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रब सुलेमान से हमकलाम होता है
चुनाँचे सुलेमान ने रब के घर और शाही महल को तकमील तक पहुँचाया। जो कुछ भी उसने ठान लिया था वह पूरा हुआ। उस वक़्त रब दुबारा उस पर ज़ाहिर हुआ, उस तरह जिस तरह वह जिबऊन में उस पर ज़ाहिर हुआ था। उसने सुलेमान से कहा,
“जो दुआ और इल्तिजा तूने मेरे हुज़ूर की उसे मैंने सुनकर इस इमारत को जो तूने बनाई है अपने लिए मख़सूसो-मुक़द्दस कर लिया है। उसमें मैं अपना नाम अबद तक क़ायम रखूँगा। मेरी आँखें और दिल अबद तक वहाँ हाज़िर रहेंगे। जहाँ तक तेरा ताल्लुक़ है, अपने बाप दाऊद की तरह दियानतदारी और रास्ती से मेरे हुज़ूर चलता रह। क्योंकि अगर तू मेरे तमाम अहकाम और हिदायात की पैरवी करता रहे तो मैं तेरी इसराईल पर हुकूमत हमेशा तक क़ायम रखूँगा। फिर मेरा वह वादा क़ायम रहेगा जो मैंने तेरे बाप दाऊद से किया था कि इसराईल पर तेरी औलाद की हुकूमत हमेशा तक क़ायम रहेगी।
लेकिन ख़बरदार! अगर तू या तेरी औलाद मुझसे दूर होकर मेरे दिए गए अहकाम और हिदायात के ताबे न रहे बल्कि दीगर माबूदों की तरफ़ रुजू करके उनकी ख़िदमत और परस्तिश करे तो मैं इसराईल को उस मुल्क में से मिटा दूँगा जो मैंने उनको दे दिया था। न सिर्फ़ यह बल्कि मैं इस घर को भी रद्द कर दूँगा जो मैंने अपने नाम के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस कर लिया है। उस वक़्त इसराईल तमाम अक़वाम में मज़ाक़ और लान-तान का निशाना बन जाएगा। इस शानदार घर की बुरी हालत देखकर यहाँ से गुज़रनेवाले तमाम लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएंगे, और वह अपनी हिक़ारत का इज़हार करके पूछेंगे, ‘रब ने इस मुल्क और इस घर से ऐसा सुलूक क्यों किया?’ तब लोग जवाब देंगे, ‘इसलिए कि गो रब उनका ख़ुदा उनके बापदादा को मिसर से निकालकर यहाँ लाया तो भी यह लोग उसे तर्क करके दीगर माबूदों से चिमट गए हैं। चूँकि वह उनकी परस्तिश और ख़िदमत करने से बाज़ न आए इसलिए रब ने उन्हें इस सारी मुसीबत में डाल दिया है’।”
हीराम की मदद का सिला
10 रब के घर और शाही महल को तामीर करने में 20 साल सर्फ़ हुए थे। 11 उस दौरान सूर का बादशाह हीराम सुलेमान को देवदार और जूनीपर की उतनी लकड़ी और उतना सोना भेजता रहा जितना सुलेमान चाहता था। जब इमारतें तकमील तक पहुँच गईं तो सुलेमान ने हीराम को मुआवज़े में गलील के 20 शहर दे दिए। 12 लेकिन जब हीराम उनका मुआयना करने के लिए सूर से गलील आया तो वह उसे पसंद न आए। 13 उसने सवाल किया, “मेरे भाई, यह कैसे शहर हैं जो आपने मुझे दिए हैं?” और उसने उस इलाक़े का नाम काबूल यानी ‘कुछ भी नहीं’ रखा। यह नाम आज तक रायज है। 14 बात यह थी कि हीराम ने इसराईल के बादशाह को तक़रीबन 4,000 किलोग्राम सोना भेजा था।
