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यूसुफ़ के भाई मिसर में
जब याक़ूब को मालूम हुआ कि मिसर में अनाज है तो उसने अपने बेटों से कहा, “तुम क्यों एक दूसरे का मुँह तकते हो? सुना है कि मिसर में अनाज है। वहाँ जाकर हमारे लिए कुछ ख़रीद लाओ ताकि हम भूके न मरें।”
तब यूसुफ़ के दस भाई अनाज ख़रीदने के लिए मिसर गए। लेकिन याक़ूब ने यूसुफ़ के सगे भाई बिनयमीन को साथ न भेजा, क्योंकि उसने कहा, “ऐसा न हो कि उसे जानी नुक़सान पहुँचे।” यों याक़ूब के बेटे बहुत सारे और लोगों के साथ मिसर गए, क्योंकि मुल्के-कनान भी काल की गिरिफ़्त में था।
यूसुफ़ मिसर के हाकिम की हैसियत से लोगों को अनाज बेचता था, इसलिए उसके भाई आकर उसके सामने मुँह के बल झुक गए। जब यूसुफ़ ने अपने भाइयों को देखा तो उसने उन्हें पहचान लिया लेकिन ऐसा किया जैसा उनसे नावाक़िफ़ हो और सख़्ती से उनसे बात की, “तुम कहाँ से आए हो?” उन्होंने जवाब दिया, “हम मुल्के-कनान से अनाज ख़रीदने के लिए आए हैं।” गो यूसुफ़ ने अपने भाइयों को पहचान लिया, लेकिन उन्होंने उसे न पहचाना। उसे वह ख़ाब याद आए जो उसने उनके बारे में देखे थे। उसने कहा, “तुम जासूस हो। तुम यह देखने आए हो कि हमारा मुल्क किन किन जगहों पर ग़ैरमहफ़ूज़ है।”
10 उन्होंने कहा, “जनाब, हरगिज़ नहीं। आपके ग़ुलाम ग़ल्ला ख़रीदने आए हैं। 11 हम सब एक ही मर्द के बेटे हैं। आपके ख़ादिम शरीफ़ लोग हैं, जासूस नहीं हैं।” 12 लेकिन यूसुफ़ ने इसरार किया, “नहीं, तुम देखने आए हो कि हमारा मुल्क किन किन जगहों पर ग़ैरमहफ़ूज़ है।”
13 उन्होंने अर्ज़ की, “आपके ख़ादिम कुल बारह भाई हैं। हम एक ही आदमी के बेटे हैं जो कनान में रहता है। सबसे छोटा भाई इस वक़्त हमारे बाप के पास है जबकि एक मर गया है।” 14 लेकिन यूसुफ़ ने अपना इलज़ाम दोहराया, “ऐसा ही है जैसा मैंने कहा है कि तुम जासूस हो। 15 मैं तुम्हारी बातें जाँच लूँगा। फ़िरौन की हयात की क़सम, पहले तुम्हारा सबसे छोटा भाई आए, वरना तुम इस जगह से कभी नहीं जा सकोगे। 16 एक भाई को उसे लाने के लिए भेज दो। बाक़ी सब यहाँ गिरिफ़्तार रहेंगे। फिर पता चलेगा कि तुम्हारी बातें सच हैं कि नहीं। अगर नहीं तो फ़िरौन की हयात की क़सम, इसका मतलब यह होगा कि तुम जासूस हो।”
17 यह कहकर यूसुफ़ ने उन्हें तीन दिन के लिए क़ैदख़ाने में डाल दिया। 18 तीसरे दिन उसने उनसे कहा, “मैं अल्लाह का ख़ौफ़ मानता हूँ, इसलिए तुमको एक शर्त पर जीता छोड़ूँगा। 19 अगर तुम वाक़ई शरीफ़ लोग हो तो ऐसा करो कि तुममें से एक यहाँ क़ैदख़ाने में रहे जबकि बाक़ी सब अनाज लेकर अपने भूके घरवालों के पास वापस जाएँ। 20 लेकिन लाज़िम है कि तुम अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ। सिर्फ़ इससे तुम्हारी बातें सच साबित होंगी और तुम मौत से बच जाओगे।”
