7
अल्लाह जिदौन के साथियों को चुन लेता है
1 सुबह-सवेरे यरुब्बाल यानी जिदौन अपने तमाम लोगों को साथ लेकर हरोद चश्मे के पास आया। वहाँ उन्होंने अपने डेरे लगाए। मिदियानियों ने अपनी ख़ैमागाह उनके शिमाल में मोरिह पहाड़ के दामन में लगाई हुई थी।
2 रब ने जिदौन से कहा, “तेरे पास ज़्यादा लोग हैं! मैं इस क़िस्म के बड़े लशकर को मिदियानियों पर फ़तह नहीं दूँगा, वरना इसराईली मेरे सामने डींगें मारकर कहेंगे, ‘हमने अपनी ही ताक़त से अपने आपको बचाया है!’
3 इसलिए लशकरगाह में एलान कर कि जो डर के मारे परेशान हो वह अपने घर वापस चला जाए।” जिदौन ने यों किया तो 22,000 मर्द वापस चले गए जबकि 10,000 जिदौन के पास रहे।
4 लेकिन रब ने दुबारा जिदौन से बात की, “अभी तक ज़्यादा लोग हैं! इनके साथ उतरकर चश्मे के पास जा। वहाँ मैं उन्हें जाँचकर उनको मुक़र्रर करूँगा जिन्हें तेरे साथ जाना है।”
5 चुनाँचे जिदौन अपने आदमियों के साथ चश्मे के पास उतर आया। रब ने उसे हुक्म दिया, “जो भी अपना हाथ पानी से भरकर उसे कुत्ते की तरह चाट ले उसे एक तरफ़ खड़ा कर। दूसरी तरफ़ उन्हें खड़ा कर जो घुटने टेककर पानी पीते हैं।”
6 300 आदमियों ने अपना हाथ पानी से भरकर उसे चाट लिया जबकि बाक़ी सब पीने के लिए झुक गए।
7 फिर रब ने जिदौन से फ़रमाया, “मैं इन 300 चाटनेवाले आदमियों के ज़रीए इसराईल को बचाकर मिदियानियों को तेरे हवाले कर दूँगा। बाक़ी तमाम मर्दों को फ़ारिग़ कर। वह सब अपने अपने घर वापस चले जाएँ।”
8 चुनाँचे जिदौन ने बाक़ी तमाम आदमियों को फ़ारिग़ कर दिया। सिर्फ़ मुक़र्ररा 300 मर्द रह गए। अब यह दूसरों की ख़ुराक और नरसिंगे अपने पास रखकर जंग के लिए तैयार हुए। उस वक़्त मिदियानी ख़ैमागाह इसराईलियों के नीचे वादी में थी।
मिदियानियों पर जिदौन की फ़तह
9 जब रात हुई तो रब जिदौन से हमकलाम हुआ, “उठ, मिदियानी ख़ैमागाह के पास उतरकर उस पर हमला कर, क्योंकि मैं उसे तेरे हाथ में दे दूँगा।
10 लेकिन अगर तू इससे डरता है तो पहले अपने नौकर फ़ूराह के साथ उतरकर
11 वह बातें सुन ले जो वहाँ के लोग कह रहे हैं। तब उन पर हमला करने की जुर्रत बढ़ जाएगी।”
जिदौन फ़ूराह के साथ ख़ैमागाह के किनारे के पास उतर आया।
12 मिदियानी, अमालीक़ी और मशरिक़ के दीगर फ़ौजी टिड्डियों के दल की तरह वादी में फैले हुए थे। उनके ऊँट साहिल की रेत की तरह बेशुमार थे।
13 जिदौन दबे पाँव दुश्मन के इतने क़रीब पहुँच गया कि उनकी बातें सुन सकता था। ऐन उस वक़्त एक फ़ौजी दूसरे को अपना ख़ाब सुना रहा था, “मैंने ख़ाब में देखा कि जौ की बड़ी रोटी लुढ़कती लुढ़कती हमारी ख़ैमागाह में उतर आई। यहाँ वह इतनी शिद्दत से ख़ैमे से टकरा गई कि ख़ैमा उलटकर ज़मीनबोस हो गया।”
