2 समुएल
मुसन्निफ़ की पहचान
2 समुएल की किताब उसके मुसन्निफ़ की पहचान नहीं करती — इसका मुसन्निफ़ नबी समुएल नहीं हो सकता क्यूंकि वह मर चुका था असलियत में 1 समुएल और 2 समुएल एक ही कताब थे जिन सत्तर या बहतर लोगों ने पुराने अहदनामे के यूनानी तर्ज़ का तरजुमा किया था उन्होंने इसको दो किताबों में तक्सीम किया साऊल की मौत के साथ पहली किताब के ख़तम होने के बाद से लेकर दाउद की हुकूमत के आगाज़ के साथ दूसरी किताब शुरू हुई यह बयान करते हुए कि किस तरह दाउद यहूदिया का बादशाह बना और बाद में तमाम इस्राईल का।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
इस किताब के तसनीफ़ की तारीख़ तकरीबन 1050 - 722 कबल मसीह है।
इस को बाबुल की गुलामी के दौरान इसतिसना की तारीख़ का एक हिस्सा बतौर लिखा गया।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
एक तरह से देखा जाये तो इस किताब के असल नाज़रीन व कक़ारिईन बनी इस्राईल रहे हैं जो दाऊद और सुलेमान के हुकूमत की रिआया और कामयाब नस्ल थी।
असल मक़सूद
2 समुएल की किताब दाउद बादशाह की हुकूमत का कलमबन्द है यह किताब दाउद की स्याक — ए — इबारत में उसके अहद की जगह रखता है — दाउद यरूशलेम को इस्राईल का सियासी और मज़हबी मरकज़ बनाता है — 2 समुएल 5:6 — 12; 6:1 — 17 यहोवा का कलाम (2 समुएल 7:4 — 16) और दाउद के कौल (2 समुएल 23:1 — 17) यह दोनों खुदा की दी हुई बादशाही की अहमियत पर दबाव डालते है मसीह की हज़ारसाला बादशाही की नबुव्वत बतौर इशारा किया गया है।
मौज़’अ
इतिहाद
बैरूनी ख़ाका
1. दाउद की बादशाही का उरुज — 1:1-10:19
2. दाउद की बादशाही का उरूज — 11:1-20:26
3. ज़मीमा — 21:1-24:25
1
दाऊद को साऊल की मौत का पता चलना
1 और साऊल की मौत के बा’द जब दाऊद अमालीक़ियों को मार कर लौटा और दाऊद को सिक़लाज में रहते हुए दो दिन हो गए।
2 तो तीसरे दिन ऐसा हुआ कि एक शख़्स लश्करगाह में से साऊल के पास से अपने लिबास को फाड़े और सिर पर ख़ाक डाले हुए आया और जब वह दाऊद के पास पहुँचा तो ज़मीन पर गिरा और सिज्दा किया।
3 दाऊद ने उससे कहा, “तू कहाँ से आता है?” उसने उससे कहा, “मैं इस्राईल की लश्करगाह में से बच निकला हूँ।”
4 तब दाऊद ने उससे पू छा, “क्या हाल रहा? ज़रा मुझे बता।” उसने कहा कि “लोग जंग में से भाग गए, और बहुत से गिरे मर गए और साऊल और उसका बेटा यूनतन भी मर गये हैं।”
5 तब दाऊद ने उस जवान से जिसने उसको यह ख़बर दी कहा, “तुझे कैसे मा'लूम है कि साऊल और उसका बेटा यूनतन मर गये?”
