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बिलदद
तब सूही के रहइया बिलदद ह जबाब दीस:
“परभूता अऊ भय के अधिकारी परमेसर ही अय;
ओह ऊंच स्वरग म सांति स्थापित करथे।
का ओकर सेनामन के गनती करे जा सकथे?
अइसे कोन हवय, जेकर ऊपर ओकर अंजोर नइं परय?
तब एक मरनहार मनखे ह परमेसर के आघू म कइसे धरमी हो सकथे?
माईलोगन ले जनमे मनखे ह कइसे सुध हो सकथे?
कहूं ओकर नजर म चंदा ह घलो उजला
अऊ तारामन घलो ओकर नजर म सुध नइं अंय,
त फेर मरनहार मनखे के का गनती, जऊन ह सिरिप एक गेंगरूआ अय—
एक मनखे, जऊन ह सिरिप एक कीरा अय!”