10
बहत्तरि शिष्यक लेल प्रचारक काज
(मत्ती 11:20-27; 13:16-17)
1 एहि सभक बाद प्रभु बहत्तरि आरो व्यक्ति केँ नियुक्त कयलथिन और हुनका सभ केँ दू-दू गोटे कऽ प्रत्येक नगर आ गाम मे पठा देलथिन जतऽ-जतऽ ओ अपने जाय वला छलाह।
2 ओ हुनका सभ केँ कहलथिन, “पाकल फसिल तँ बहुत अछि, मुदा काटऽ वला मजदूर कम अछि। तेँ खेतक मालिक सँ प्रार्थना करिऔन जे ओ अपना खेत मे आरो मजदूर पठबथि।
3 अहाँ सभ आब जाउ। हम अहाँ सभ केँ जंगली जानबर सभक बीच मे भेँड़ी जकाँ पठा रहल छी।
4 अपना संग ने बटुआ लिअ आ ने झोरा आ ने जुत्ता; रस्ता मे ककरो सँ हाल-समाचार पुछबाक लेल नहि रूकू।
5 जखन कोनो घर मे प्रवेश करब, तँ पहिने ई कहिऔक, ‘एहि घर मे शान्ति होअय।’
6 जँ ओतऽ केओ शान्तिक पात्र होयत तँ अहाँक आशीर्वाद ओकरा पर बनल रहतैक, अन्यथा अहाँ लग घूमि आओत।
7 वासक लेल घर-घर नहि घुमू, और जे किछु ओ सभ अहाँ सभ केँ देत से खाउ-पीबू, कारण मजदूर केँ मजदूरी तँ भेटबाक चाही।
8 “हँ, जखन कोनो नगर मे प्रवेश कयलाक बाद स्वागत होइत अछि तँ जे किछु अहाँक सामने राखल जाय से खाउ।
9 ओतुक्का बिमार लोक सभ केँ ठीक करू, और लोक सभ केँ कहिऔक जे, परमेश्वरक राज्य अहाँ सभक लग मे आबि गेल अछि।
10 मुदा जखन कोनो नगर मे जायब और ओहि ठामक लोक सभ अहाँ सभक स्वागत नहि करय तँ ओहि नगरक सड़क-गली सभ मे जा कऽ कहिऔक,
11 ‘अहाँ सभक नगरक गर्दो जे हमरा सभक पयर मे लागल अछि से अहाँ सभक विरोध मे झाड़ैत छी। तैयो ई बात जानि लिअ जे परमेश्वरक राज्य लग मे आबि गेल अछि।’
12 हम अहाँ सभ केँ कहैत छी जे, न्यायक दिन मे ओहि नगर सँ सदोम नगरक दशा सहबा जोगरक रहतैक।
13 “है खुराजीन नगर, तोरा धिक्कार छौक! हे बेतसैदा नगर, तोरा धिक्कार छौक! जे चमत्कार सभ तोरा सभक बीच कयल गेल, से जँ सूर और सीदोन नगर सभ मे कयल गेल रहैत तँ ओहिठामक निवासी सभ बहुत पहिनहि चट्टी ओढ़ि और छाउर पर बैसि अपना पापक लेल पश्चात्ताप कऽ हृदय-परिवर्तन कऽ लेने रहैत।
14 न्यायक दिन मे तोरा सभक अपेक्षा सूर आ सीदोन नगरक दशा सहबा जोगरक रहतैक।
15 और हे कफरनहूम नगर! की तोँ स्वर्ग तक उठाओल जयबेँ? नहि! तोँ तँ पाताल मे खसाओल जयबेँ।
16 “जे केओ अहाँ सभक बात सुनैत अछि से हमर बात सुनैत अछि। जे केओ अहाँ सभ केँ अस्वीकार करैत अछि, से हमरा अस्वीकार करैत अछि, और जे केओ हमरा अस्वीकार करैत अछि से तिनका अस्वीकार करैत छनि जे हमरा पठौलनि।”
17 ओ बहत्तरि लोक सभ जखन अपन प्रचारक काज कऽ कऽ अयलाह तँ बहुत खुशीपूर्बक बजलाह, “प्रभुजी, अहाँक नामक शक्ति सँ दुष्टात्मा सभ सेहो हमरा सभक बात मानलक।”
18 यीशु उत्तर देलथिन, “हम शैतान केँ बिजुली जकाँ आकाश सँ खसैत देखलहुँ।
19 हँ, हम अहाँ सभ केँ साँप और बीछ केँ पिचबाक सामर्थ्य और शत्रुक समस्त शक्ति पर अधिकार देने छी। कोनो वस्तु अहाँ सभक हानि नहि कऽ सकत।
20 तैयो, एहि लेल आनन्द नहि मनाउ जे दुष्टात्मा सभ अहाँ सभक बात मानैत अछि, बल्कि एही लेल आनन्दित होउ जे अहाँ सभक नाम स्वर्ग मे लिखायल अछि।”
21 तखने यीशु पवित्र आत्मा सँ अत्यन्त आनन्दित भऽ कऽ बजलाह, “हे पिता, स्वर्ग आ पृथ्वीक मालिक, हम अहाँ केँ एहि लेल धन्यवाद दैत छी जे अहाँ ई बात सभ बुद्धिमान और विद्वान सभ सँ नुका कऽ रखलहुँ मुदा बच्चा सभ पर प्रगट कयलहुँ। हँ पिता, कारण, अहाँ केँ एही बात सँ प्रसन्नता भेल।
22 “हमरा पिता द्वारा सभ किछु हमरा हाथ मे सौंपल गेल अछि। पुत्र के छथि, से पिता केँ छोड़ि आरो केओ नहि जनैत अछि, और पिता के छथि, सेहो केओ नहि जनैत अछि—मात्र पुत्र और जकरा सभ पर पुत्र हुनका प्रगट करऽ चाहय, से जनैत अछि।”
23 तखन ओ अपना शिष्य सभक दिस घूमि कऽ नहुएँ जोर सँ कहलथिन, “अहाँ सभ धन्य छी जे, जे बात सभ देखि रहल छी से देखि पौलहुँ।
24 कारण, हम अहाँ सभ केँ कहैत छी जे अपना समय मे एहन बहुत राजा और परमेश्वरक प्रवक्ता लोकनि रहथि, जे सभ चाहलनि जे, जाहि बात सभ केँ अहाँ सभ देखि रहल छी, तकरा देखी, मुदा नहि देखलनि; और जे बात सभ अहाँ सभ सुनि रहल छी, से सुनी, मुदा नहि सुनलनि।”
असली पड़ोसी
25 एक बेर धर्म-नियमक एक पंडित उठि कऽ यीशु केँ जँचबाक लेल पुछलथिन, “गुरुजी, अनन्त जीवन प्राप्त करबाक लेल हम की करू?”
