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इजोतक सन्‍तान
संक्षेप मे ई जे, परमेश्‍वर केँ नमूना मानि, अपन आचरण हुनका जकाँ राखू, कारण, अहाँ सभ हुनकर धिआ-पुता छी, और ओ अहाँ सभ सँ बहुत प्रेम करैत छथि। और जाहि तरहेँ मसीह अपना सभ सँ प्रेम कयलनि और अपना सभक लेल सुगन्‍धित चढ़ौना आ बलिदानक रूप मे अपना केँ पिता लग अर्पित कयलनि, तहिना अहाँ सभ प्रेमक मार्ग पर चलू।
अहाँ सभ मे कोनो तरहक अनैतिक शारीरिक सम्‍बन्‍ध नहि होअय, कोनो प्रकारक अपवित्र विचार-व्‍यवहार नहि होअय, कोनो लोभ नहि होअय—एहि सभक चर्चो तक नहि। कारण, ई सभ बात परमेश्‍वरक पवित्र लोकक लेल उचित नहि अछि। आ ने निर्लज्‍जता, मूर्खतापूर्ण बात-चीत वा अभद्र मजाक होअय—अहाँ सभ केँ एहन बात सभ शोभा नहि दैत अछि, बल्‍कि एहि सभक बदला मे प्रभु केँ धन्‍यवादे देबाक काज होयबाक चाही। कारण, ई निश्‍चित रूप सँ जानि लिअ जे, कोनो अनैतिक वा अपवित्र काज करऽ वला, वा लोभी आदमी केँ मसीह आ परमेश्‍वरक राज्‍य मे कोनो हिस्‍सा नहि होयतैक। लोभ कयनाइ आ मूर्तिपूजा कयनाइ बराबरि बात अछि। केओ निरर्थक तर्क द्वारा अहाँ सभ केँ धोखा नहि दओ—एही काज सभक कारणेँ आज्ञा नहि माननिहार सभ पर परमेश्‍वरक प्रकोप अबैत अछि। तेँ ओहन काज करऽ वला सभक संग सहभागी नहि बनू।
अहाँ सभ पहिने अन्‍हार सँ भरल छलहुँ। आब प्रभुक लोक होयबाक कारणेँ इजोत सँ भरल छी। तेँ इजोतक सन्‍तान जकाँ आचरण करू, किएक तँ इजोत जतऽ अछि, ततऽ ओ सभ बात उत्‍पन्‍न होइत अछि जे नीक, उचित और सत्‍य अछि। 10 ई सिखबाक कोशिश करैत रहू जे कोन-कोन बात सँ प्रभु प्रसन्‍न होइत छथि। 11 अन्‍हार द्वारा उत्‍पन्‍न व्‍यर्थक काज सभ मे भाग नहि लिअ, बल्‍कि ओकरा सभ केँ इजोत द्वारा देखार करू जे केहन काज अछि। 12 कारण, जे काज अनाज्ञाकारी लोक नुका कऽ करैत अछि तकर चर्चो कयनाइ लाजक बात अछि। 13 मुदा जे किछु इजोत मे लाओल जाइत अछि, से स्‍पष्‍ट रूप सँ देखाइ दैत अछि, और जे वस्‍तु एहि तरहेँ इजोत सँ प्रगट कयल जाइत अछि, से अपने इजोत बनि जाइत अछि। 14 एहि कारणेँ कहलो जाइत अछि जे,
“हौ सुतनिहार, जागह!
