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यहूदाह और तमर
उन दिनों में यहूदाह अपने भाइयों को छोड़कर एक आदमी के पास रहने लगा जिसका नाम हीरा था और जो अदुल्लाम शहर से था। वहाँ यहूदाह की मुलाक़ात एक कनानी औरत से हुई जिसके बाप का नाम सुअ था। उसने उससे शादी की। बेटा पैदा हुआ जिसका नाम यहूदाह ने एर रखा। एक और बेटा पैदा हुआ जिसका नाम बीवी ने ओनान रखा। उसके तीसरा बेटा भी पैदा हुआ। उसने उसका नाम सेला रखा। यहूदाह क़ज़ीब में था जब वह पैदा हुआ।
यहूदाह ने अपने बड़े बेटे एर की शादी एक लड़की से कराई जिसका नाम तमर था। रब के नज़दीक एर शरीर था, इसलिए उसने उसे हलाक कर दिया। इस पर यहूदाह ने एर के छोटे भाई ओनान से कहा, “अपने बड़े भाई की बेवा के पास जाओ और उससे शादी करो ताकि तुम्हारे भाई की नसल क़ायम रहे।” ओनान ने ऐसा किया, लेकिन वह जानता था कि जो भी बच्चे पैदा होंगे वह क़ानून के मुताबिक़ मेरे बड़े भाई के होंगे। इसलिए जब भी वह तमर से हमबिसतर होता तो नुतफ़ा को ज़मीन पर गिरा देता, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि मेरी मारिफ़त मेरे भाई के बच्चे पैदा हों। 10 यह बात रब को बुरी लगी, और उसने उसे भी सज़ाए-मौत दी। 11 तब यहूदाह ने अपनी बहू तमर से कहा, “अपने बाप के घर वापस चली जाओ और उस वक़्त तक बेवा रहो जब तक मेरा बेटा सेला बड़ा न हो जाए।” उसने यह इसलिए कहा कि उसे डर था कि कहीं सेला भी अपने भाइयों की तरह मर न जाए चुनाँचे तमर अपने मैके चली गई।
12 काफ़ी दिनों के बाद यहूदाह की बीवी जो सुअ की बेटी थी मर गई। मातम का वक़्त गुज़र गया तो यहूदाह अपने अदुल्लामी दोस्त हीरा के साथ तिमनत गया जहाँ यहूदाह की भेड़ों की पशम कतरी जा रही थी। 13 तमर को बताया गया, “आपका सुसर अपनी भेड़ों की पशम कतरने के लिए तिमनत जा रहा है।” 14 यह सुनकर तमर ने बेवा के कपड़े उतारकर आम कपड़े पहन लिए। फिर वह अपना मुँह चादर से लपेटकर ऐनीम शहर के दरवाज़े पर बैठ गई जो तिमनत के रास्ते में था। तमर ने यह हरकत इसलिए की कि यहूदाह का बेटा सेला अब बालिग़ हो चुका था तो भी उस की उसके साथ शादी नहीं की गई थी।
15 जब यहूदाह वहाँ से गुज़रा तो उसने उसे देखकर सोचा कि यह कसबी है, क्योंकि उसने अपना मुँह छुपाया हुआ था। 16 वह रास्ते से हटकर उसके पास गया और कहा, “ज़रा मुझे अपने हाँ आने दें।” (उसने नहीं पहचाना कि यह मेरी बहू है)। तमर ने कहा, “आप मुझे क्या देंगे?” 17 उसने जवाब दिया, “मैं आपको बकरी का बच्चा भेज दूँगा।” तमर ने कहा, “ठीक है, लेकिन उसे भेजने तक मुझे ज़मानत दें।” 18 उसने पूछा, “मैं आपको क्या दूँ?” तमर ने कहा, “अपनी मुहर और उसे गले में लटकाने की डोरी। वह लाठी भी दें जो आप पकड़े हुए हैं।” चुनाँचे यहूदाह उसे यह चीज़ें देकर उसके साथ हमबिसतर हुआ। नतीजे में तमर उम्मीद से हुई। 19 फिर तमर उठकर अपने घर वापस चली गई। उसने अपनी चादर उतारकर दुबारा बेवा के कपड़े पहन लिए।
20 यहूदाह ने अपने दोस्त हीरा अदुल्लामी के हाथ बकरी का बच्चा भेज दिया ताकि वह चीज़ें वापस मिल जाएँ जो उसने ज़मानत के तौर पर दी थीं। लेकिन हीरा को पता न चला कि औरत कहाँ है। 21 उसने ऐनीम के बाशिंदों से पूछा, “वह कसबी कहाँ है जो यहाँ सड़क पर बैठी थी?” उन्होंने जवाब दिया, “यहाँ ऐसी कोई कसबी नहीं थी।”
22 उसने यहूदाह के पास वापस जाकर कहा, “वह मुझे नहीं मिली बल्कि वहाँ के रहनेवालों ने कहा कि यहाँ कोई ऐसी कसबी थी नहीं।” 23 यहूदाह ने कहा, “फिर वह ज़मानत की चीज़ें अपने पास ही रखे। उसे छोड़ दो वरना लोग हमारा मज़ाक़ उड़ाएँगे। हमने तो पूरी कोशिश की कि उसे बकरी का बच्चा मिल जाए, लेकिन खोज लगाने के बावुजूद आपको पता न चला कि वह कहाँ है।”
24 तीन माह के बाद यहूदाह को इत्तला दी गई, “आपकी बहू तमर ने ज़िना किया है, और अब वह हामिला है।” यहूदाह ने हुक्म दिया, “उसे बाहर लाकर जला दो।” 25 तमर को जलाने के लिए बाहर लाया गया तो उसने अपने सुसर को ख़बर भेज दी, “यह चीज़ें देखें। यह उस आदमी की हैं जिसकी मारिफ़त मैं उम्मीद से हूँ। पता करें कि यह मुहर, उस की डोरी और यह लाठी किसकी हैं।” 26 यहूदाह ने उन्हें पहचान लिया। उसने कहा, “मैं नहीं बल्कि यह औरत हक़ पर है, क्योंकि मैंने उस की अपने बेटे सेला से शादी नहीं कराई।” लेकिन बाद में यहूदाह कभी भी तमर से हमबिसतर न हुआ।
27 जब जन्म देने का वक़्त आया तो मालूम हुआ कि जुड़वाँ बच्चे हैं। 28 एक बच्चे का हाथ निकला तो दाई ने उसे पकड़कर उसमें सुर्ख़ धागा बाँध दिया और कहा, “यह पहले पैदा हुआ।” 29 लेकिन उसने अपना हाथ वापस खींच लिया, और उसका भाई पहले पैदा हुआ। यह देखकर दाई बोल उठी, “तू किस तरह फूट निकला है!” उसने उसका नाम फ़ारस यानी फूट रखा। 30 फिर उसका भाई पैदा हुआ जिसके हाथ में सुर्ख़ धागा बँधा हुआ था। उसका नाम ज़ारह यानी चमक रखा गया।