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मुक़द्दस इजतिमा में शरीक होने की शरायत
जब इसराईली रब के मक़दिस के पास जमा होते हैं तो उसे हाज़िर होने की इजाज़त नहीं जो काटने या कुचलने से ख़ोजा बन गया है। इसी तरह वह भी मुक़द्दस इजतिमा से दूर रहे जो नाजायज़ ताल्लुक़ात के नतीजे में पैदा हुआ है। उस की औलाद भी दसवीं पुश्त तक उसमें नहीं आ सकती।
कोई भी अम्मोनी या मोआबी मुक़द्दस इजतिमा में शरीक नहीं हो सकता। इन क़ौमों की औलाद दसवीं पुश्त तक भी इस जमात में हाज़िर नहीं हो सकती, क्योंकि जब तुम मिसर से निकल आए तो वह रोटी और पानी लेकर तुमसे मिलने न आए। न सिर्फ़ यह बल्कि उन्होंने मसोपुतामिया के शहर फ़तोर में जाकर बिलाम बिन बओर को पैसे दिए ताकि वह तुझ पर लानत भेजे। लेकिन रब तेरे ख़ुदा ने बिलाम की न सुनी बल्कि उस की लानत बरकत में बदल दी। क्योंकि रब तेरा ख़ुदा तुझसे प्यार करता है। उम्र-भर कुछ न करना जिससे इन क़ौमों की सलामती और ख़ुशहाली बढ़ जाए।
लेकिन अदोमियों को मकरूह न समझना, क्योंकि वह तुम्हारे भाई हैं। इसी तरह मिसरियों को भी मकरूह न समझना, क्योंकि तू उनके मुल्क में परदेसी मेहमान था। उनकी तीसरी नसल के लोग रब के मुक़द्दस इजतिमा में शरीक हो सकते हैं।
ख़ैमागाह में नापाकी
अपने दुश्मनों से जंग करते वक़्त अपनी लशकरगाह में हर नापाक चीज़ से दूर रहना। 10 मसलन अगर कोई आदमी रात के वक़्त एहतलाम के बाइस नापाक हो जाए तो वह लशकरगाह के बाहर जाकर शाम तक वहाँ ठहरे। 11 दिन ढलते वक़्त वह नहा ले तो सूरज डूबने पर लशकरगाह में वापस आ सकता है।
12 अपनी हाजत रफ़ा करने के लिए लशकरगाह से बाहर कोई जगह मुक़र्रर कर। 13 जब किसी को हाजत के लिए बैठना हो तो वह इसके लिए गढ़ा खोदे और बाद में उसे मिट्टी से भर दे। इसलिए अपने सामान में खुदाई का कोई आला रखना ज़रूरी है।
14 रब तेरा ख़ुदा तेरी लशकरगाह में तेरे दरमियान ही घुमता-फिरता है ताकि तू महफ़ूज़ रहे और दुश्मन तेरे सामने शिकस्त खाए। इसलिए लाज़िम है कि तेरी लशकरगाह उसके लिए मख़सूसो-मुक़द्दस हो। ऐसा न हो कि अल्लाह वहाँ कोई शर्मनाक बात देखकर तुझसे दूर हो जाए।
फ़रार हुए ग़ुलामों की मदद करना
15 अगर कोई ग़ुलाम तेरे पास पनाह ले तो उसे मालिक को वापस न करना। 16 वह तेरे साथ और तेरे दरमियान ही रहे, वहाँ जहाँ वह बसना चाहे, उस शहर में जो उसे पसंद आए। उसे न दबाना।
मंदिर में इसमतफ़रोशी मना है
17 किसी देवता की ख़िदमत में इसमतफ़रोशी करना हर इसराईली औरत और मर्द के लिए मना है। 18 मन्नत मानते वक़्त न कसबी का अज्र, न कुत्ते के पैसे * रब के मक़दिस में लाना, क्योंकि रब तेरे ख़ुदा को दोनों चीज़ों से घिन है।
अपने हमवतनों से सूद न लेना
19 अगर कोई इसराईली भाई तुझसे क़र्ज़ ले तो उससे सूद न लेना, ख़ाह तूने उसे पैसे, खाना या कोई और चीज़ दी हो। 20 अपने इसराईली भाई से सूद न ले बल्कि सिर्फ़ परदेसी से। फिर जब तू मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उसमें रहेगा तो रब तेरा ख़ुदा तेरे हर काम में बरकत देगा।
अपनी मन्नत पूरी करना
21 जब तू रब अपने ख़ुदा के हुज़ूर मन्नत माने तो उसे पूरा करने में देर न करना। रब तेरा ख़ुदा यक़ीनन तुझसे इसका मुतालबा करेगा। अगर तू उसे पूरा न करे तो क़ुसूरवार ठहरेगा। 22 अगर तू मन्नत मानने से बाज़ रहे तो क़ुसूरवार नहीं ठहरेगा, 23 लेकिन अगर तू अपनी दिली ख़ुशी से रब के हुज़ूर मन्नत माने तो हर सूरत में उसे पूरा कर।
दूसरे के बाग़ में से गुज़रने का रवैया
24 किसी हमवतन के अंगूर के बाग़ में से गुज़रते वक़्त तुझे जितना जी चाहे उसके अंगूर खाने की इजाज़त है। लेकिन अपने किसी बरतन में फल जमा न करना। 25 इसी तरह किसी हमवतन के अनाज के खेत में से गुज़रते वक़्त तुझे अपने हाथों से अनाज की बालियाँ तोड़ने की इजाज़त है। लेकिन दराँती इस्तेमाल न करना।
* 23:18 यक़ीन से नहीं कहा जा सकता कि ‘कुत्ते के पैसे’ से क्या मुराद है। ग़ालिबन इसके पीछे बुतपरस्ती का कोई दस्तूर है।