मृत्‍यु मे सँ जीबि उठह,
तँ मसीह तोरा पर अपन इजोत चमकौथुन।”
15 एहि लेल, अपन आचरणक पूरा-पूरा ध्‍यान राखू। निर्बुद्धि लोक जकाँ नहि, बल्‍कि बुद्धिमान जकाँ आचरण करू। 16 हर अवसरक पूरा सदुपयोग करू, कारण, ई वर्तमान समय खराब अछि। 17 तेँ एहन लोक नहि बनू जे बिनु सोचि-विचारि कऽ काज करैत अछि, बल्‍कि प्रभुक इच्‍छा की अछि, से बुझू। 18 दारू पिबि कऽ मतवाला नहि होउ, किएक तँ मतवालापन मात्र दुराचार वला मार्ग पर लऽ जाइत अछि, बल्‍कि परमेश्‍वरक आत्‍मा सँ परिपूर्ण होउ। 19 आपस मे भजन, स्‍तुति-गान और भक्‍तिक गीत गबैत रहू। अपना मोनो मे प्रभुक लेल गीत गबैत-बजबैत रहू, 20 और अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक माध्‍यम सँ हरदम सभ बातक लेल परमेश्‍वर पिता केँ धन्‍यवाद दिऔन।
21 मसीहक लेल श्रद्धा-भय रखबाक कारणेँ एक-दोसराक अधीन रहू।
मसीही पारिवारिक जीवन—पति-पत्‍नी
22 हे स्‍त्री सभ, अहाँ सभ जहिना प्रभुक अधीन मे रहैत छी, तहिना अपना-अपना पतिक अधीन मे रहू। 23 कारण, जाहि तरहेँ मसीह अपन शरीरक, अर्थात्‌ मण्‍डलीक, सिर छथि और ओकर मुक्‍तिदाता छथि, तहिना पति अपन स्‍त्रीक उपर, अर्थात् ओकर सिर, अछि। 24 तँ जाहि तरहेँ मण्‍डली मसीहक अधीन रहैत अछि, ताहि तरहेँ स्‍त्री सभ केँ सभ बात मे अपना-अपना पतिक अधीन रहबाक छैक।
25 यौ पति लोकनि, ओहि तरहेँ अपना स्‍त्री सँ प्रेम करू जाहि तरहेँ मसीह मण्‍डली सँ कयलनि और ओकरा लेल अपना केँ अर्पित कऽ देलनि, 26 जाहि सँ ओ ओकरा जल सँ धो कऽ वचन द्वारा शुद्ध करैत ओकरा पवित्र कऽ सकथि। 27 ई बात ओ एहि लेल कयलनि जाहि सँ ओ अपना सामने मण्‍डली केँ एक एहन कनियाँक रूप मे प्रस्‍तुत कऽ सकथि जे अति सुन्‍नरि होअय, जकरा मे ने कोनो दाग, ने झुर्री आ ने कोनो आन दोष होइक, बल्‍कि जे पवित्र और निष्‍कलंक होअय। 28 तहिना, पतिओ लोकनि केँ अपना स्‍त्री सँ अपन शरीर जकाँ प्रेम करबाक छैक। जे केओ अपना स्‍त्री सँ प्रेम करैत अछि, से अपना सँ प्रेम करैत अछि। 29 केओ कहाँ अपना शरीर सँ घृणा करैत अछि? बरु, ओ ओकर पालन-पोषण करैत अछि, ओकर देख-रेख करैत अछि। मसीहो मण्‍डलीक संग एहिना करैत छथि, कारण, मण्‍डली हुनकर शरीर छनि, 30 आ अपना सभ ओहि शरीरक अंग छी। 31 धर्मशास्‍त्र मे लिखल अछि जे, “एहि कारणेँ पुरुष अपन माय-बाबू केँ छोड़ि कऽ अपन स्‍त्रीक संग रहत, और दूनू एक शरीर भऽ जायत।”* 32 ई एकटा पैघ रहस्‍य अछि, मुदा हम एकरा एहि रूप मे बुझैत छी जे ई मसीह और हुनकर मण्‍डलीक सम्‍बन्‍धक दिस संकेत करैत अछि। 33 तैयो एकर व्‍यक्‍तिगत रूप मे सेहो अर्थ होइत अछि—अहाँ सभ मे सँ हर व्‍यक्‍ति जहिना अपना सँ प्रेम करैत छी तहिना अपना स्‍त्री सँ प्रेम करू, और स्‍त्री अपन पतिक आदर करथि।
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