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फ़सह की ईद
फिर रब ने मिसर में मूसा और हारून से कहा, “अब से यह महीना तुम्हारे लिए साल का पहला महीना हो।” इसराईल की पूरी जमात को बताना कि इस महीने के दसवें दिन हर ख़ानदान का सरपरस्त अपने घराने के लिए लेला यानी भेड़ या बकरी का बच्चा हासिल करे। अगर घराने के अफ़राद पूरा जानवर खाने के लिए कम हों तो वह अपने सबसे क़रीबी पड़ोसी के साथ मिलकर लेला हासिल करें। इतने लोग उसमें से खाएँ कि सबके लिए काफ़ी हो और पूरा जानवर खाया जाए। इसके लिए एक साल का नर बच्चा चुन लेना जिसमें नुक़्स न हो। वह भेड़ या बकरी का बच्चा हो सकता है।
महीने के 14वें दिन तक उस की देख-भाल करो। उस दिन तमाम इसराईली सूरज के ग़ुरूब होते वक़्त अपने लेले ज़बह करें। हर ख़ानदान अपने जानवर का कुछ ख़ून जमा करके उसे उस घर के दरवाज़े की चौखट पर लगाए जहाँ लेला खाया जाएगा। यह ख़ून चौखट के ऊपरवाले हिस्से और दाएँ बाएँ के बाज़ुओं पर लगाया जाए। लाज़िम है कि लोग जानवर को भूनकर उसी रात खाएँ। साथ ही वह कड़वा साग-पात और बेख़मीरी रोटियाँ भी खाएँ। लेले का गोश्त कच्चा न खाना, न उसे पानी में उबालना बल्कि पूरे जानवर को सर, पैरों और अंदरूनी हिस्सों समेत आग पर भूनना। 10 लाज़िम है कि पूरा गोश्त उसी रात खाया जाए। अगर कुछ सुबह तक बच जाए तो उसे जलाना है। 11 खाना खाते वक़्त ऐसा लिबास पहनना जैसे तुम सफ़र पर जा रहे हो। अपने जूते पहने रखना और हाथ में सफ़र के लिए लाठी लिए हुए तुम उसे जल्दी जल्दी खाना। रब के फ़सह की ईद यों मनाना।
12 मैं आज रात मिसर में से गुज़रूँगा और हर पहलौठे को जान से मार दूँगा, ख़ाह इनसान का हो या हैवान का। यों मैं जो रब हूँ मिसर के तमाम देवताओं की अदालत करूँगा। 13 लेकिन तुम्हारे घरों पर लगा हुआ ख़ून तुम्हारा ख़ास निशान होगा। जिस जिस घर के दरवाज़े पर मैं वह ख़ून देखूँगा उसे छोड़ता जाऊँगा। जब मैं मिसर पर हमला करूँगा तो मोहलक वबा तुम तक नहीं पहुँचेगी। 14 आज की रात को हमेशा याद रखना। इसे नसल-दर-नसल और हर साल रब की ख़ास ईद के तौर पर मनाना।
बेख़मीरी रोटी की ईद
15 सात दिन तक बेख़मीरी रोटी खाना है। पहले दिन अपने घरों से तमाम ख़मीर निकाल देना। अगर कोई इन सात दिनों के दौरान ख़मीर खाए तो उसे क़ौम में से मिटाया जाए। 16 इस ईद के पहले और आख़िरी दिन मुक़द्दस इजतिमा मुनअक़िद करना। इन तमाम दिनों के दौरान काम न करना। सिर्फ़ एक काम की इजाज़त है और वह है अपना खाना तैयार करना। 17 बेख़मीरी रोटी की ईद मनाना लाज़िम है, क्योंकि उस दिन मैं तुम्हारे मुतअद्दिद ख़ानदानों को मिसर से निकाल लाया। इसलिए यह दिन नसल-दर-नसल हर साल याद रखना। 18 पहले महीने के 14वें दिन की शाम से लेकर 21वें दिन की शाम तक सिर्फ़ बेख़मीरी रोटी खाना। 19 सात दिन तक तुम्हारे घरों में ख़मीर न पाया जाए। जो भी इस दौरान ख़मीर खाए उसे इसराईल की जमात में से मिटाया जाए, ख़ाह वह इसराईली शहरी हो या अजनबी। 20 ग़रज़, इस ईद के दौरान ख़मीर न खाना। जहाँ भी तुम रहते हो वहाँ बेख़मीरी रोटी ही खाना है।
पहलौठों की हलाकत
21 फिर मूसा ने तमाम इसराईली बुज़ुर्गों को बुलाकर उनसे कहा, “जाओ, अपने ख़ानदानों के लिए भेड़ या बकरी के बच्चे चुनकर उन्हें फ़सह की ईद के लिए ज़बह करो। 22 ज़ूफ़े का गुच्छा लेकर उसे ख़ून से भरे हुए बासन में डुबो देना। फिर उसे लेकर ख़ून को चौखट के ऊपरवाले हिस्से और दाएँ बाएँ के बाज़ुओं पर लगा देना। सुबह तक कोई अपने घर से न निकले। 23 जब रब मिसरियों को मार डालने के लिए मुल्क में से गुज़रेगा तो वह चौखट के ऊपरवाले हिस्से और दाएँ बाएँ के बाज़ुओं पर लगा हुआ ख़ून देखकर उन घरों को छोड़ देगा। वह हलाक करनेवाले फ़रिश्ते को इजाज़त नहीं देगा कि वह तुम्हारे घरों में जाकर तुम्हें हलाक करे।
