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पके फल से भरी टोकरी
एक बार फिर रब क़ादिरे-मुतलक़ ने मुझे रोया दिखाई। मैंने पके हुए फल से भरी हुई टोकरी देखी। रब ने पूछा, “ऐ आमूस, तुझे क्या नज़र आता है?” मैंने जवाब दिया, “पके हुए फल से भरी हुई टोकरी।” तब रब ने मुझसे फ़रमाया, “मेरी क़ौम का अंजाम पक गया है। अब से मैं उन्हें सज़ा दिए बग़ैर नहीं छोड़ूँगा। रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि उस दिन महल में गीत सुनाई नहीं देंगे बल्कि आहो-ज़ारी। चारों तरफ़ नाशें नज़र आएँगी, क्योंकि दुश्मन उन्हें हर जगह फेंकेगा। ख़ामोश!”
अवाम का इस्तेह्साल
ऐ ग़रीबों को कुचलनेवालो, ऐ ज़रूरतमंदों को तबाह करनेवालो, सुनो! 5-6 तुम कहते हो, “नए चाँद की ईद कब गुज़र जाएगी, सबत का दिन कब ख़त्म है ताकि हम अनाज के गोदाम खोलकर ग़ल्ला बेच सकें? तब हम पैमाइश के बरतन छोटे और तराज़ू के बाट हलके बनाएँगे, साथ साथ सौदे का भाव बढ़ाएँगे। हम फ़रोख़्त करते वक़्त अनाज के साथ उसका भूसा भी मिलाएँगे।” अपने नाजायज़ तरीक़ों से तुम थोड़े पैसों में बल्कि एक जोड़ी जूतों के एवज़ ग़रीबों को ख़रीदते हो।
रब ने याक़ूब के फ़ख़र की क़सम खाकर वादा किया है, “जो कुछ उनसे सरज़द हुआ है उसे मैं कभी नहीं भूलूँगा। उन्हीं की वजह से ज़मीन लरज़ उठेगी और उसके तमाम बाशिंदे मातम करेंगे। जिस तरह मिसर में दरियाए-नील बरसात के मौसम में सैलाबी सूरत इख़्तियार कर लेता है उसी तरह पूरी ज़मीन उठेगी। वह नील की तरह जोश में आएगी, फिर दुबारा उतर जाएगी।”
रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है, “उस दिन मैं होने दूँगा कि सूरज दोपहर के वक़्त ग़ुरूब हो जाए। दिन उरूज पर ही होगा तो ज़मीन पर अंधेरा छा जाएगा। 10 मैं तुम्हारे तहवारों को मातम में और तुम्हारे गीतों को आहो-बुका में बदल दूँगा। मैं सबको टाट के मातमी लिबास पहनाकर हर एक का सर मुँडवाऊँगा। लोग यों मातम करेंगे जैसा उनका वाहिद बेटा कूच कर गया हो। अंजाम का वह दिन कितना तलख़ होगा।”
अल्लाह आइंदा जवाब नहीं देगा
11 क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है, “ऐसे दिन आनेवाले हैं जब मैं मुल्क में काल भेजूँगा। लेकिन लोग न रोटी और न पानी से बल्कि अल्लाह का कलाम सुनने से महरूम रहेंगे। 12 लोग लड़खड़ाते हुए एक समुंदर से दूसरे तक और शिमाल से मशरिक़ तक फिरेंगे ताकि रब का कलाम मिल जाए, लेकिन बेसूद।
13 उस दिन ख़ूबसूरत कुँवारियाँ और जवान मर्द प्यास के मारे बेहोश हो जाएंगे। 14 जो इस वक़्त सामरिया के मकरूह बुत की क़सम खाते और कहते हैं, ‘ऐ दान, तेरे देवता की हयात की क़सम’ या ‘ऐ बैर-सबा, तेरे देवता की क़सम!’ वह उस वक़्त गिर जाएंगे और दुबारा कभी नहीं उठेंगे।”