सुलेमान की मुख़्तलिफ़ मुहिमात
15 सुलेमान ने अपने तामीरी काम के लिए बेगारी लगाए। ऐसे ही लोगों की मदद से उसने न सिर्फ़ रब का घर, अपना महल, इर्दगिर्द के चबूतरे और यरूशलम की फ़सील बनवाई बल्कि तीनों शहर हसूर, मजिद्दो और जज़र को भी।
16 जज़र शहर पर मिसर के बादशाह फ़िरौन ने हमला करके क़ब्ज़ा कर लिया था। उसके कनानी बाशिंदों को क़त्ल करके उसने पूरे शहर को जला दिया था। जब सुलेमान की फ़िरौन की बेटी से शादी हुई तो मिसरी बादशाह ने जहेज़ के तौर पर उसे यह इलाक़ा दे दिया। 17 अब सुलेमान ने जज़र का शहर दुबारा तामीर किया। इसके अलावा उसने नशेबी बैत-हौरून, 18 बालात और रेगिस्तान के शहर तदमूर में बहुत-सा तामीरी काम कराया।
19 सुलेमान ने अपने गोदामों के लिए और अपने रथों और घोड़ों को रखने के लिए भी शहर बनवाए। जो कुछ भी वह यरूशलम, लुबनान या अपनी सलतनत की किसी और जगह बनवाना चाहता था वह उसने बनवाया।
20-21 जिन आदमियों की सुलेमान ने बेगार पर भरती की वह इसराईली नहीं थे बल्कि अमोरी, हित्ती, फ़रिज़्ज़ी, हिव्वी और यबूसी यानी कनान के पहले बाशिंदों की वह औलाद थे जो बाक़ी रह गए थे। मुल्क पर क़ब्ज़ा करते वक़्त इसराईली इन क़ौमों को पूरे तौर पर मिटा न सके, और आज तक इनकी औलाद को इसराईल के लिए बेगार में काम करना पड़ता है। 22 लेकिन सुलेमान ने इसराईलियों में से किसी को भी ऐसे काम करने पर मजबूर न किया बल्कि वह उसके फ़ौजी, सरकारी अफ़सर, फ़ौज के अफ़सर और रथों के फ़ौजी बन गए, और उन्हें उसके रथों और घोड़ों पर मुक़र्रर किया गया। 23 सुलेमान के तामीरी काम पर भी 550 इसराईली मुक़र्रर थे जो ज़िलों पर मुक़र्रर अफ़सरों के ताबे थे। यह लोग तामीरी काम करनेवालों की निगरानी करते थे।
24 जब फ़िरौन की बेटी यरूशलम के पुराने हिस्से बनाम ‘दाऊद का शहर’ से उस महल में मुंतक़िल हुई जो सुलेमान ने उसके लिए तामीर किया था तो वह इर्दगिर्द के चबूतरे बनवाने लगा। 25 सुलेमान साल में तीन बार रब को भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ पेश करता था। वह उन्हें रब के घर की उस क़ुरबानगाह पर चढ़ाता था जो उसने रब के लिए बनवाई थी। साथ साथ वह बख़ूर भी जलाता था। यों उसने रब के घर को तकमील तक पहुँचाया।
26 इसके अलावा सुलेमान बादशाह ने बहरी जहाज़ों का बेड़ा भी बनवाया। इस काम का मरकज़ ऐलात के क़रीब शहर अस्यून-जाबर था। यह बंदरगाह मुल्के-अदोम में बहरे-क़ुलज़ुम के साहिल पर है। 27 हीराम बादशाह ने उसे तजरबाकार मल्लाह भेजे ताकि वह सुलेमान के आदमियों के साथ मिलकर जहाज़ों को चलाएँ। 28 उन्होंने ओफ़ीर तक सफ़र किया और वहाँ से तक़रीबन 14,000 किलोग्राम सोना सुलेमान के पास ले आए।