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इफ़राईम और मनस्सी की जुनूबी सरहद
क़ुरा डालने से यूसुफ़ की औलाद का इलाक़ा मुक़र्रर किया गया। उस की सरहद यरीहू के क़रीब दरियाए-यरदन से शुरू हुई, शहर के मशरिक़ में चश्मों के पास से गुज़री और रेगिस्तान में से चलती चलती बैतेल के पहाड़ी इलाक़े तक पहुँची। लूज़ यानी बैतेल से आगे निकलकर वह अरकियों के इलाक़े में अतारात पहुँची। वहाँ से वह मग़रिब की तरफ़ उतरती उतरती यफ़लीतियों के इलाक़े में दाख़िल हुई जहाँ वह नशेबी बैत-हौरून में से गुज़रकर जज़र के पीछे समुंदर पर ख़त्म हुई। यह उस इलाक़े की जुनूबी सरहद थी जो यूसुफ़ की औलाद इफ़राईम और मनस्सी के क़बीलों को विरासत में दिया गया।
इफ़राईम का इलाक़ा
इफ़राईम के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ यह इलाक़ा मिल गया : उस की जुनूबी सरहद अतारात-अद्दार और बालाई बैत-हौरून से होकर 6-8 समुंदर पर ख़त्म हुई। उस की शिमाली सरहद मग़रिब में समुंदर से शुरू हुई और क़ाना नदी के साथ चलती चलती तफ़्फ़ुअह तक पहुँची। वहाँ से वह शिमाल की तरफ़ मुड़ी और मिक्मताह तक पहुँचकर दुबारा मशरिक़ की तरफ़ चलने लगी। फिर वह तानत-सैला से होकर यानूह पहुँची। मशरिक़ी सरहद शिमाल में यानूह से शुरू हुई और अतारात से होकर दरियाए-यरदन के मग़रिबी किनारे तक उतरी और फिर किनारे के साथ जुनूब की तरफ़ चलती चलती नारा और इसके बाद यरीहू पहुँची। वहाँ वह दरियाए-यरदन पर ख़त्म हुई। यही इफ़राईम और उसके कुंबों की सरहद्दें थीं।
इसके अलावा कुछ शहर और उनके गिर्दो-नवाह की आबादियाँ इफ़राईम के लिए मुक़र्रर की गईं जो मनस्सी के इलाक़े में थीं। 10 इफ़राईम के मर्दों ने जज़र में आबाद कनानियों को न निकाला। इसलिए उनकी औलाद आज तक वहाँ रहती है, अलबत्ता उसे बेगार में काम करना पड़ता है।