 मसीह येशु के नाव से नीचे उतरते ही एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा थी कब्र से निकलकर उनके पास आया.
3 वह कब्रों के मध्य ही रहा करता था. अब कोई भी उसे सांकलों तथा बेड़ियों से भी बांध पाने में समर्थ न था.
4 बहुधा उसे बेड़ियों तथा सांकलों में बांधे जाने के प्रयास किए गए किंतु वह सांकलों को तोड़ देता तथा बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर डालता था. अब किसी में इतनी क्षमता न थी कि उसे वश में कर सके.
5 रात-दिन कब्रों के मध्य तथा पहाड़ियों में वह चिल्लाता रहता था तथा स्वयं को पत्थर मार-मार कर घायल कर लेता था.
6 दूर से ही जब उसने मसीह येशु को देखा, वह दौड़कर उनके पास आया, अपना सिर झुकाया
7 और उसमें से ऊंची आवाज में ये शब्द सुनाई दिए, “परम प्रधान परमेश्वर के पुत्र येशु! मेरा आपका कोई लेनदेन नहीं. आपको परमेश्वर की शपथ, मुझे कोई कष्ट न दें,”
8 क्योंकि मसीह येशु उसे आज्ञा दे चुके थे, “ओ दुष्टात्मा, इस मनुष्य में से निकल आ!”
9 तब मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या नाम है तेरा?”
दुष्टात्मा ने उत्तर दिया, “सेना—क्योंकि हम बहुत हैं.”
10 दुष्टात्मा मसीह येशु से विनती करने लगा कि वह उसे उस प्रदेश से बाहर न भेजें.
11 वहीं पहाड़ी पर सूअरों का एक विशाल झुंड चर रहा था.
12 दुष्टात्मा-समूह ने मसीह येशु से विनती की, “हमें इन सूअरों में भेज दीजिए कि हम उनमें जा बसें.”
13 मसीह येशु ने उन्हें यह आज्ञा दे दी. वे दुष्टात्मा बाहर निकलकर उन सूअरों में प्रवेश कर गए. लगभग दो हज़ार सूअरों का वह झुंड पहाड़ की तीव्र ढलान पर तेज गति से दौड़ता हुआ झील में जा डूबा.
14 भयभीत रखवाले भाग गए तथा नगर और पास के क्षेत्रों में जाकर इस घटना के विषय में बताने लगे. नगरवासी, जो कुछ हुआ था, उसे देखने वहां आने लगे.
15 जब वे मसीह येशु के पास पहुंचे, उन्होंने देखा कि वह दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति वस्त्र धारण किए हुए सचेत स्थिति में वहां बैठा था. यह वही व्यक्ति था जिसमें दुष्टात्माओं की सेना पैठी थी. यह देख वे डर गए.
16 सारे घटनाक्रम को देखनेवाले लोगों ने उनके सामने इसका बयान किया कि दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति तथा सूअरों के साथ क्या-क्या हुआ है.
17 इस पर वे मसीह येशु से विनती करने लगे कि वह उनके क्षेत्र से बाहर चले जाएं.
18 जब मसीह येशु नाव पर सवार हो रहे थे, दुष्टात्माओं से विमुक्त हुआ व्यक्ति मसीह येशु से विनती करने लगा कि उसे उनके साथ ले लिया जाए.
19 मसीह येशु ने उसे इसकी अनुमति नहीं दी परंतु उसे आदेश दिया, “अपने परिजनों के पास लौट जाओ और उन्हें बताओ कि तुम्हारे लिए प्रभु ने कैसे-कैसे आश्चर्यकर्म किए हैं तथा तुम पर उनकी कैसी कृपादृष्टि हुई है.”
20 वह देकापोलिस नगर में गया और उन कामों का वर्णन करने लगा, जो मसीह येशु ने उसके लिए किए थे. यह सुन सभी चकित रह गए.
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21 मसीह येशु दोबारा झील के दूसरे तट पर चले गए. एक बड़ी भीड़ उनके पास इकट्ठी हो गयी. मसीह येशु झील तट पर ही रहे.
22 स्थानीय यहूदी सभागृह का एक अधिकारी, जिसका नाम जाइरूस था, वहां आया. यह देख कि वह कौन हैं, वह उनके चरणों पर गिर पड़ा.