6 वह जवान जिसने उसको यह ख़बर दी कहने लगा कि मैं कूह — ए — जिलबू’आ पर अचानक पहुँच गया और क्या देखा कि साऊल अपने नेज़ह पर झुका हुआ है रथ और सवार उसका पीछा किए आ रहे हैं।
7 और जब उसने अपने पीछे नज़र की तो मुझको देखा और मुझे पुकारा, मैंने जवाब दिया “मैं हाज़िर हूँ।”
8 उसने मुझे कहा तू कौन है? मैंने उसे जवाब दिया मैं अमालीक़ी हूँ।
9 फिर उसने मुझसे कहा, मेरे पास खड़ा होकर मुझे क़त्ल कर डाल क्यूँकि मैं बड़े तकलीफ़ में हूँ और अब तक मेरी जान मुझ में है।
10 तब मैंने उसके पास खड़े होकर उसे क़त्ल किया क्यूँकि मुझे यक़ीन था कि अब जो वह गिरा है तो बचेगा नहीं और मैं उसके सिर का ताज और बाज़ू पर का कंगन लेकर उनको अपने ख़ुदावन्द के पास लाया हूँ।
11 तब दाऊद ने अपने कपड़ों को पकड़ कर उनको फाड़ डाला और उसके साथ सब आदमियों ने भी ऐसा ही किया।
12 और वह साऊल और उसके बेटे यूनतन और ख़ुदावन्द के लोगों और इस्राईल के घराने के लिये मातम करने लगे और रोने लगे और शाम तक रोज़ा रखा इसलिए कि वह तलवार से मारे गये थे।
13 फिर दाऊद ने उस जवान से जो यह ख़बर लाया था पूछा कि “तू कहाँ का है?” उसने कहा, “मैं एक परदेसी का बेटा और 'अमालीक़ी हूँ।”
14 दाऊद ने उससे कहा, “तू ख़ुदावन्द के ममसूह को हलाक करने के लिए उस पर हाथ चलाने से क्यूँ न डरा?”
15 फिर दाऊद ने एक जवान को बुलाकर कहा, “नज़दीक जा और उसपर हमला कर।” इसलिए उसने उसे ऐसा मारा कि वह मर गया।
16 और दाऊद ने उससे कहा, “तेरा ख़ून तेरे ही सिर पर हो क्यूँकि तू ही ने अपने मुँह से ख़ुद अपने ऊपर गवाही दी। और कहा कि मैंने ख़ुदावन्द के ममसूह को जान से मारा।”
यूनतन और साऊल के लिये दाऊद का गीत
17 और दाऊद ने साऊल और उसके बेटे यूनतन पर इस मर्सिया के साथ मातम किया।
18 और उसने उनको हुक्म दिया कि बनी यहूदाह को कमान का गीत सिखायें। देखो वह याशर की किताब में लिखा है।
19 “ए इस्राईल! तेरे ही ऊँचे मक़ामों पर तेरा ग़ुरूर मारा गया, हाय! पहलवान कैसे मर गए।
20 यह जात में न बताना, अस्क़लोन की गलियों में इसकी ख़बर न करना, ऐसा न हो कि फ़िलिस्तियों की बेटियाँ ख़ुश हों, ऐसा न हो कि नामख़्तूनों की बेटियाँ ग़ुरूर करें।
21 ऐ जिलबू'आ के पहाड़ों! तुम पर न ओस पड़े और न बारिश हो और न हदिया की चीज़ों के खेत हों, क्यूँकि वहाँ पहलवानों की ढाल बुरी तरह से फेंक दी गई, या'नी साऊल की ढाल जिस पर तेल नहीं लगाया गया था।
22 मक़तूलों के ख़ून से ज़बरदस्तों की चर्बी से यूनतन की कमान कभी न टली, और साऊल की तलवार ख़ाली न लौटी।
23 साऊल और यूनतन अपने जीते जी अज़ीज़ और दिल पसन्द थे और अपनी मौत के वक़्त अलग न हुए, वह 'उक़ाबों से तेज़ और शेर बबरों से ताक़त वर थे।
24 हे इस्राईली औरतों, साऊल के लिए रोओ, जिसने तुमको अच्छे अच्छे अर्ग़वानी लिबास पहनाए और सोने के ज़ेवरों से तुम्हारे लिबास को आरास्ता किया।
25 हाय! लड़ाई में पहलवान कैसे मर गये! यूनतन तेरे ऊँचे मक़ामों पर क़त्ल हुआ।
26 ऐ मेरे भाई यूनतन! मुझे तेरा ग़म है, तू मुझको बहुत ही प्यारा था, तेरी मुहब्बत मेरे लिए 'अजीब थी, औरतों की मुहब्बत से भी ज़्यादा।
27 हाय, पहलवान कैसे मर गये और जंग के हथियार बरबाद हो गये।”