यूसुफ़ के भाई राज़ी हो गए। 21 वह आपस में कहने लगे, “बेशक यह हमारे अपने भाई पर ज़ुल्म की सज़ा है। जब वह इल्तिजा कर रहा था कि मुझ पर रहम करें तो हमने उस की बड़ी मुसीबत देखकर भी उस की न सुनी। इसलिए यह मुसीबत हम पर आ गई है।” 22 और रूबिन ने कहा, “क्या मैंने नहीं कहा था कि लड़के पर ज़ुल्म मत करो, लेकिन तुमने मेरी एक न मानी। अब उस की मौत का हिसाब-किताब किया जा रहा है।”
23 उन्हें मालूम नहीं था कि यूसुफ़ हमारी बातें समझ सकता है, क्योंकि वह मुतरजिम की मारिफ़त उनसे बात करता था। 24 यह बातें सुनकर वह उन्हें छोड़कर रोने लगा। फिर वह सँभलकर वापस आया। उसने शमौन को चुनकर उसे उनके सामने ही बाँध लिया।
यूसुफ़ के भाई कनान वापस जाते हैं
25 यूसुफ़ ने हुक्म दिया कि मुलाज़िम उनकी बोरियाँ अनाज से भरकर हर एक भाई के पैसे उस की बोरी में वापस रख दें और उन्हें सफ़र के लिए खाना भी दें। उन्होंने ऐसा ही किया। 26 फिर यूसुफ़ के भाई अपने गधों पर अनाज लादकर रवाना हो गए।
27 जब वह रात के लिए किसी जगह पर ठहरे तो एक भाई ने अपने गधे के लिए चारा निकालने की ग़रज़ से अपनी बोरी खोली तो देखा कि बोरी के मुँह में उसके पैसे पड़े हैं। 28 उसने अपने भाइयों से कहा, “मेरे पैसे वापस कर दिए गए हैं! वह मेरी बोरी में हैं।” यह देखकर उनके होश उड़ गए। काँपते हुए वह एक दूसरे को देखने और कहने लगे, “यह क्या है जो अल्लाह ने हमारे साथ किया है?”
29 मुल्के-कनान में अपने बाप के पास पहुँचकर उन्होंने उसे सब कुछ सुनाया जो उनके साथ हुआ था। उन्होंने कहा, 30 “उस मुल्क के मालिक ने बड़ी सख़्ती से हमारे साथ बात की। उसने हमें जासूस क़रार दिया। 31 लेकिन हमने उससे कहा, ‘हम जासूस नहीं बल्कि शरीफ़ लोग हैं। 32 हम बारह भाई हैं, एक ही बाप के बेटे। एक तो मर गया जबकि सबसे छोटा भाई इस वक़्त कनान में बाप के पास है।’ 33 फिर उस मुल्क के मालिक ने हमसे कहा, ‘इससे मुझे पता चलेगा कि तुम शरीफ़ लोग हो कि एक भाई को मेरे पास छोड़ दो और अपने भूके घरवालों के लिए ख़ुराक लेकर चले जाओ। 34 लेकिन अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ ताकि मुझे मालूम हो जाए कि तुम जासूस नहीं बल्कि शरीफ़ लोग हो। फिर मैं तुमको तुम्हारा भाई वापस कर दूँगा और तुम इस मुल्क में आज़ादी से तिजारत कर सकोगे’।”
35 उन्होंने अपनी बोरियों से अनाज निकाल दिया तो देखा कि हर एक की बोरी में उसके पैसों की थैली रखी हुई है। यह पैसे देखकर वह ख़ुद और उनका बाप डर गए। 36 उनके बाप ने उनसे कहा, “तुमने मुझे मेरे बच्चों से महरूम कर दिया है। यूसुफ़ नहीं रहा, शमौन भी नहीं रहा और अब तुम बिनयमीन को भी मुझसे छीनना चाहते हो। सब कुछ मेरे ख़िलाफ़ है।” 37 फिर रूबिन बोल उठा, “अगर मैं उसे सलामती से आपके पास वापस न पहुँचाऊँ तो आप मेरे दो बेटों को सज़ाए-मौत दे सकते हैं। उसे मेरे सुपुर्द करें तो मैं उसे वापस ले आऊँगा।” 38 लेकिन याक़ूब ने कहा, “मेरा बेटा तुम्हारे साथ जाने का नहीं। क्योंकि उसका भाई मर गया है और वह अकेला ही रह गया है। अगर उसको रास्ते में जानी नुक़सान पहुँचे तो तुम मुझ बूढ़े को ग़म के मारे पाताल में पहुँचाओगे।”