23 बड़ी ही विनती के साथ उसने मसीह येशु से कहा, “मेरी बेटी मरने पर है. कृपया चलिए और उस पर हाथ रख दीजिए कि वह स्वस्थ हो जाए और जीवित रहे.”
24 मसीह येशु उसके साथ चले गए.
बड़ी भीड़ भी उनके पीछे-पीछे चल रही थी और लोग उन पर गिरे पड़ते थे.
25 एक स्त्री बारह वर्ष से लहूस्राव-पीड़ित थी.
26 अनेक चिकित्सकों के हाथों से उसने अनेक पीड़ाएं सही थी. इसमें वह अपना सब कुछ व्यय कर चुकी थी, फिर भी इससे उसे लाभ के बदले हानि ही उठानी पड़ी थी.
27 मसीह येशु के विषय में सुनकर उसने भीड़ में पीछे से आकर येशु के वस्त्र के छोर को छुआ.
28 उसका यह विश्वास था: “यदि मैं उनके वस्त्र को भी छू लूं, तो मैं स्वस्थ हो जाऊंगी.”
29 उसी क्षण उसका रक्तस्राव थम गया. स्वयं उसे अपने शरीर में यह मालूम हो गया कि वह अपनी पीड़ा से ठीक हो चुकी है.
30 उसी क्षण मसीह येशु को भी यह आभास हुआ कि उनमें से सामर्थ्य निकली है. भीड़ में ही उन्होंने मुड़कर प्रश्न किया, “कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है?”
31 शिष्यों ने उनसे कहा, “आप तो देख ही रहे हैं कि किस प्रकार भीड़ आप पर गिरी पड़ रही है, और आप प्रश्न कर रहे हैं, ‘कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है!’ ”
32 प्रभु की दृष्टि उसे खोजने लगी, जिसने यह किया था.
33 वह स्त्री यह जानते हुए कि उसके साथ क्या हुआ है, भय से कांपती हुई उनके चरणों पर आ गिरी और उन पर सारी सच्चाई प्रकट कर दी.
34 मसीह येशु ने उस स्त्री से कहा, “पुत्री, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है. शांति में विदा हो जाओ और स्वस्थ रहो.”
35 जब मसीह येशु यह कह ही रहे थे, याइरॉस के घर से आए कुछ लोगों ने यह सूचना दी, “आपकी पुत्री की मृत्यु हो चुकी है. अब गुरुवर को कष्ट देने का क्या लाभ?”
36 मसीह येशु ने यह सुन उस यहूदी सभागृह अधिकारी से कहा, “भयभीत न हो—केवल विश्वास करो.”
37 उन्होंने पेतरॉस, याकोब तथा याकोब के भाई योहन के अतिरिक्त अन्य किसी को भी अपने साथ आने की अनुमति न दी,
38 और ये सब यहूदी सभागृह अधिकारी के घर पर पहुंचे. मसीह येशु ने देखा कि वहां शोर मचा हुआ है तथा लोग ऊंची आवाज में रो-पीट रहे हैं.
39 घर में प्रवेश कर मसीह येशु ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा, “यह शोर और रोना-पीटना क्यों! बच्ची की मृत्यु नहीं हुई है—वह केवल सो रही है.”
40 यह सुन वे मसीह येशु का ठट्ठा करने लगे.
किंतु मसीह येशु ने उन सभी को वहां से बाहर निकाल बच्ची के माता-पिता तथा अपने साथियों को साथ ले उस कक्ष में प्रवेश किया, जहां वह बालिका थी.
41 वहां उन्होंने बालिका का हाथ पकड़कर उससे कहा, “तालीथा कोऊम” (अर्थात् बेटी, उठो!)
42 उसी क्षण वह उठ खड़ी हुई और चलने फिरने लगी. इस पर वे सभी चकित रह गए. बालिका बारह वर्ष की थी.
43 मसीह येशु ने उन्हें स्पष्ट आदेश दिए कि इस घटना के विषय में कोई भी जानने न पाए और फिर उनसे कहा कि उस बालिका को खाने के लिए कुछ दिया जाए.