मलाकी
मुसन्निफ़ की पहचान
मलाकी 1:1 किताब के मुसन्निफ़ को मलाकी नबी बतौर पहचानती है। इब्रानी में यह नाम एक लफ़्ज़ी मा‘नी पैग़ाम्बर से आता है जो मलाकी की अदाकारी को ख़ुदावन्द का एक नबी होने बतौर इशारा करता है जो ख़ुदा के लोगों को ख़ुदा का पैग़म्बर सुनाता है। दुगनी समझ के मुताबिक़ मलाकी एक पैगम्बर है जो हमारे लिए इस किताब को ले आया, और उसका पैग़ाम यह है कि मुस्तक़बिल में ख़ुदा बड़े नबी एलियाह की तरह एक दूसरे पैग़म्बर को भेजेगा, ख़ुदावन्द का दिन लौटने से पहले।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
इस किताब की तस्नीफ की तारीख तक़रीबन 430 - 400 क़ब्लमसीह के बीच है।
यह जिलावत्नी से पहले की किताब है मतलब यह कि इस को बाबुल की गिरफ़्तारी से लौटने के बाद लिखा गया।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
यरूशलेम में रहने वाले यहूदियों के लिए एक ख़त है और एक आम ख़त बतौर ख़ुदा के लोगों के लिए जो हर जगह पाए जाते हैं।
असल मक़सूद
लोगों को याद दिलाने के लिए कि ख़ुदा वह सब कुछ करेगा। जो वह अपने लोगों की मदद बतौर कर सकता है। और उन्हें याद दिलाने के लिए कि ख़ुदा उनको उनकी बुराइयों की बाबत ज़ामिन ठहराने के लिए पकड़े रहेगा जब वह मुन्सिफ़ की तरह आता है। लोगों को इस बात की तरफ़ तवज्जोह दिलाने के लिए कि वह अपने गुनाहों से तौबा करें ताकि मुआहिदे की बर्कतें पूरी की जाएं। यह मलाकी के ज़रिए ख़ुदा की तंबीह थी ताकि लोगों से कहा गया कि ख़ुदा की तरफ़ फिरो। मलाकी की किताब पुराने अहदनामे की आखरी किताब है उसी बतौर ख़ुदा के इंसाफ़ का एलान और उसकी बहाली का वायदा मसीहा के आने के ज़रिए से किया गया है जो बनी इस्राईल के कानों में बूंज रहा है।
मौज़’अ
रिवाज व दस्तूर की पाबन्दी की तंबीह की गई है।
बैरूनी ख़ाका
1. काहिनों को नसीहत कि वह ख़ुदा की इज्जत करें — 1:1-2:9
2. यहूदा को नसीहत कि वह वफ़ादार रहें — 2:10-3:6
3. यहूदा को नसीहत कि वह ख़ुदा की तरफ़ फिरे — 3:7-4:6
1
1 ख़ुदावन्द की तरफ़ से मलाकी के ज़रिए' इस्राईल के लिए बार — ए — नबुव्वत:
इस्राईल के लिये ख़ुदा की महब्बत
2 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, “मैंने तुम से मुहब्बत रख्खी, तोभी तुम कहते हो, 'तूने किस बात में हम से मुहब्बत ज़ाहिर की?” ख़ुदावन्द फ़रमाता है, “क्या 'एसौ या'क़ूब का भाई न था? लेकिन मैंने या'क़ूब से मुहब्बत रख्खी,
3 और 'एसौ से 'अदावत रखी, और उसके पहाड़ों को वीरान किया और उसकी मीरास वीराने के गीदड़ों को दी।”
4 अगर अदोम कहे, “हम बर्बाद तो हुए, लेकिन वीरान जगहों को फिर आकर ता'मीर करेंगे, तो रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है, अगरचे वह ता'मीर करें, लेकिन मैं ढाऊँगा, और लोग उनका ये नाम रख्खेंगे, 'शरारत का मुल्क', 'वह लोग जिन पर हमेशा ख़ुदावन्द का क़हर है।”
5 और तुम्हारी आँखें देखेंगी और तुम कहोगे कि “ख़ुदावन्द की तम्जीद, इस्राईल की हदों से आगे तक हो।”
ना'काबिल कुर्बानी
6 रब्बुल — उल — अफ़वाज तुम को फ़रमाता है: “ऐ मेरे नाम की तहक़ीर करने वाले काहिनों, बेटा अपने बाप की, और नौकर अपने आक़ा की ता'ज़ीम करता है। इसलिए अगर मैं बाप हूँ, तो मेरी 'इज़्ज़त कहाँ है? और अगर आक़ा हूँ, तो मेरा ख़ौफ़ कहाँ है? लेकिन तुम कहते हो, 'हमने किस बात में तेरे नाम की तहक़ीर की?'
7 तुम मेरे मज़बह पर नापाक रोटी पेश करते हो और कहते हो कि 'हमने किस बात में तेरी तौहीन की?' इसी में जो कहते हो, ख़ुदावन्द की मेज़ हक़ीर है।
8 जब तुम अंधे की क़ुर्बानी करते हो, तो कुछ बुराई नहीं? और जब लंगड़े और बीमार को पेश करते हो, तो कुछ नुक़सान नहीं? अब यही अपने हाकिम की नज़्र कर, क्या वह तुझ से ख़ुश होगा और तू उसका मंज़ूर — ए — नज़र होगा? रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।
9 अब ज़रा ख़ुदा को मनाओ, ताकि वह हम पर रहम फ़रमाए। तुम्हारे ही हाथों ने ये पेश किया है; क्या तुम उसके मंज़ूर — ए — नज़र होगे? रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।
10 काश कि तुम में कोई ऐसा होता जो दरवाज़े बंद करता, और तुम मेरे मज़बह पर 'अबस आग न जलाते, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है, मैं तुम से ख़ुश नहीं हूँ और तुम्हारे हाथ का हदिया हरगिज़ क़ुबूल न करूँगा।
11 क्यूँकि आफ़ताब के तुलू' से ग़ुरुब तक क़ौमों में मेरे नाम की तम्जीद होगी, और हर जगह मेरे नाम पर ख़ुशबू जलाएँगे और पाक हदिये पेश करेंगे; क्यूँकि क़ौमों में मेरे नाम की तम्जीद होगी, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।
12 लेकिन तुम इस बात में उसकी तौहीन करते हो, कि तुम कहते हो, 'ख़ुदावन्द की मेज़ पर क्या है, उस पर के हदिये बेहक़ीक़त हैं।
13 और तुम ने कहा, 'ये कैसी ज़हमत है,' और उस पर नाक चढ़ाई रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है। फिर तुम लूट का माल और लंगड़े और बीमार ज़बीहे लाए, और इसी तरह के हदिये पेश करे! क्या मैं इनको तुम्हारे हाथ से क़ुबूल करूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
14 ला'नत उस दग़ाबाज़ पर जिसके गल्ले में नर है, लेकिन ख़ुदावन्द के लिए 'ऐबदार जानवर की नज़्र मानकर पेश करता है; क्यूँकि मैं शाह — ए — 'अज़ीम हूँ और क़ौमों में मेरा नाम मुहीब है, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।