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बिलदद : अल्लाह बेदीनों को सज़ा देता है
बिलदद सूख़ी ने जवाब देकर कहा,
“तू कब तक ऐसी बातें करेगा? इनसे बाज़ आकर होश में आ! तब ही हम सहीह बात कर सकेंगे। तू हमें डंगर जैसे अहमक़ क्यों समझता है? गो तू आग-बगूला होकर अपने आपको फाड़ रहा है, लेकिन क्या तेरे बाइस ज़मीन को वीरान होना चाहिए और चटानों को अपनी जगह से खिसक्ना चाहिए? हरगिज़ नहीं!
यक़ीनन बेदीन का चराग़ बुझ जाएगा, उस की आग का शोला आइंदा नहीं चमकेगा। उसके ख़ैमे में रौशनी अंधेरा हो जाएगी, उसके ऊपर की शमा बुझ जाएगी। उसके लंबे क़दम रुक रुककर आगे बढ़ेंगे, और उसका अपना मनसूबा उसे पटख़ देगा।
उसके अपने पाँव उसे जाल में फँसा देते हैं, वह दाम पर ही चलता-फिरता है। फंदा उस की एड़ी पकड़ लेता, कमंद उसे जकड़ लेती है। 10 उसे फँसाने का रस्सा ज़मीन में छुपा हुआ है, रास्ते में फंदा बिछा है।
11 वह ऐसी चीज़ों से घिरा रहता है जो उसे क़दम बक़दम दहशत खिलाती और उस की नाक में दम करती हैं। 12 आफ़त उसे हड़प कर लेना चाहती है, तबाही तैयार खड़ी है ताकि उसे गिरते वक़्त ही पकड़ ले। 13 बीमारी उस की जिल्द को खा जाती, मौत का पहलौठा उसके आज़ा को निगल लेता है। 14 उसे उसके ख़ैमे की हिफ़ाज़त से छीन लिया जाता और घसीटकर दहशतों के बादशाह के सामने लाया जाता है।
15 उसके ख़ैमे में आग बसती, उसके घर पर गंधक बिखर जाती है। 16 नीचे उस की जड़ें सूख जाती, ऊपर उस की शाख़ें मुरझा जाती हैं। 17 ज़मीन पर से उस की याद मिट जाती है, कहीं भी उसका नामो-निशान नहीं रहता।
18 उसे रौशनी से तारीकी में धकेला जाता, दुनिया से भगाकर ख़ारिज किया जाता है। 19 क़ौम में उस की न औलाद न नसल रहेगी, जहाँ पहले रहता था वहाँ कोई नहीं बचेगा। 20 उसका अंजाम देखकर मग़रिब के बाशिंदों के रोंगटे खड़े हो जाते और मशरिक़ के बाशिंदे दहशतज़दा हो जाते हैं। 21 यही है बेदीन के घर का अंजाम, उसी के मक़ाम का जो अल्लाह को नहीं जानता।”