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अय्यूब : बहुत दफ़ा बेदीनों को सज़ा नहीं मिलती
फिर अय्यूब ने जवाब में कहा,
“ध्यान से मेरे अलफ़ाज़ सुनो! यही करने से मुझे तसल्ली दो! जब तक मैं अपनी बात पेश न करूँ मुझे बरदाश्त करो, इसके बाद अगर चाहो तो मेरा मज़ाक़ उड़ाओ। क्या मैं किसी इनसान से एहतजाज कर रहा हूँ? हरगिज़ नहीं! तो फिर क्या अजब कि मेरी रूह इतनी तंग आ गई है। मुझ पर नज़र डालो तो तुम्हारे रोंगटे खड़े हो जाएंगे और तुम हैरानी से अपना हाथ मुँह पर रखोगे।
जब कभी मुझे वह ख़याल याद आता है जो मैं पेश करना चाहता हूँ तो मैं दहशतज़दा हो जाता हूँ, मेरे जिस्म पर थरथराहट तारी हो जाती है। ख़याल यह है कि बेदीन क्यों जीते रहते हैं? न सिर्फ़ वह उम्ररसीदा हो जाते बल्कि उनकी ताक़त बढ़ती रहती है।
उनके बच्चे उनके सामने क़ायम हो जाते, उनकी औलाद उनकी आँखों के सामने मज़बूत हो जाती है। उनके घर महफ़ूज़ हैं। न कोई चीज़ उन्हें डराती, न अल्लाह की सज़ा उन पर नाज़िल होती है। 10 उनका साँड नसल बढ़ाने में कभी नाकाम नहीं होता, उनकी गाय वक़्त पर जन्म देती, और उसके बच्चे कभी ज़ाया नहीं होते।
11 वह अपने बच्चों को बाहर खेलने के लिए भेजते हैं तो वह भेड़-बकरियों के रेवड़ की तरह घर से निकलते हैं। उनके लड़के कूदते फाँदते नज़र आते हैं। 12 वह दफ़ और सरोद बजाकर गीत गाते और बाँसरी की सुरीली आवाज़ निकालकर अपना दिल बहलाते हैं। 13 उनकी ज़िंदगी ख़ुशहाल रहती है, वह हर दिन से पूरा लुत्फ़ उठाते और आख़िरकार बड़े सुकून से पाताल में उतर जाते हैं।
14 और यह वह लोग हैं जो अल्लाह से कहते हैं, ‘हमसे दूर हो जा, हम तेरी राहों को जानना नहीं चाहते। 15 क़ादिरे-मुतलक़ कौन है कि हम उस की ख़िदमत करें? उससे दुआ करने से हमें क्या फ़ायदा होगा?’ 16 क्या उनकी ख़ुशहाली उनके अपने हाथ में नहीं होती? क्या बेदीनों के मनसूबे अल्लाह से दूर नहीं रहते?
17 ऐसा लगता है कि बेदीनों का चराग़ कभी नहीं बुझता। क्या उन पर कभी मुसीबत आती है? क्या अल्लाह कभी क़हर में आकर उन पर वह तबाही नाज़िल करता है जो उनका मुनासिब हिस्सा है? 18 क्या हवा के झोंके कभी उन्हें भूसे की तरह और आँधी कभी उन्हें तूड़ी की तरह उड़ा ले जाती है? अफ़सोस, ऐसा नहीं होता। 19 शायद तुम कहो, ‘अल्लाह उन्हें सज़ा देने के बजाए उनके बच्चों को सज़ा देगा।’ लेकिन मैं कहता हूँ कि उसे बाप को ही सज़ा देनी चाहिए ताकि वह अपने गुनाहों का नतीजा ख़ूब जान ले। 20 उस की अपनी ही आँखें उस की तबाही देखें, वह ख़ुद क़ादिरे-मुतलक़ के ग़ज़ब का प्याला पी ले। 21 क्योंकि जब उस की ज़िंदगी के मुक़र्ररा दिन इख़्तिताम तक पहुँचें तो उसे क्या परवा होगी कि मेरे बाद घरवालों के साथ क्या होगा।
22 लेकिन कौन अल्लाह को इल्म सिखा सकता है? वह तो बुलंदियों पर रहनेवालों की भी अदालत करता है। 23 एक शख़्स वफ़ात पाते वक़्त ख़ूब तनदुरुस्त होता है। जीते-जी वह बड़े सुकून और इतमीनान से ज़िंदगी गुज़ार सका। 24 उसके बरतन दूध से भरे रहे, उस की हड्डियों का गूदा तरो-ताज़ा रहा। 25 दूसरा शख़्स शिकस्ता हालत में मर जाता है और उसे कभी ख़ुशहाली का लुत्फ़ नसीब नहीं हुआ। 26 अब दोनों मिलकर ख़ाक में पड़े रहते हैं, दोनों कीड़े-मकोड़ों से ढाँपे रहते हैं।
27 सुनो, मैं तुम्हारे ख़यालात और उन साज़िशों से वाक़िफ़ हूँ जिनसे तुम मुझ पर ज़ुल्म करना चाहते हो। 28 क्योंकि तुम कहते हो, ‘रईस का घर कहाँ है? वह ख़ैमा किधर गया जिसमें बेदीन बसते थे? वह अपने गुनाहों के सबब से ही तबाह हो गए हैं।’ 29 लेकिन उनसे पूछ लो जो इधर उधर सफ़र करते रहते हैं। तुम्हें उनकी गवाही तसलीम करनी चाहिए 30 कि आफ़त के दिन शरीर को सहीह-सलामत छोड़ा जाता है, कि ग़ज़ब के दिन उसे रिहाई मिलती है।
31 कौन उसके रूबरू उसके चाल-चलन की मलामत करता, कौन उसे उसके ग़लत काम का मुनासिब अज्र देता है? 32 लोग उसके जनाज़े में शरीक होकर उसे क़ब्र तक ले जाते हैं। उस की क़ब्र पर चौकीदार लगाया जाता है। 33 वादी की मिट्टी के ढेले उसे मीठे लगते हैं। जनाज़े के पीछे पीछे तमाम दुनिया, उसके आगे आगे अनगिनत हुजूम चलता है। 34 चुनाँचे तुम मुझे अबस बातों से क्यों तसल्ली दे रहे हो? तुम्हारे जवाबों में तुम्हारी बेवफ़ाई ही नज़र आती है।”