24 तुम अपनी औलाद समेत हमेशा इन हिदायात पर अमल करना। 25 यह रस्म उस वक़्त भी अदा करना जब तुम उस मुल्क में पहुँचोगे जो रब तुम्हें देगा। 26 और जब तुम्हारे बच्चे तुमसे पूछें कि हम यह ईद क्यों मनाते हैं 27 तो उनसे कहो, ‘यह फ़सह की क़ुरबानी है जो हम रब को पेश करते हैं। क्योंकि जब रब मिसरियों को हलाक कर रहा था तो उसने हमारे घरों को छोड़ दिया था’।”
यह सुनकर इसराईलियों ने अल्लाह को सिजदा किया। 28 फिर उन्होंने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा और हारून को बताया था।
29 आधी रात को रब ने बादशाह के पहलौठे से लेकर जेल के क़ैदी के पहलौठे तक मिसरियों के तमाम पहलौठों को जान से मार दिया। चौपाइयों के पहलौठे भी मर गए। 30 उस रात मिसर के हर घर में कोई न कोई मर गया। फ़िरौन, उसके ओहदेदार और मिसर के तमाम लोग जाग उठे और ज़ोर ज़ोर से रोने और चीख़ने लगे।
इसराईलियों की हिजरत
31 अभी रात थी कि फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलाकर कहा, “अब तुम और बाक़ी इसराईली मेरी क़ौम में से निकल जाओ। अपनी दरख़ास्त के मुताबिक़ रब की इबादत करो। 32 जिस तरह तुम चाहते हो अपनी भेड़-बकरियों को भी अपने साथ ले जाओ। और मुझे भी बरकत देना।” 33 बाक़ी मिसरियों ने भी इसराईलियों पर ज़ोर देकर कहा, “जल्दी जल्दी मुल्क से निकल जाओ, वरना हम सब मर जाएंगे।”
34 इसराईलियों के गूँधे हुए आटे में ख़मीर नहीं था। उन्होंने उसे गूँधने के बरतनों में रखकर अपने कपड़ों में लपेट लिया और सफ़र करते वक़्त अपने कंधों पर रख लिया। 35 इसराईली मूसा की हिदायत पर अमल करके अपने मिसरी पड़ोसियों के पास गए और उनसे कपड़े और सोने-चाँदी की चीज़ें माँगीं। 36 रब ने मिसरियों के दिलों को इसराईलियों की तरफ़ मायल कर दिया था, इसलिए उन्होंने उनकी हर दरख़ास्त पूरी की। यों इसराईलियों ने मिसरियों को लूट लिया।
37 इसराईली रामसीस से रवाना होकर सुक्कात पहुँच गए। औरतों और बच्चों को छोड़कर उनके 6 लाख मर्द थे। 38 वह अपने भेड़-बकरियों और गाय-बैलों के बड़े बड़े रेवड़ भी साथ ले गए। बहुत-से ऐसे लोग भी उनके साथ निकले जो इसराईली नहीं थे। 39 रास्ते में उन्होंने उस बेख़मीरी आटे से रोटियाँ बनाईं जो वह साथ लेकर निकले थे। आटे में इसलिए ख़मीर नहीं था कि उन्हें इतनी जल्दी से मिसर से निकाल दिया गया था कि खाना तैयार करने का वक़्त ही न मिला था।
40 इसराईली 430 साल तक मिसर में रहे थे। 41 430 साल के ऐन बाद, उसी दिन रब के यह तमाम ख़ानदान मिसर से निकले। 42 उस ख़ास रात रब ने ख़ुद पहरा दिया ताकि इसराईली मिसर से निकल सकें। इसलिए तमाम इसराईलियों के लिए लाज़िम है कि वह नसल-दर-नसल इस रात रब की ताज़ीम में जागते रहें, वह भी और उनके बाद की औलाद भी।
फ़सह की ईद की हिदायात
43 रब ने मूसा और हारून से कहा, “फ़सह की ईद के यह उसूल हैं :
किसी भी परदेसी को फ़सह की ईद का खाना खाने की इजाज़त नहीं है। 44 अगर तुमने किसी ग़ुलाम को ख़रीदकर उसका ख़तना किया है तो वह फ़सह का खाना खा सकता है। 45 लेकिन ग़ैरशहरी या मज़दूर को फ़सह का खाना खाने की इजाज़त नहीं है। 46 यह खाना एक ही घर के अंदर खाना है। न गोश्त घर से बाहर ले जाना, न लेले की किसी हड्डी को तोड़ना। 47 लाज़िम है कि इसराईल की पूरी जमात यह ईद मनाए। 48 अगर कोई परदेसी तुम्हारे साथ रहता है जो फ़सह की ईद में शिरकत करना चाहे तो लाज़िम है कि पहले उसके घराने के हर मर्द का ख़तना किया जाए। तब वह इसराईली की तरह खाने में शरीक हो सकता है। लेकिन जिसका ख़तना न हुआ उसे फ़सह का खाना खाने की इजाज़त नहीं है। 49 यही उसूल हर एक पर लागू होगा, ख़ाह वह इसराईली हो या परदेसी।”
50 तमाम इसराईलियों ने वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा और हारून से कहा था। 51 उसी दिन रब तमाम इसराईलियों को ख़ानदानों की तरतीब के मुताबिक़ मिसर से निकाल लाया।