26 यीशु उत्तर देलथिन, “धर्म-नियम मे की लिखल अछि? ओहि मे की पढ़ैत छी?”
27 ओ कहलथिन, “ ‘तोँ अपन प्रभु-परमेश्वर केँ अपन सम्पूर्ण मोन सँ, अपन सम्पूर्ण आत्मा सँ, अपन सम्पूर्ण शक्ति सँ और अपन सम्पूर्ण बुद्धि सँ प्रेम करह,’ और ‘तोँ अपना पड़ोसी केँ अपने जकाँ प्रेम करह।’”
28 यीशु कहलथिन, “अहाँ ठीक कहलहुँ। एना करू तँ जीवन पायब।”
29 मुदा ओ अपना केँ ठीक ठहरयबाक उद्देश्य सँ यीशु सँ पुछलथिन, “तँ हमर पड़ोसी के अछि?”
30 यीशु उत्तर देलथिन, “एक आदमी यरूशलेम सँ यरीहो नगर जा रहल छल कि डाकू सभ आबि कऽ ओकरा घेरि लेलकैक। ओकरा नाङट कऽ कऽ आ मारैत-मारैत अधमरू बना कऽ छोड़ि देलकैक।
31 संयोग सँ एक पुरोहित ओहि रस्ता सँ जा रहल छलाह। ओ जखन ओहि आदमी केँ देखलनि तँ रस्ता काटि कऽ आगाँ बढ़ि गेलाह।
32 तहिना मन्दिरक एक सेवक जखन ओहि स्थान पर अयलाह आ ओकरा देखलनि तँ ओहो रस्ता काटि कऽ आगाँ बढ़ि गेलाह।
33 मुदा सामरी जातिक एक आदमी जे ओहि दने जाइत रहय से ओकरा देखि कऽ दया सँ भरि गेल।
34 ओ ओकरा लग जा कऽ ओकर घाव सभ पर तेल और दारू लगा कऽ पट्टी बान्हि देलकैक। तखन ओकरा अपना गदहा पर बैसा कऽ एकटा सराय मे लऽ गेल और ओहिठाम ओकर सेवा कयलकैक।
35 प्रात भेने ओ दू चानीक रुपैया निकालि कऽ सरायक मालिक केँ दऽ कऽ कहलकनि, ‘हिनकर देखभाल करिऔन। एहि सँ बेसी जे खर्च पड़त से हम घुमती काल मे अहाँ केँ दऽ देब।’
36 आब अहाँक विचार सँ, एहि तीनू मे सँ डाकू सभक हाथ मे पड़ल आदमीक पड़ोसी अपना केँ के बुझलक?”
37 धर्म-नियमक पंडित उत्तर देलथिन, “जे ओकरा पर दया कयलकैक, से।” यीशु कहलथिन, “अहूँ जा कऽ एहिना करू।”
मरियम और मार्था
38 यीशु और हुनकर शिष्य सभ आगाँ बढ़ि कऽ एक गाम मे अयलाह जतऽ मार्था नामक एक स्त्री अपना ओहिठाम हुनकर अतिथि-सत्कार कयलथिन।
39 ओहि स्त्री केँ मरियम नामक एकटा बहिन छलनि। ओ यीशुक पयर लग बैसि हुनकर बात सुनि रहल छलीह।
40 मुदा मार्था सेवा-सत्कारक भार सँ चिन्तित छलीह। ओ यीशु लग आबि कऽ कहलथिन, “प्रभु, अहाँ केँ कनेको चिन्ता नहि अछि जे हमर बहिन सभटा काज करऽ लेल हमरा असगरे छोड़ि देने अछि? ओकरा हमर मदति करबाक लेल कहिऔक!”
41 प्रभु उत्तर देलथिन, “मार्था, अए मार्था! अहाँ बहुत बातक लेल चिन्तित छी,
42 मुदा बात एकेटा जरूरी अछि। मरियम वैह नीक बात चुनि लेने अछि और ओकरा सँ ओ नहि छिनल जयतैक।”