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1 'अक़्लमन्द के बराबर कौन है?
और किसी बात की तफ़्सीर करना कौन जानता है?
इंसान की हिकमत उसके चेहरे को रोशन करती है,
और उसके चेहरे की सख़्ती उससे बदल जाती है।
बादशाह के हुकम की फरमानी करना
2 मैं तुझे सलाह देता हूँ कि तू बा'दशाह के हुक्म को ख़ुदा की क़सम की वजह से मानता रह।
3 तू जल्दबाज़ी करके उसके सामने से ग़ायब न हो और किसी बुरी बात पर इसरार न कर, क्यूँकि वह जो कुछ चाहता है करता है।
4 इसलिए कि बा'दशाह का हुक्म बाइख़्तियार है, और उससे कौन कहेगा कि तू ये क्या करता है?
5 जो कोई हुक्म मानता है,
बुराई को न देखेगा और दानिशमंद का दिल मौक़े' और इन्साफ को समझता है।
6 इसलिए कि हर अम्र का मौक़ा' और क़ायदा है,
लेकिन इंसान की मुसीबत उस पर भारी है।
7 क्यूँकि जो कुछ होगा उसको मा'लूम नहीं,
और कौन उसे बता सकता है कि क्यूँकर होगा?
8 किसी आदमी को रूह पर इख़्तियार नहीं कि उसे रोक सके,
और मरने का दिन भी उसके इख़्तियार से बाहर है;
और उस लड़ाई से छुट्टी नहीं मिलतीऔर न शरारत उसको जो उसमे ग़र्क़ हैं छुड़ाएगी
9 ये सब मैंने देखा और अपना दिल सारे काम पर जो दुनिया' में किया जाता है लगाया।
ऐसा वक़्त है जिसमें एक शख़्स दूसरे पर हुकूमत करके अपने ऊपर बला लाता है।
10 इसके 'अलावा मैंने देखा कि शरीर गाड़े गए, और लोग भी आए और रास्तबाज़ पाक मक़ाम से निकले और अपने शहर में फ़रामोश हो गए; ये भी बेकारहै।
11 क्यूँकि बुरे काम पर सज़ा का हुक्म फ़ौरन नहीं दिया जाता, इसलिए बनी आदम का दिल उनमें बुराई पर बाशिद्दत मायल है।
12 अगरचे गुनहगार सौ बार बुराई करें और उसकी उम्र दराज़ हो, तोभी मैं यक़ीनन जानता हूँ कि उन ही का भला होगा जो ख़ुदा तरस हैं और उसके सामने काँपते हैं;
13 लेकिन गुनहगार का भला कभी न होगा, और न वह अपने दिनों को साये की तरह बढ़ाएगा, इसलिए कि वह ख़ुदा के सामने काँपता नहीं।
14 एक बेकार है जो ज़मीन पर वकू' में आती है, कि नेकोकार लोग हैं जिनको वह कुछ पेश आता है जो चाहिए था कि बदकिरदारों को पेश आता; और शरीर लोग हैं जिनको वह कुछ मिलता है, जो चाहिये था कि नेकोकारों को मिलता। मैंने कहा कि ये भी बेकार है।
15 तब मैंने ख़ुर्रमी की ता'रीफ़ की, क्यूँकि दुनिया' में इंसान के लिए कोई चीज़ इससे बेहतर नहीं कि खाए और पिए और ख़ुश रहे, क्यूँकि ये उसकी मेहनत के दौरान में उसकी ज़िन्दगी के तमाम दिनों में जो ख़ुदा ने दुनिया में उसे बख़्शी उसके साथ रहेगी।
16 जब मैंने अपना दिल लगाया कि हिकमत सीखूँ और उस कामकाज को जो ज़मीन पर किया जाता है देखूँ क्यूँकि कोई ऐसा भी है जिसकी आँखों में न रात को नींद आती है न दिन को।
17 तब मैंने ख़ुदा के सारे काम पर निगाह की और जाना कि इंसान उस काम को, जो दुनिया में किया जाता है, दरियाफ़्त नहीं कर सकता। अगरचे इंसान कितनी ही मेहनत से उसकी तलाश करे, लेकिन कुछ दरियाफ़्त न करेगा; बल्कि हर तरह 'अक़्लमन्द को गुमान हो कि उसको मा'लूम कर लेगा, लेकिन वह कभी उसको दरियाफ़्त नहीं कर सकेगा।