14 दूसरे ने जवाब दिया, “इसका सिर्फ़ यह मतलब हो सकता है कि इसराईली मर्द जिदौन बिन युआस की तलवार ग़ालिब आएगी! अल्लाह उसे मिदियानियों और पूरी लशकरगाह पर फ़तह देगा।”
15 ख़ाब और उस की ताबीर सुनकर जिदौन ने अल्लाह को सिजदा किया। फिर उसने इसराईली ख़ैमागाह में वापस आकर एलान किया, “उठें! रब ने मिदियानी लशकरगाह को तुम्हारे हवाले कर दिया है।”
16 उसने अपने 300 मर्दों को सौ सौ के तीन गुरोहों में तक़सीम करके हर एक को एक नरसिंगा और एक घड़ा दे दिया। हर घड़े में मशाल थी।
17-18 उसने हुक्म दिया, “जो कुछ मैं करूँगा उस पर ग़ौर करके वही कुछ करें। पूरी ख़ैमागाह को घेर लें और ऐन वही कुछ करें जो मैं करूँगा। जब मैं अपने सौ लोगों के साथ ख़ैमागाह के किनारे पहुँचूँगा तो हम अपने नरसिंगों को बजा देंगे। यह सुनते ही आप भी यही कुछ करें और साथ साथ नारा लगाएँ, ‘रब के लिए और जिदौन के लिए’!”
19 तक़रीबन आधी रात को जिदौन अपने सौ मर्दों के साथ मिदियानी ख़ैमागाह के किनारे पहुँच गया। थोड़ी देर पहले पहरेदार बदल गए थे। अचानक इसराईलियों ने अपने नरसिंगों को बजाया और अपने घड़ों को टुकड़े टुकड़े कर दिया।
20 फ़ौरन सौ सौ के दूसरे दो गुरोहों ने भी ऐसा ही किया। अपने दहने हाथ में नरसिंगा और बाएँ हाथ में भड़कती मशाल पकड़कर वह नारा लगाते रहे, “रब के लिए और जिदौन के लिए!”
21 लेकिन वह ख़ैमागाह में दाख़िल न हुए बल्कि वहीं उसके इर्दगिर्द खड़े रहे। दुश्मन में बड़ी अफ़रा-तफ़री मच गई। चीख़ते-चिल्लाते सब भाग जाने की कोशिश करने लगे।
22 जिदौन के 300 आदमी अपने नरसिंगे बजाते रहे जबकि रब ने ख़ैमागाह में ऐसी गड़बड़ पैदा की कि लोग एक दूसरे से लड़ने लगे। आख़िरकार पूरा लशकर बैत-सित्ता, सरीरात और अबील-महूला की सरहद तक फ़रार हुआ जो तब्बात के क़रीब है।
23 फिर जिदौन ने नफ़ताली, आशर और पूरे मनस्सी के मर्दों को बुला लिया, और उन्होंने मिलकर मिदियानियों का ताक़्क़ुब किया।
24 उसने अपने क़ासिदों के ज़रीए इफ़राईम के पूरे पहाड़ी इलाक़े के बाशिंदों को भी पैग़ाम भेज दिया, “उतर आएँ और मिदियानियों को भाग जाने से रोकें! बैत-बारा तक उन तमाम जगहों पर क़ब्ज़ा कर लें जहाँ दुश्मन दरियाए-यरदन को पा-प्यादा पार कर सकता है।”
इफ़राईमी मान गए,
25 और उन्होंने दो मिदियानी सरदारों को पकड़कर उनके सर क़लम कर दिए। सरदारों के नाम ओरेब और ज़एब थे, और जहाँ उन्हें पकड़ा गया उन जगहों के नाम ‘ओरेब की चट्टान’ और ‘ज़एब का अंगूर का रस निकालनेवाला हौज़’ पड़ गया। इसके बाद वह दुबारा मिदियानियों का ताक़्क़ुब करने लगे। दरियाए-यरदन को पार करने पर उनकी मुलाक़ात जिदौन से हुई, और उन्होंने दोनों सरदारों के सर उसके सुपुर्द कर दिए।