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धरमीपन के सासन
1 देखव, एक राजा ह धरमीपन से राज करही
अऊ सासन करइयामन नियाय के संग सासन करहीं।
2 हर एक झन आंधी ले लुकाय के जगह,
अऊ तूफान ले आड़ लेय के जगह सहीं होही,
मरू-भुइयां म पानी के झरना,
अऊ तपत भुइयां म बड़े चट्टान के छइहां सहीं होही।
3 ओ समय देखइयामन के आंखी ह नइं धुंधलाही,
अऊ सुनइयामन के कान ह सुनही।
4 भय माननेवाला मनखे के मन ह जानही अऊ समझही,
अऊ तोतरामन के जीभ ह सही अऊ साफ हो जाही।
5 मुरूख ला फेर कभू उत्तम मनखे नइं कहे जाही
अऊ न ही दुस्ट मनखे ला बहुंत आदर दिये जाही।
6 काबरकि मुरूखमन तो मुरूखता के ही बात करथें,
अऊ ओमन के मन ह दुस्टता के बात म लगे रहिथे:
ओमन अधरम के काम करथें
अऊ यहोवा के बारे म लबारी बात फईलाथें;
भूखा ला भूखन ही रहन देथें
अऊ पीयासा ला पानी नइं देवंय।
7 दुस्टमन दुस्ट तरीका अपनाथें,
ओमन दुस्ट उपाय निकालत रहिथें
ताकि गरीबमन ला लबारी बात कहिके लूटंय,
जब जरूरतमंद के बिनती ह सही होथे, तब घलो येमन अइसे ही करथें।
8 पर बने मनखे ह उत्तम उपाय करथे,
अऊ ओमन अपन उत्तम काममन के दुवारा बने रहिथें।
यरूसलेम के माईलोगनमन
9 हे माईलोगनमन, जेमन बहुंत आत्म-संतुस्ट हवव,
उठव अऊ मोर बात ला सुनव;
हे बेटीमन, जेमन सुरकछित महसूस करथव,
मोर बात कोति कान लगावव!
10 एक बछर पूरा होय के थोरकन बाद
जेमन सुरकछित महसूस करत हवंय, ओमन कांपहीं;
काबरकि अंगूर के फसल ह नइं होही,
अऊ न ही कोनो किसम के फर धरही।
11 हे आत्म-संतुस्ट माईलोगनमन, कांपव;
हे बेटीमन, जेमन सुरकछित महसूस करथव, तुमन कांपव!
अपन सुघर ओनहामन ला उतार दव
अऊ फटहा-चीरहा ओनहा ला लपेट लव।
12 बने खेतमन बर अऊ फरवाले अंगूर के नारमन बर
छाती पीट-पीटके रोवव
13 अऊ मोर मनखेमन के भुइयां बर,
अइसन भुइयां जेमा कांटा अऊ कंटिली झाड़ीमन बढ़ गे हवंय, रोवव—
हव, खुसी मनइया जम्मो घरमन बर
अऊ चहल-पहल वाले ये सहर बर बिलाप करव।
14 किला ला छोंड़ दिये जाही,
हल्ला-गुल्ला ले भरे सहर ला तियाग दिये जाही;
किला अऊ पहरेदारी के ऊंचहा जगहमन हमेसा बर सुनसान हो जाहीं
येमन गदहामन बर घुमे-फिरे के जगह अऊ पसुमन के चरागन ओ समय तक बने रहिहीं,
15 जब तक कि आतमा ला ऊपर ले हमर ऊपर ढारे नइं जाही,
अऊ मरू-भुइयां ह उपजाऊ खेत नइं बन जाही
अऊ उपजाऊ भुइयां एक जंगल सहीं नइं जान पड़ही।
16 यहोवा के नियाय ओ मरू-भुइयां म बसही,
ओकर धरमीपन ह ओ उपजाऊ भुइयां म रहिही।
17 ओ धरमीपन के फर ह सांति होही;
अऊ येकर नतीजा सबो दिन के सांति अऊ बिसवास होही।
18 मोर मनखेमन सांति के जगह म,
सुरकछित घरमन म,
अराम के जगहमन म निस्चिंत रहिहीं।
19 हालाकि करा ह जंगल ला चौरस कर देथे
अऊ सहर ह पूरा समतल हवय,
20 पर कतेक आसीसित होहू तुमन,
जब तुमन सोतामन के तीर म बीजा बोहू,
अऊ अपन पसु अऊ गदहामन ला चरे बर खुला छोंड़ दूहू।